Oxfam India Discrimination Report : कोरोना में सबसे ज्यादा बेरोजगार हुए मुसलमान, दलितों-आदिवासियों की कमाई कम होने का सबसे बड़ा कारण बना भेदभाव
Oxfam India Discrimination Report : भारत को आजाद हुए 75 साल हो गए हैं और वह अपनी 75वीं सालगिरह भी बना चुका है लेकिन भेदभाव से मुक्ति के लिए अब तक कोई रास्ता नहीं निकल पाया है। भारत में भेदभाव पर ऑक्सफैम इंडिया की रिपोर्ट जारी हुई है। ऑक्सफैम इंडिया की ताजा रिपोर्ट के अनुसार मुल्क में आज भी धर्म, जाति और लिंग की वजह से लोग सताए जा रही हैं। लोगों की कमाई तक धर्म, जाति और लिंग से तय की जा रही है।
इंडिया डिस्क्रिमिनेशन रिपोर्ट 2022
ऑक्सफैम इंडिया की ताजा रिपोर्ट 'इंडिया डिस्क्रिमिनेशन रिपोर्ट 2022' में बताया गया है कि सामान्य वर्ग की तुलना में देश के दलित और आदिवासी हर महीने 5 हजार रूपए कम कमा रहे हैं। वहीं गैर मुस्लिमों की तुलना में मुस्लिम हर माह 7 हजार रूपए कम कमा रहे हैं। साथ ही महिलाएं पुरुषों की तुलना में 4 हजार रुपए कम कमा रही हैं।
16 साल के सरकारी आंकड़ों के विश्लेषण के बाद तैयार हुई रिपोर्ट
बता दें कि ऑक्सफैम इंडिया की इस रिपोर्ट को शोधकर्ताओं ने 16 साल के सरकारी आंकड़ों के विश्लेषण के बाद तैयार किया है। शोधकर्ताओं ने 2004 से 2020 के बीच अलग-अलग वर्ग की नौकरियों, उनका वेतन, स्वास्थ्य, कर्ज आदि का अध्ययन किया है। जिसके बाद यह इंडिया डिस्क्रिमिनेशन रिपोर्ट 2022 तैयार की गई है।
कोविड में सबसे ज्यादा बेरोजगार हुए मुसलमान
कोविड 19 महामारी के दौरान सबसे ज्यादा बेरोजगार मुसलमान हुए हैं। कोविड-19 के पहले ही क्वार्टर में मुसलमानों के बीच बेरोजगारी में 17 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। साल 2019 से साल 2020 में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु की शहरी मुस्लिम आबादी में से 15.6 प्रतिशत के पास नियमित वेतन भोगी नौकरियां थीं। ठीक इसी वक्त गैर मुसलमानों में 23.3 प्रतिशत लोग नियमित वेतन भोगी नौकरी कर रहे थे। शहरी मुसलमानों को 68 प्रतिशत मामलों में भेदभाव के कारण रोजगार कम मिला है।
मुस्लिम और गैर मुस्लिम के बीच कमाई में 1.5 गुना का अंतर
वहीं अगर कमाई की बात करें तो शहरी क्षेत्र में रेगुलर नौकरी करने वाले गैर मुस्लिम हर महीने 20,346 रुपए कमा रहे हैं। वही मुसलमान 13,600 रुपए ही कमा रहे हैं। इस तरह मुस्लिमों और गैर मुस्लिमों के बीच कमाई में 1.5 गुना का अंतर है। अपना रोजगार करने वाले यानी सेल्फ एंप्लॉयड मुस्लिम भी कमाई के मामले में गैर-मुस्लिम सेल्फ एंप्लॉयड से पिछड़े हुए हैं। जहां गैर-मुस्लिम महीने की औसतन 15,878 रुपये कमा रहे हैं। वही मुस्लिम 11,421 रुपए ही कमा पा रहे हैं।
भेदभाव के कारण दलित-आदिवासी की कमाई हुई कम
ऑक्सफैम इंडिया की इंडिया डिस्क्रिमिनेशन रिपोर्ट में आकस्मिक वेतन श्रमिकों को लेकर अलग से आंकड़ा दिया गया है। मोटे तौर पर दिहाड़ी मजदूरों को आकस्मिक वेतन श्रमिक कहा जाता है। रिपोर्ट में मौजूद आंकड़ों के अनुसार ऐसे दलित और आदिवासी जो दिहाड़ी मजदूर करते हैं, उनकी आय गैर दलित और आदिवासी दिहाड़ी मजदूरों की आय से कम है। कमाई में अंतर के लिए 79 प्रतिशत भेदभाव जिम्मेदार है। यह पिछले साल की तुलना में 10 प्रतिशत ज्यादा है।
भेदभाव के कारण वेतन में 41% का अंतर
बता दें कि घर के मुखिया के शिक्षा, उम्र और श्रमिक की शिक्षा जैसे कारक कमाई को प्रभावित करते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि एससी और एसटी समुदायों के सदस्यों की शिक्षा का स्तर समान वर्ग के समान होने के बावजूद उनकी कमाई कम हो रही है। ज्यादातर मामलों में भेदभाव के कारण वेतन में 41 प्रतिशत का अंतर आ रहा है।
SC-ST के नियमित कर्मचारियों के कमाई भी 33% की कमी
ऑक्सफैम इंडिया की रिपोर्ट से पता चलता है कि शहर में काम करने वाले SC और ST समुदाय के नियमित कर्मचारी औसत 15,312 रुपये कमाते हैं। जबकि सामान्य वर्ग के कर्मचारी 20,346 रुपये कमाते हैं। इस तरह SC-ST समुदाय के नियमित कर्मचारी भी सामान्य वर्ग की तुलना में 33 फीसदी कम कमा रहे हैं।
SC-ST वर्ग के किसानों को कम मिल रहा कृषि लोन
एससी और एसटी समुदायों के सेल्फ इम्पलॉयड (खुद का काम करने वाले) सदस्य भी गैर-एसी/एसटी की तुलना में 2,000 रुपये कम कमाते हैं। इस अंतर के लिए 78% जिम्मेदार भेदभाव को माना गया है। एससी/एसटी वर्ग के किसानों को कृषि लोन भी सामान्य वर्ग की तुलना में कम मिल रहा है।