RSS chief Mohan Bhagwat के बिगड़े बोल, जानवर से की जनसंख्या बढ़ाने वालों की तुलना
RSS Chief Mohan Bhagwat : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में किसी की जात—पात नहीं पूछी जाती।
नई दिल्ली। पिछले कुछ दिनों से इस बात की चर्चा दुनिया भर में है कि भारत आबादी ( Population in India ) के मामले में चीन को बहुत जल्द पीछे छोड़ देगा। इस बात को लेकर देशभर में लोग चिंतित हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ( RSS Chief Mohan Bhagwat ) भी बढ़ती आबादी से चिंतित दिखाई देते हैं लेकिन उन्होंने अपनी इस चिंता को जिस लहजे में जाहिर किया वो एक बड़े विवाद को भी जन्म दे सकता है।
सिर्फ जिंदा रहना जिंदगी का मकसद नहीं
दरअसल, मोहन भागवत ( Mohan Bhagwat ) ने श्री सत्य साईं यूनिवर्सिटी फॉर ह्यूमन एक्सीलेंस के पहले दीक्षांत समारोह में कई मुद्दों पर विस्तार से बात की। उन्होंने धर्म परिवर्तन का भी जिक्र किया। साथ ही बढ़ती जनसंख्या पर भी बड़ा बयान दिया। मोहन भागत ने साफ शब्दों में कहा कि सिर्फ जिंदा रहना ही जिंदगी का उदेश्य नहीं होना चाहिए। मनुष्य के कई कर्तव्य होते हैं, जिनका निर्वाहन उन्हें समय-समय पर करते रहना चाहिए।
ये काम तो जानवर भी कर लेते हैं
भारत की बढ़ती आबादी ( Popolation ) और उसके दुष्परिणाम की ओर संकेत करते हुए उन्होंने कहा कि सिर्फ खाना और आबादी बढ़ाना, ये काम तो जानवर भी कर सकते हैं। शक्तिशाली ही जिंदा रहेगा, ये जंगल का नियम है। वहीं शक्तिशाली जब दूसरों की रक्षा करने लगे, ये मनुष्य की निशानी है। अब सवाल यह है कि मोहन भागवत जानवर शब्द का प्रयोग किसके लिए किया है। हालांकि, उन्होंने किसी खास समुदाय का नाम नहीं लिया, लेकिन दुनिया जानती है कि वो क्या कहना चाहते हैं।
बताया जानवर और इंसान होने का फर्क
बता दें कि इस समय देश में जनसंख्या को लेकर बहस चल रही है। कुछ दिन पहले ही यूएन रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत बहुत जल्द चीन को पीछे छोड़ देगा। इस संदर्भ में मोहन भागवत ( Mohan Bhagwat ) का बयान मायने रखता है। सवाल यह है कि देश में जनसंख्या बढ़ाने के लिए जिम्मेदार कौन है। इस बारे में सीधे-सीधे तो बढ़ती जनसंख्या पर कुछ नहीं बोला लेकिन जानवर और इंसान का फर्क बताते हुए बड़ा संदेश दे दिया।
भारत के विकास पर जताया संतोष
उन्होंने कहा कि इतिहास की बातों से सीखते हुए और भविष्य के विचारों को समझते हुए भारत ने पिछले कुछ सालों में अपना ठीक विकास किया है। अगर कोई 10 से 12 साल पहले ऐसा कहता तो कोई इसे गंभीरता से नहीं लेता। संघ प्रमुख ने इस बात पर भी जोर दिया जो विकास अभी देखने को मिल रहा है, उसकी नींव 1857 में पड़ गई थी। विवेकानंद ने अपने सिद्धांतों से उसे आगे बढ़ाया था लेकिन इस सब के बीच भागवत मानते हैं कि विज्ञान और बाहरी दुनिया के अध्ययन में संतुलन का अभाव साफ दिख जाता है।