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कोरोना में ऐसे जिंदगी बसर कर रही हैं देह व्यापार में शामिल जयपुर की नट महिलाएं, ठप्प पड़ा काम

Janjwar Desk
10 Sep 2020 12:52 PM GMT
कोरोना में ऐसे जिंदगी बसर कर रही हैं देह व्यापार में शामिल जयपुर की नट महिलाएं, ठप्प पड़ा काम
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टीलावाला गांव में नटों की ढ़ाणी नाम से 10 घरों के कुनबे में रहने वाली महिलाएं राजनाट समुदाय से ताल्लुक रखती हैं, जो राजशाही के दौर में परंपरागत रूप से नाच-गाने का काम करती थी, लेकिन रियासतों के विघटन के बाद और सरकारी तंत्र की उदासीनता ने इन्हें वेश्यावृत्ति की ओर धकेल दिया.....

अवधेश पारीक की रिपोर्ट

जयपुर। "ये कोरोना बीमारी नहीं है, ये तो हमारी पहले से फूटी किस्मत का नया रोना है जो हम अब हर दिन जीने और मरने के बारे में सोचते हैं" भरे हुए हलक से अपनी पीड़ा को इन शब्दों में पिरोते ही समिता की आंखें मानो भर आई हों!

जयपुर से नेशनल हाइवे 48 के जरिए भीलवाड़ा की ओर जाने वाले रास्ते पर बसे कई गांवों में समिता जैसी हजारों महिलाएं हैं जिनकी बीते कुछ महीनों की कहानियों में महामारी से उपजा दर्द और विलाप भरा है।

कोरोना से दुनियाभर में मचे हड़कंप और देशव्यापी लॉकडाउन के बाद हाशिए पर खड़े सेक्स वर्कर्स का एक बड़ा तबका इससे अछूता नहीं रहा है। रोज कमाकर खाने वाली इन सेक्स वर्कर्स का काम लगभग पूरी तरह से ठप्प पड़ चुका है।

मानपुरा टीलावाला में नटों की ढ़ाणी है पसरा है सन्नाटा

जयपुर से करीब 30 किमी बसे सांगानेर तहसील के गांव मानपुरा टीलावाला की रहने वाली पिंकी ने बताया कि, हम लॉकडाउन का नाम सुनते ही हमारे गांव चले गए थे, लेकिन अब जब थोड़ी ढ़ील मिली है तो वापस लौटे हैं लेकिन सब कुछ बदल गया है।


आगे वह जोड़ती है कि पहले जहां एक दिन में 400-500 कमा लेते थे अब वो जोड़ने में 3-4 दिन लग जाते हैं, कोई और काम ना ही हमें आता है और ना ही कोई देता है।

एक अन्य लड़की पिंकी की बात में आगे बढ़ाते हुए कहती है कि हमारी आमदनी इतनी कम हो गई है कि अब एक-एक दिन गिनकर काट रहे हैं। हमारे ऊपर कोरोना बीमारी की दोहरी मार पड़ी है क्योंकि शारीरिक दूरी और फेस मास्क हमारे काम की परिपाटी के एकदम उलट है, इसलिए लोग यहां आने में हिचकते हैं।

गौरतलब है कि टीलावाला गांव में नटों की ढ़ाणी नाम से 10 घरों के कुनबे में रहने वाली महिलाएं राजनाट समुदाय से ताल्लुक रखती हैं, जो राजशाही के दौर में परंपरागत रूप से नाच-गाने का काम करती थी, लेकिन रियासतों के विघटन के बाद और सरकारी तंत्र की उदासीनता ने इन्हें वेश्यावृत्ति की ओर धकेल दिया।

ढ़ाणी में रहने वाले मुकेश बताते हैं कि यहां 200-300 लोग देह व्यापार से जुड़े हैं, जिनमें लड़कियां जयपुर के आसपास के इलाके जैसे सवाईमाधोपुर, टोंक, अलवर से यहां आती है।

बकौल मुकेश लॉकडाउन के बाद शुरूआती दिनों में एक-दो एनजीओ आए थे और कुछ दिन सरकार की तरफ से अनाज भी आया था, लेकिन अब आगे कैसे हम इस संकट को झेलेंगे कुछ समझ नहीं आता है।

भोजपुरा गांव की सड़क किनारे नटों के घरों में लटके हैं ताले

जयपुर से करीब 49 किमी फागी तहसील के गांव भोजपुरा के हालातों में भी कोरोना संकट से उपजा सन्नाटा हवा में पसरा है, 2000 लोगों के इस गांव में करीब 10-15 घरों में नट समुदाय से जुड़े लोग देह व्यापार से जुड़े हैं, गांव में पहुंचने पर अधिकांश घरों में ताले लटके मिले, पूछने पर पता चला कि लॉकडाउन के बाद से गए लोग अभी वापस लौटे नहीं है।


गांव में रहने वाली 30 वर्षीय उमा ने हमें बताया कि कोरोना से पहले जहां शहर से लोग यहां आते थे अब 5 महीने बीतने के बाद यहां कोई नहीं दिखता है और जो आता है उसका हमें डर सताता रहता है कि पता नहीं कहां से आया होगा?

