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PU Student Union Election 2022 : पटना विश्वविद्यालय छात्रसंघ के चुनावी अखाडे़ में वामपंथ बनाम दक्षिण पंथ के संगठन के साथ सत्ताधारी दल के छात्रसंगठन पेश कर रहे चुनौती

Janjwar Desk
18 Nov 2022 8:40 PM IST
PU Student Union Election 2022 : पटना विश्वविद्यालय छात्रसंघ के चुनावी अखाडे़ में वामपंथ बनाम दक्षिण पंथ के संगठन के साथ सत्ताधारी दल के छात्रसंगठन पेश कर रहे चुनौती
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PU Student Union Election 2022: पटना विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव का प्रचार थमने के बाद अब मतदान की बारी है। 19 नवंबर को छात्र अपने प्रतिनिधि का चुनाव करने जा रहे हैं। ऐसे में बिहार की राजनीति में सक्रिय सभी राजनीतिक दलों के छात्रसंगठनों ने अपनी चुनाव में हिस्सेदारी जताकर मुकाबले को रोचक बना दिया है।

जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट

PU Student Union Election 2022: पटना विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव का प्रचार थमने के बाद अब मतदान की बारी है। 19 नवंबर को छात्र अपने प्रतिनिधि का चुनाव करने जा रहे हैं। ऐसे में बिहार की राजनीति में सक्रिय सभी राजनीतिक दलों के छात्रसंगठनों ने अपनी चुनाव में हिस्सेदारी जताकर मुकाबले को रोचक बना दिया है। कैंपस के छात्रों से जुड़े सवालों से लेकर राष्ट्रीय मुद्द्ों पर खुब बहस चली। जिसका अंत धु्रवीकरण के रूप में अब धूर दक्षिणपंथी धारा आरएसएस के छात्रसंगठन विद्यार्थी परिषद व वामपंथी संगठन आइसा के बीच मुकाबला के साथ ही राजद व जदयू की सत्ता के हनक के चलते इनके छात्रसंगठन के पदाधिकारियों द्वारा पेश की जा रही चुनौतियों ने कड़े संघर्ष की तस्वीर पेश कर रही है।

राष्ट्रीय राजनीति में जब- जब बदलाव की बयार बही है, तब बिहार इसका वाहक बना है। इस पूरी राजनीति में छात्र आंदोलन का केंद्र पटना विश्वविद्यालय ही रहा है। जिसने संपूर्ण क्रंाति का आह्वान करनेवाले जयप्रकाश नारायण से लेकर मंडल आंदोलन की अगुवाई करनेवाले लालू प्रसाद यादव से लेकर रामविलास पासवान समेत अन्य नेताओं को इस कैंपस ने दिया है। इस कैंपस ने ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, सुशील मोदी, जेपी नड्डा, रविशंकर प्रसाद, अश्विनी चैबे जैसे नेताओं का हौसला बढ़ाते हुए राष्ट्रीय राजनीति में अपनी पहचान बनाने का अवसर दिया। ऐसे में नेताओं का पौध तैयार करनेवाले विश्वविद्यालयों में पटना विश्वविद्यालय की भी एक पहचान रही है। यहां के छात्र कोरोना काल के बाद एक बार फिर अपना छात्रसंघ का प्रतिनिधि चुनने जा रहे हैं। अंतिम बार 2019 में छात्रसंघ चुनाव हुआ था जिसमें पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी (जाप) के मनीष कुमार ने अध्यक्ष पद पर बाजी मारी थी। चुनाव के लिए नामांकन 7 से 10 नवंबर को किया गया व प्रचार का अंतिम दिन 17 नवंबर रहा।


ये हैं छात्रसंघ चुनाव के दावेदार

देश की वैचारिक राजनीति के केंद्र में मौजूद आरएसएस के छात्रसंगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की ओर से अध्यक्ष पद के लिए प्रगति राज, उपाध्यक्ष पद के लिए प्रतिभा कुमारी, महासचिव के लिए बिपुल कुमार, संयुक्त सचिव पद के लिए रविकरण सिंह जबकि कोषाध्यक्ष पद के लिए वैभव मैदान में हैं। वैचारिक रूप से इसके धूर विरोधी वामपंथीर संगठन आइसा की ओर से आदित्य रंजन अध्यक्ष, मनीला फूले उपाध्यक्ष, सचिन कुमार महासचिव, कुमारी रचना संयुक्त सचिव और कल्पना सिंह कोषाध्यक्ष पद के उम्मीदवार हैं।

