सीएम गहलोत के गृह जिले में 4 साल से आर्थिक सहायता के लिए दर-दर की ठोकर खा रही सिलिकोसिस पीड़ित की मां
जोधपुर से अवधेश पारीक की रिपोर्ट
जोधपुर। राजस्थान के जोधपुर के सूरसागर तहसील में कालीबेरी गांव की रहने वाली 60 साल की शांति देवी को इस बात का अंदाजा नहीं था कि बेटे को हुई सिलिकोसिस बीमारी उसकी मौत के बाद भी हर दिन उसकी परेशानियों का सबब बनी रहेगी। पति के पहले गुजर जाने के बाद अपने बेटे की एकमात्र आश्रित होने के नाते पिछले 4 साल से सरकारी सहायता के लिए विभागों के चक्कर लगाती शांति देवी सिलिकोसिस बीमारी के पीड़ितों की मौत के बाद उनके आश्रितों के हालात और सरकारी तंत्र की विफलता का जीता-जागता सबूत है।
दरअसल, शांति के बड़े बेटे प्रकाश के 2015 में सिलिकोसिस बीमारी की पुष्टि हुई जिसके बाद उन्हें सरकारी नियमों के मुताबिक सिलिकोसिस का प्रमाणपत्र दिया गया और 27 मार्च 2015 को 1.00 लाख रूपये की आर्थिक सहायता राशि भी दी गई।
मालूम हो कि सिलिकोसिस की चपेट में आने के बाद पीड़ित शारीरिक रूप से अक्षम हो जाता है और किसी भी तरह का शारीरिक परिश्रम नहीं कर सकता है, ऐसे में मेडिकल कॉलेजों में सरकार द्वारा स्थापित न्यूकोनियोसिस बोर्ड उनकी सिलिकोसिस की पुष्टि करते हैं जिसके बाद उन्हें सरकारी सुविधाओं का लाभ मिलता है।
इन्हीं योजनाओं के अंतर्गत, न्यूमोकोनिओसिस बोर्ड से जब किसी मरीज़ को सिलिकोसिस होने की पुष्टि का प्रमाण पत्र मिल जाता है तो उसे 3 लाख रुपये और उसकी मौत होने पर उसके परिवार या आश्रितों को 2 लाख रुपये की सहायता राशि दी जाती है।
शांति देवी के मुताबिक, सरकारी आर्थिक सहायता मिलने के करीब 1 साल बाद 11 जून 2016 को प्रकाश की मौत हो गई जिसके बाद मौत के तीसरे ही दिन प्रकाश की पत्नी अपने मायके चली जाती है और एक नई जिंदगी की शुरूआत कर लेती है। प्रकाश के पिता पहले ही गुजर चुके हैं, उसके बाद जवान बेटे की मौत से आहत शांति देवी के लिए सरकारी सहायता ही एकमात्र उम्मीद थी।
बेटे की मौत के 1 साल बाद न्यूमोकोनिओसिस बोर्ड ने प्रकाश को सिलिकोसिस पीड़ित मानने से किया इनकार
प्रकाश की मौत के बाद उसकी एकमात्र आश्रित होने के नाते शांति देवी को सरकारी सहायता प्राप्त करने के लिए पीड़ित की मौत के बाद बनने वाले सिलिकोसिस प्रमाण पत्र 'ब' बनवाना था, जिसके बाद उसको आर्थिक सहायता मिलने की शुरूआत होती। बकौल शांति देवी, प्रकाश की मौत के बाद उसका सिलिकोसिस 'अ' प्रमाण पत्र उनसे कहीं खो गया जिसके परिणामस्वरूप अपने बेटे की मौत के बाद वह प्रमाण पत्र 'ब' नहीं बनवा सकी और प्रकाश की एकमात्र आश्रित होने के बावजूद भी किसी प्रकार की राजकीय सहायता से वंचित रहीं।
लेकिन शांति की परेशानी यहीं खत्म नहीं होती क्योंकि इसके बाद 21 जून 2017 को जिले के न्यूमोकोनिओसिस बोर्ड से शांति देवी को एक पत्र मिलता है जिसमें बोर्ड कहता है कि पूरी जांच के बाद यह पाया गया है कि उनके बेटे प्रकाश के सिलिकोसिस पीड़ित होने का बोर्ड के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है, माने बोर्ड कहता है कि उनके बेटे को सिलिकोसिस बीमारी नहीं थी। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि इसी बोर्ड की तरफ से साल 2015 में प्रकाश के सिलिकोसिस की पुष्टि होने पर प्रकाश को आर्थिक सहायता दी गई थी।
