बच्चा पैदा करने के लिए हत्या के दोषी को 15 दिन की मिली पैरोल, फैसले से असंतुष्ट पक्ष पहुंचा सुप्रीम कोर्ट
देश के 65 अधिवक्ताओं ने सीएजी को लिखी चिट्ठी, आईएएमसी गठन में सीजेआई एनवी रमना की भूमिका पर उठाए सवाल, जांच की मांग
Jaipur news : राजस्थान हाईकोर्ट ( Rajasthan High Court ) की जोधपुर पीठ ( Jodhpur bench ) द्वारा कैद की सजा काट रहे एक कैदी को उसकी पत्नी की याचिका पर बच्चा पैदा करने के लिए 15 दिन की पैरोल ( Parole ) देने के फैसले से अजीबोगरीब स्थिति पैदा हो गई है। राजस्थान सरकार ( Rajasthan government ) ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ( Supreme court ) का दरवाजा खटखटाया है। दरअसल, हाइकोर्ट के इस फैसले के बाद बच्चा पैदा करने के नाम पर बड़ी संख्या में कैदी पैरोल पर छोड़ने की मांग करने लगे हैं।
राजस्थान सरकार की इस अपील पर मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ( CJI NV Ramana ) ने इस याचिका को स्वीकार करते हुए अगले सप्ताह इस पर सुनवाई शुरू करने को कहा है।
बता दें कि पांच अप्रैल को हाईकोर्ट की जोधपुर स्थित मुख्य पीठ में न्यायाधीश संदीप मेहता व फरजंद अली की खंडपीठ ने एक बंदी की पत्नी की याचिका पर अजमेर जेल में बंद उसके पति को बच्चा पैदा करने के लिए पंद्रह दिन की पैरोल देने का फैसला सुनाया था। इस फैसले के खिलाफ अब राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की है। सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि इस फैसले के बाद बच्चा पैदा करने के नाम पर पैरोल मांगने वालों की बाढ़ आ गई। बच्चा पैदा करने के नाम पर पैरोल देने का कोई प्रावधान भी नहीं है इसलिए हाईकोर्ट के फैसले को खारिज किया जाए। हालांकि, गहलोत सरकार ने यह नहीं बताया गया कि इस फैसले के बाद अब तक कितने कैदी इस फैसले को आधार बना पैरोल मांग चुके है।
क्या है पूरा मामला
पांच अप्रैल 2022 को राजस्थान हाईकोर्ट ने अजमेर जेल में उम्रकैद काट रहे बंदी को हाईकोर्ट ने संतान उत्पत्ति के लिए 15 दिन की पैरोल दी थी। उसकी शादी हो चुकी है, लेकिन कोई संतान नहीं है। पत्नी शादी से खुश है और बच्चा चाहती है। इसलिए उसने अजमेर कलेक्टर को अर्जी दी थी। जवाब नहीं मिला तो उसने हाईकोर्ट की शरण ली। न्यायाधीश संदीप मेहता व फरजंद अली की खंडपीठ ने कहा कि वैसे पैरोल रूल्स में संतान उत्पत्ति के लिए पैरोल का कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन वंश के संरक्षण के उद्देश्य से संतान होने को धार्मिक दर्शन, भारतीय संस्कृति और विभिन्न न्यायिक घोषणाओं के माध्यम से मान्यता दी।
एडीजे कोर्ट ने सुनाई थी उम्रकैद की सजा
इससे पहले रबारियों की ढाणी भीलवाड़ा के 34 वर्षीय नंदलाल को एडीजे कोर्ट भीलवाड़ा ने 6 फरवरी 2019 को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। तब से वह अजमेर की जेल में बंद है। 18 मई 2021 को उसे 20 दिन की पैरोल मिली थी। उसके बाद वह निर्धारित तिथि को लौट आया था। उसकी पत्नी ने अजमेर कलेक्टर, जो पैरोल कमेटी के चेयरमैन भी हैं, उन्हें अर्जी दी। कलेक्टर ने अर्जी पर कुछ नहीं किया तो पत्नी हाईकोर्ट पहुंच गई। ऋग्वेद व वैदिक भजनों का उदाहरण दिया, इसे मौलिक अधिकार भी बताया। कोर्ट ने दोनों पक्ष सुनने के बाद कहा कि दंपती को अपनी शादी के बाद से आज तक कोई समस्या नहीं है।