इसके अलावा प्रदेश में सत्ता की हनख के साथ दावेदारी कर रही छात्र जदयू की ओर से अध्यक्ष पद के आनंद मोहन, उपाध्यक्ष पद के लिए विक्रमादित्य सिंह, महासचिव पद के लिए साक्षी खत्री, संयुक्त सचिव पद के लिए संध्या कुमारी और कोषाध्यक्ष पद के लिए रविकांत चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस पार्टी का छात्रसंगठन एनएसयूआई और वामपंथी संगठन एआईएसएफ ने संयुक्त रूप से शाश्वत शेखर को अध्यक्ष, मीरसरफाज अली को उपाध्यक्ष, समृद्धि सुमन को महासचिव, अविनाश मिश्रा को संयुक्त सचिव व आसिफ इमाम को कोषाध्यक्ष पद के लिए उतारा है।

राजद छात्र संघ की ओर से साकेत कुमार अध्यक्ष, वसंत कुमार उपाध्यक्ष जबकि कुंदन कुमार महासचिव और प्रेमलता कुमारी संयुक्त सचिव पद से चुनाव लड़ रहे हैं। इसके साथ ही पप्पू यादव की पार्टी जाप ने भी पटना विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव में अपने प्रत्याशी को मैदान में उतारा है। ऐसे में आइस व विद्यार्थी परिषद ने लड़कियों को चुनाव में प्रमुखता से उतारा है। अध्यक्ष पद के लिए इस साल दो लड़कियां मैदान में है। एबीवीपी ने प्रगति राज को मैदान में उतारा है जबकि मानषी झा निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रही हैं। साथ ही दूसरे पदों के लिए भी कई लड़कियां इस बार चुनावी मैदान में ताल ठोक रही है।

आइसा के कार्यकारी राष्ट्रीय महासचीव प्रसन्नजीत कहते हैं कि यह चुनाव सरकारी छात्रसंघ नहीं संघर्षकारी छात्रसंघ के गठन के लिए हम लड़ रहे हैं। इसमें दो धाराओं के बीच सीधा मुकाबला है। नई शिक्षा नीति के बहाने छात्रों को शिक्षा के अधिकार से वंचित करने की साजिश करनेवाले राजनीति के खिलाफ यह लड़ाई है। जिसके साथ कैंपस के छात्र खड़े हैं। हमने हमेशा छात्रों के सवालों पर संघर्ष किया है। पटना विश्वविद्यालय को कंेंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने की मांग छात्रों के तरफ से हमने हमेशा उठाया है। जिसके खिलाफ खड़ी राजनीतिक ताकतों का यहां विद्यार्थी परिषद के लोग प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। जिन्हें कैंपस के स्टूडेंट कभी स्वीकार नहीं करेंगे।


उधर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रदेश सह संगठन मंत्री धीरज कुमार कहते हैं कि हमारा संगठन अपने 365 दिनों के छात्रों के सवालों को लेकर किए गए संधर्षों को आगे बढ़ाने के लिए वोट की अपील कर रहा है। हमने छात्रों के हर समस्याओं को हमेशा उठाते हुए अपनी उपस्थिति जताई है। वे लोग जो पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय न घोषित करने के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, उन्हें पहले ये देखना होगा कि इन्फ्रास्ट्रक्चर के मामले में प्रदेश सरकार ने यहां कौन पहल किया है। शिक्षक कर्मचारियों की नियुक्ति से लेकर छात्रों के लिए अनिवार्य सुविधाओं समेत अन्य मानकों को पूरा किए बिना केंद्रीय विश्वविद्यालय के दर्जे की बात करना बेईमानी है। यह जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। यह अपनी नाकामी छूपाने के लिए दूसरे पर आरोप मढती रही है।

अखिल भारतीय छात्र विद्यार्थी परिषद से अध्यक्ष पद की उम्मीदवार प्रगति राज का कहना है कि विद्यार्थी परिषद महिला सशक्तीकरण और महिला सुरक्षा को अपना सबसे बड़ा मुद्दा बना कर चुनावी मैदान में है। इसके साथ ही परिषद स्मार्ट क्लास, इन्फ्रास्ट्रक्चर और विश्वविद्यालय में प्रोफेसर की कमी को अपने केंद्र में रखकर छात्र- छात्राओं से समर्थन मांग रहा है। प्रगति कहती हैं, 'एक वक्त पटना विश्वविद्यालय ईस्ट का ऑक्सफोर्ड कहा जाता था और यहां से हर साल कई आईएएस अधिकारी निकलते थे, लेकिन आज विश्वविद्यालय अपना अस्तित्व ही खो चुका है। हम चुनाव जीतने के बाद पटना विश्वविद्यालय के गौरवशाली इतिहास को दोबारा शुरू करने के लिए काम करेंगा '।

