पंजाब : झूठे वादों से थक चुके किसान भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस नेताओं के खिलाफ भी कर रहे प्रदर्शन
(केकेयू के नेता कांग्रेस को उदारीकरण और इस तरह केंद्र की वर्तमान नीतियों के लिए दोषी ठहराते हैं।)
मनोज ठाकुर की रिपोर्ट
जनज्वार डेस्क। पंजाब में जहां पहले केवल भाजपा नेताओं को किसानों के विरोध का सामना करना पड़ रहा था, अब सत्ताधारी कांग्रेस के लोगों को भी राज्य भर में प्रदर्शनकारियों के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है। भाजपा के मामले की तरह संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) की ओर से राज्य में कांग्रेस नेताओं के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने का कोई निर्देश नहीं है। फिर सवाल पैदा होता है किसान कांग्रेस को क्यों निशाना बना रहे हैं?
पंजाब में कांग्रेस नेताओं के खिलाफ किसानों का विरोध 15 जून को शुरू हुआ जब आनंदपुर साहिब के कांग्रेस सांसद भरता कलां और बाजिदपुर गांवों में कुछ विकास परियोजनाओं का उद्घाटन करने के लिए नवांशहर गए और दोआबा किसान यूनियन (डीकेयू) ने उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया।
तब कांग्रेस विधायक हरदयाल सिंह कंबोज को 27 जून को पटियाला के गांव बुधनपुर में विरोध का सामना करना पड़ा और 28 जून को कांग्रेस सांसद तिवारी को नवांशहर में फिर से काले झंडे दिखाए गए, जब वे सिविल अस्पताल में ऑक्सीजन प्लांट का उद्घाटन करने आए थे। नवांशहर से कांग्रेस विधायक अंगद सैनी को भी उसी दिन किसानों के गुस्से का सामना करना पड़ा था। वहां कीर्ति किसान यूनियन (केकेयू) के कार्यकर्ता धरना प्रदर्शन कर रहे थे।
कैबिनेट मंत्री बलबीर सिंह सिद्धू को 14 जुलाई को अंतिम समय में जालंधर के धनोवली गांव का दौरा रद्द करना पड़ा, जब उन्हें पता चला कि किसान उस स्थान पर पहुंच गए हैं जहां उन्हें एक डिस्पेंसरी का उद्घाटन करना था। केकेयू और भारती किसान यूनियन (राजेवाल) के कार्यकर्ता इस विरोध का हिस्सा थे।
नवनियुक्त पीपीसीसी प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू को कमान संभालने के बाद से कांग्रेस को लगभग आधा दर्जन विरोधों का सामना करना पड़ा। सबसे पहले उन्हें 20 जुलाई को शहीद-ए-आजम भगत सिंह के पैतृक गांव खटकर कलां में विरोध का सामना करना पड़ा। केकेयू, दोआबा किसान यूनियन (डीकेयू) के कार्यकर्ता वहां विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। फिर 22 जुलाई, 24 जुलाई, 5 अगस्त और 6 अगस्त को उन्हें क्रमशः तरनतारन, चमकोर साहिब, मोगा और जालंधर में इसी तरह के विरोध का सामना करना पड़ा। इन विरोधों का नेतृत्व किसान मजदूर संघर्ष समिति (केएमएससी), केकेयू और बीकेयू (राजेवाल) ने किया।
बीकेयू (राजेवाल), बीकेयू (क्रांतिकारी), केकेयू सभी केएमएससी को छोड़कर एसकेएम का हिस्सा हैं। बीकेयू (डकौंडा) के महासचिव जगमोहन सिंह ने कहा--हमारा एकमात्र निर्देश भाजपा नेताओं के खिलाफ विरोध करना है क्योंकि सत्तारूढ़ कांग्रेस सहित किसी अन्य पार्टी के खिलाफ विरोध करने के लिए कोई निर्देश नहीं हैं।
उन्होंने कहा - कभी-कभी संदेश जमीनी स्तर पर ठीक से नहीं पहुंचता है और हमारी बैठकों में हम एसकेएम के निर्देशों के बारे में चीजें स्पष्ट कर देंगे। एसकेएम के विरोध को अनुशासित तरीके से देखा जाना चाहिए।
किसान नेताओं ने कहा कि 8 महीने सड़कों पर बैठने के बाद प्रदर्शनकारियों में हताशा का स्तर ऊपर है। अब वे विभिन्न मोर्चों पर राज्य सरकार की विफलता के लिए भी उसे घेरेंगे। वे सत्तारूढ़ कांग्रेस के झूठे वादों से भी थक चुके हैं और स्थानीय स्तर पर अपनी योजना के अनुसार विरोध कर रहे हैं।
बीकेयू (दोआबा) के महासचिव सतनाम सिंह साहनी ने कहा कि जमीनी स्तर पर किसानों का मानना है कि कोई भी राजनीतिक दल उनके बचाव में नहीं आएगा और विरोध ही उन पर दबाव बनाने का एकमात्र तरीका है जिसके कारण उन्होंने कांग्रेस के खिलाफ विरोध करना शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में अन्य दलों के नेताओं को भी इसी तरह के विरोध का सामना करना पड़ सकता है।
साहनी ने कहा - न केवल किसान, बल्कि समाज का हर वर्ग सत्ताधारी पार्टी के अधूरे, झूठे वादों के कारण ठगा हुआ महसूस कर रहा है और चुनाव से पहले अब स्थानीय स्तर पर किसानों ने सरकार को जगाने के लिए ये विरोध प्रदर्शन करना शुरू कर दिया है।
उन्होंने यह भी कहा कि किसान उन्हें कृषि संकट से उबारने के लिए ठोस योजना चाहते हैं। साहनी ने इस बात से इंकार नहीं किया कि कुछ लोग व्यक्तिगत हिसाब चुकता करने के लिए किसान संघ के झंडों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
केकेयू के नेता कांग्रेस को उदारीकरण और इस तरह केंद्र की वर्तमान नीतियों के लिए दोषी ठहराते हैं। वे बेरोजगारी, अनियमित बिजली आपूर्ति जैसे मुद्दों को भी उठा रहे हैं।
किसानों ने कहा कि सिद्धू ने पहले कभी उनके मुद्दे का समर्थन नहीं किया और न ही कभी किसी किसान के घर गए, बल्कि अब वोट के लिए उनका समर्थन करने का दावा कर रहे हैं।