इस बारे में पूछने पर जोधपुर के कमला नेहरू वक्ष चिकित्सालय में सिलिकोसिस बोर्ड के सदस्य और सीनियर प्रोफेसर डॉ. गोपाल पुरोहित कहते हैं कि आप पीड़िता को हमारे पास एक बार दोबारा भेज दीजिए मैं मामले की जांच कर जो भी सहायता हो बन सकती है वो करूंगा लेकिन फिर इनके ही बोर्ड ने शांति देवी के बेटे का सिलिकोसिस रिकॉर्ड ना होने की बात क्यों कही थी, इस सवाल का वह कोई स्पष्ट जवाब नहीं देते हैं।
कमोबेश ऐसा ही जवाब एसएन मेडिकल कॉलेज जोधपुर के प्रधानाचार्य एंव नियंत्रक डॉ. गुलझारी लाल मीणा देते हुए कहते हैं कि कॉलेज और विभाग में स्टाफ बदलता रहता है, ऐसे में आप पीड़ित को भेजिए, पूरी सहायता की जाएगी। वहीं इस घटना पर खान मजदूर सुरक्षा अभियान के सीईओ राणा सेनगुप्ता कहते हैं कि, सिलिकोसिस के मामलों में डिजिटलाइजेशन से पहले के सारे मामलों की बोर्ड को फिर से जांच करनी चाहिए, हमारा अनुमान है कि शांति देवी जैसे काफी मामले मिल सकते हैं जो आर्थिक सहायता से वंचित हैं।
नई सिलिकोसिस पॉलिसी में पीड़ित के आश्रितों के लिए विशेष प्रावधान
बीते साल राजस्थान में कांग्रेस की सरकार के 1 साल पूरा होने पर 3 अक्टूबर 2019 को जयपुर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जो 'सिलिकोसिस पॉलिसी 2019' जारी की थी। नई पॉलिसी के मुताबिक सिलिकोसिस पीड़ित के पुनर्वास के लिए राज्य सरकार 3 लाख रुपये की आर्थिक सहायता देगी। वहीं पीड़ित की मौत होने पर उसके परिवारजन को 2 लाख रुपये व अंतिम संस्कार के लिए 10 हजार रुपये की सहायता एवं पीड़ित की विधवा को 1500 रूपये की पेंशन देने का भी प्रावधान किया गया है।
इसके अलावा पॉलिसी में सिलिकोसिस पीड़ित के आश्रितों के लिए विशेष तौर पर कहा गया कि पीड़ित की मौत होने पर परिवार के सदस्यों को सरकार की आस्था योजना के तहत नि:शुल्क चिकित्सा व राशन सामग्री उपलब्ध मिलेगी साथ ही समस्त मेडिकल सुविधा और दवा से लेकर जांच तक फ्री होगा । ऐसे में प्रकाश के सिलिकोसिस संबंधित समस्त मौजूदा कागजात अधिकारियों के सामने दिखाने जद्दोजहद के बावजूद पिछले 4 साल से शांति को किसी भी तरह की कोई आर्थिक सहायता नहीं मिल पाई है।
गौरतलब हो कि राजस्थान की क़रीब 33 हज़ार खदानों में मोटे तौर पर 25 लाख से अधिक मज़दूर कार्यरत हैं जिसमें खनन और इससे जुड़े अन्य कामों में लगभग 30 लाख लोगों को परोक्ष या अपरोक्ष रूप से रोजगार मिलता है। वहीं आंकड़ों के मुताबिक राजस्थान के 20 ज़िले सिलिकोसिस प्रभावित हैं।
फेफड़ों के संक्रमण के कारण होने वाली इस बीमारी के अधिकांश मामलों का पता जल्दी नहीं चल पाता है जिसके कारण पीड़ित को सहायता नहीं मिल पाती है वहीं नीतिगत ढ़ांचे की कमी के चलते उनके परिजनों को भी सहायता राशि के लिए काफी भागदौड़ करनी पड़ती है।