एनएसयूआई-एआईएसएफ के संयुक्त उम्मीदवार शाश्वत शेखर कहते हैं, 'पटना विश्वविद्यालय में सबसे बड़ा मुद्दा सुरक्षा का है। यहां के कॉलेजों में आए दिनों मारपीट की घटना होती रहती है। गोलीबारी-बमबारी विश्वविद्यालय के लिए आम बात हो गई है। कैंपस में लड़कियां सुरक्षित नहीं है। हमारे लिए सबसे बड़ा मुद्दा इन सब चीजों को खत्म करना है। कैंपस में स्टूडेंट फ्रैंडली माहौल होना जरूरी है और यह तमाम चीजें छात्रों को कैंपस से दूर करती हैं।'

शाश्वत कहते हैं, 'अगर हम चुनाव जीतते हैं तो सभी कॉलेज के पुस्तकालय को आधुनिक कराने का प्रयास करेंगे. साथ ही केंद्रीय लाइब्रेरी को 24 घंटे सातों दिन खुलवाने की कोशिक करेंगे। पटना विश्वविद्यालय में किसी भी प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया जाता है, हम चाहेंगे कि भविष्य में इन सब चीजों को आयोजन हो।' वहीं आइसा से अध्यक्ष पद के उम्मीदवार आदित्य रंजन कहते हैं कि हम पटना विश्वविद्यालय में स्मार्ट क्लासरूम, सुसज्जित प्रयोगशाला, कैंटीन की व्यवस्था, लाइब्रेरी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को लेकर मैदान में हैं।


केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाने की उठती रही मांग

पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने की मांग वर्षों से उठती रही है। पटना विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहुंचे थे तो मंच से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने की मांग की थी। उस वक्त प्रधानमंत्री ने नीतीश कुमार की मांग को खारिज कर दिया था। इस बार छात्रसंघ चुनाव में पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने की मांग फिर से जोरों पर है। पीयू मांगे सीयू के नारे लग रहे हैं। आइसा से अध्यक्ष पद के उम्मीदवार आदित्य रंजन ने कहा कि, 'हमारी सबसे पहली और सबसे बड़ी मांग है कि विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिले।'

एबीवीपी से अध्यक्ष पद की उम्मीदवार प्रगति राज ने इसको लेकर जदयू पर निशाना साधते हुए कहा कि 'केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा तब मांगा जाता है जब राज्य विश्वविद्यालय को चलाने में विफल हो जाता है। अगर हम एक विश्वविद्यालय नहीं चला पा रहे हैं तो यह जदयू की विफलता है। जदयू सत्ता में रहने के बाद भी विश्वविद्यालय को नहीं चला पा रही है।' प्रगति कहती हैं, 'ऐसा नहीं है कि एबीवीपी केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा के पक्ष में नहीं है। परिषद पहले मूलभूत चीजों पर काम करना चाहता है। उसके बाद हम केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाने की मांग करेंगे। अभी भी पटना विश्वविद्यालय की स्थिति बिहार के बाकी विश्वविद्यालयों से काफी बेहतर है तो हम अभी क्यों केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मांगें।'

राष्ट्रीय राजनीति में रही बड़ी भागीदारी

बिहार ही नहीं देश की राजनीति में पटना विश्वविद्यालय का अहम योगदान रहा है। 1974 में जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में पटना विश्वविद्यालय के छात्रों ने तत्कालीन केंद्र सरकार के खिलाफ बड़ा आंदोलन शुरू किया था। बिहार के 23 में से 16 मुख्यमंत्री पटना विश्वविद्यालय से रहे हैं। हालांकि, इनमें से कई का विश्वविद्यालय के छात्र राजनीति से सीधा संबंध नहीं था। पटना विश्वविद्यालय की स्थापना 1917 में हुई थी। यहां छात्र संघ का पहला आधिकारिक चुनाव 1970 में हुआ था। 1970 के पहले छात्रसंघ चुनाव में पटना विश्वविद्यालय से लालू प्रसाद यादव महासचिव पद पर जीते थे। उसके अगले साल 1971 में लालू यादव अध्यक्ष पद के लिए मैदान में उतरे लेकिन उन्हें कांग्रेस उम्मीदवार रामजतन सिन्हा से हार का सामना करना पड़ा। साल 1973 के चुनाव में लालू यादव अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़े और जीत हासिल की। इस चुनाव में लालू प्रसाद यादव के साथ बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी महासचिव पद पर और पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद सहायक सचिव पद पर जीते थे। केंद्रीय मंत्री अश्विनी चैबे 1977 में पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ से चुनाव जीते थे।

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