बाबा रामदेव की दिव्य कोरोनील के लिए केवल युवाओं पर किया गया था परीक्षण, न कि बुजुर्गों पर
जनज्वार ब्यूरो। पतंजलि आयुर्वेद के संस्थापक बाबा रामदेव ने जिस कोरोनील को कोविड -19 के उपचार के रूप में देख रहे हैं, उसका परीक्षण उच्च जोखिम वाले जैसै बुजुर्गों या कॉमरेडेटिडी वाले मरीजों पर नहीं किया गया था बल्कि केवल युवाओं और स्वस्थ रोगियों पर किया गया था।
पतंजलि ने यह दवा मंगलवार को लॉन्च की लेकिन आयुष मंत्रालय ने इसे कुछ घंटों के भीतर ही बंद करने के लिए कहा गया। साथ ही इस दवा का विवरण, इसकी संरचना और अन्य संबंधित जानकारी भेजने के लिए कहा गया।
विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना की दवा (जो अश्वगंधा, गिलोय और तुलसी से बनी है) को लेकर पतंजलि के दावों को सत्यापित नहीं किया जा सका और क्लिनिकल ट्रायल को निष्कर्षों के लिए प्रस्तुत नहीं किया गया था।
पतंजलि ने कहा कि सरकार के साथ संवादहीनता बढ़ी है, लेकिन दावा किया इसे सभी उपयुक्त अनुमोदन (Approvel) मिल चुके हैं। पतंजलि आयुर्वेद के सीईओ आचार्य बालकृष्म ने बताया, हमने आयुष मंत्रालय को सभी आवश्यक दस्तावेजों के साथ अपनी प्रतिक्रिया भेज दी है। उम्मीद है इसे जल्द ही सुलझा लिया जाएगा।
कोरोनील स्टडी का प्रारंम्भिक संक्षिप्त विवरण सरकार के क्लिनिकल ट्रायल रजिस्ट्रेशन पोर्टल पर अपलोड किया गया था जिसमें उल्लेख किया गया था कि इसमें (क्लिनिकल ट्रायल में) इसमें मामूली रूप से रोगग्रस्त रोगियों को शामिल किया जाएगा। हालांकि वे अंतिम स्टडी में शामिल नहीं थे।
कोरोनील क्लीनिकल ट्रायल्स के मुख्य जांचकर्ता डॉ. जी देवपुरा ने 'द प्रिंट' को बताया, रोगियों की औसत आयु 35-45 थी, उनमें से भी मुख्य रूप से युवा और संपर्क में आए हल्के लक्षण वाले थे। उन्होंने बताया कि क्लिनिकल ट्रायल के मानदंडों में उन रोगियों को बाहर रखा गया है जिनमें पहले से यह रोग मौजूद है। इन पहले से मौजूद रोग में हृदय रोग, मधुमेह या फेफड़ों की बीमारी आदि शामिल हैं।
कोमोरबिटीज वाले और बुजुर्गों को संक्रमण से मरने का सबसे अधिक खतरा है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर दो कोविड -19 मौतों में से एक वरिष्ठ नागरिक है, जबकि देश में कोविड -19 की मौतों में से 73 प्रतिशत लोग कोमोरबिटीज वाले लोगों के हैं।