कोरोना खतरे का सवाल बीच में काटते हुए वह कहती है कि "हम क्या करें, हमारा काम ही ऐसा है, अब कितने दिन रूकें इस बीमारी का तो कुछ पता नहीं कब जाएगी, पेट में भूख तो रोज लगती है ना..."

सरकारी सहायता की उदासीनता को बयां करते हुए उमा आगे बताती है कि जब लॉकडाउन लगा तब कुछ दिन हमें अनाज मिला था, लेकिन इसके बाद यहां हमारी कोई सुध लेने नहीं आया।

उमा जयपुर के एक एनजीओ से भी जुड़ी हैं और इस काम से जुड़ी अन्य महिलाओं की सुरक्षा पर काम करती हैं, अपने काम को लेकर वह बताती है कि, एनजीओ के लोगों ने गांव की महिलाओं और लड़कियों को इस बीमारी के बारे में जागरूक किया है और सेनेटाइजर एवं सुरक्षा संबंधी सामान भी वितरित करवाया है।

घुमन्तू समुदायों के लिए काम करने वाली संस्था "नई दिशाएँ" के संयोजक अश्वनी कबीर इसे सरकारों की नाकामयाबी बताते हुए कहते हैं कि इन समुदाय के लोगों की कोई सरकार सुध नहीं लेती है, कोरोना संकट आने के बाद इनके हालात बद से बदतर हो गए हैं।

आगे अश्वनी नट या घुमंतु समुदाय के लोगों के वर्तमान हालातों को उनका संगठित ना होना बड़ा कारण मानते हुए कहते हैं कि इन लोगों के पास ना तो कोई आंबेडकर है और ना ही कोई गांधी है जो इनके हकों की आवाज को हुक्मरानों की गलियों तक पहुंचाए।

वहीं फागी तहसील के अंतर्गत आने वाले भोजपुरा गांव में कार्यरत एएनएम अनिता चौधरी बताती हैं कि, कोविड-19 आने के बाद हमनें गांव में नट समुदाय के लोगों के बीच काफी बार जागरूकता कैंप लगाए हैं, कोरोना के खतरे को देखते हुए हमनें महिलाओं से कुछ दिन अपना काम रोकने की भी अपील की है।

देह व्यापार में शामिल इन गावों के नट समुदाय से जुड़े लोगों में कोरोना को लेकर किस तरह काम किया जा रहा है इसको लेकर डिप्टी सीएमएचओ जयपुर (सैकंड) डॉ. सुरेंद्र स्वामी बताते हैं कि कोरोना महामारी के आने के बाद से हम लगातार उन इलाकों में सर्वे कर रहे हैं और अभी भी समय-समय पर हमारी टीम की ओर से सर्वे करवा रहे हैं और जरूरी एहतियात उन लोगों को बताते और समझाते हैं।

गौरतलब है कि जयपुर के इस रास्ते पर पड़ने वाले गांव नंदलालपुरा, जयसिंहपुरा, भीपर जैसे गांवों में भी कमोबेश नट समुदाय के लोग इन्हीं हालातों से गुजर रहे हैं। कारवां पत्रिका की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में आज भी देह व्यापार में सबसे अधिक नट, कंजर, पेरना, बेड़िया और गिलारा घुमंतू समुदाय से आने वाले लोग हैं जिनके इस काम में जाने के कारण इनके भूतकाल और वर्तमान परिस्थितियों में छुपे हैं।

वहीं महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में करीब 30 लाख महिलाएं देह व्यापार से जुड़ी हैं वहीं ह्यूमन राइट्स वॉच की एक अन्य रिपोर्ट कहती है कि भारत में लगभग दो करोड़ सेक्स वर्कर हैं, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस व्यापार में शामिल हैं। इस रिपोर्ट के सिलसिले में हमनें सक्षम महिला समिति के प्रतिनिधि से भी बात करने की कोशिश की लेकिन संपर्क नहीं हो पाया।

(नोट : सभी लड़कियों और महिलाओं के नाम काल्पनिक हैं।)

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