कोरोना महामारी से हुई मौतों में मुक्ति मार्ग खोजता RSS, असंवेदनशीलता से है संघ का पुराना नाता
RSS प्रमुख ने कहा- सभी भारत के लोगों का DNA समान
जनज्वार ब्यूरो, दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत आरएसएस द्वारा आयोजित कार्यक्रम पॉजिटिविटी अनलिमिटेड को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने अपने व्याख्यान में कहा जिन लोगों की कोरोना से मौत हुई है वह 1 तरीके से मुक्त हो गए हैं। उनको इस स्थिति का सामना नहीं करना है। उन्होंने कहा- "कठिन समय है, असमय लोग चले गए उनको ऐसे जाना नहीं चाहिए था। परंतु अब तो कुछ किया नहीं जा सकता,परिस्थिति में तो हम लोग हैं। अब जो लोग चले गए एक तरह से मुक्त हो गए उनको इस स्थिति का सामना नहीं करना है। हमें अब हम लोगों को सुरक्षित करना है।"
मोहन भागवत को लगता है कि कोरोना महामारी से अपनी जान गंवाने वाले लोक मुक्त हो गए हैं। इससे ज्यादा नकारात्मक बयान और क्या हो सकता है ? महामारी से व इलाज के अभाव में मरने वाले लोग मोहन भागवत को मुक्त होते दिखाई दे रहे हैं। हालांकि यह पहली बार नहीं है। मोहन भागवत और आरएसएस अपने जनविरोधी,असंवेदनशील बयानों को लेकर हमेशा ही विवादों में रहते हैं। मोहन भागवत ने पहले भी कई बार विवादित बयान दिये हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने 11 मई से 15 मई के बीच पॉजिटिविटी अनलिमिटेड नाम से ऑनलाइन व्याख्यान का आयोजन किया था। इसका उद्देश्य महामारी के बीच लोगों में विश्वास और सकारात्मकता फैलाना है। इस कार्यक्रम के प्रमुख वक्ताओं में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, विप्रो समूह के अध्यक्ष अजीम प्रेमजी व आध्यात्मिक नेता जग्गी वासुदेव थे।
इससे पहले मोहन भागवत ने हैदराबाद में भारत की 130 करोड़ की आबादी को हिंदू करार दिया था। उन्होंने कहा- "भारत माता का सपूत चाहे वह कोई भी भाषा बोले, किसी भी क्षेत्र का हो, किसी स्वरूप में पूजा करता हो या किसी भी तरह की पूजा में विश्वास नहीं करता हो एक हिंदू है। इस संबंध में संघ के लिए भारत के सभी 130 करोड़ लोग हिंदू समाज हैं"
इंदौर में एक रैली को संबोधित करते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने महिला विरोधी बयान दिया था। उनके अनुसार शादी पति और पत्नी के बीच एक समझौता है। जिसके अनुसार महिला पति की देखभाल के लिए एक करार से बंधी होती है। इंदौर की रैली में उन्होंने कहा -"विवाह पति-पत्नी के बीच एक समझौता है, जिसमें पति-पत्नी का समझौता होता है। तुम मेरा घर संभालो और मुझे सुख दो, मैं तुम्हारे पेट-पानी की व्यवस्था कर लूंगा, तुम्हें सुरक्षित रखूँगा। जब तक पत्नी ऐसा करती है तब तक पति उसको रखता है। यदि पत्नी समझौता पूरा नहीं करती तो उसे छोड़ दो, यदि किसी का पति समझौता पूरा नहीं करता तो उसको छोड़ दो।"
मोहन भागवत ने निर्भया रेप केस के दौरान बलात्कार को लेकर विवादित बयान दिया था। भागवत ने कहा था "रेप की घटनाएं भारत में नहीं इंडिया में ज्यादा होती है। गांव में जाइए और देखिए वहां महिलाओं का रेप नहीं होता। जबकि शहरी महिलाएं रेप का ज्यादा शिकार होती हैं।" इस बयान को बाद में संघ प्रमुख को वापस लेना पड़ा था।
मदर टेरेसा पर लांछन लगाते हुए मोहन भागवत ने कहा था- "मदर टेरेसा की गरीबों की सेवा के पीछे का मुख्य उद्देश्य ईसाई धर्म में धर्मांतरण कराना था।"
इसी के साथ मोहन भागवत संविधान में प्रदान की गई है आरक्षण की व्यवस्था से बिल्कुल भी सहमत नहीं है। संघ के मुखपत्र पांचजन्य ऑर्गेनाइजर में दिए गए इंटरव्यू में मोहन भागवत ने आरक्षण की नीति पर पुनर्विचार करने की बात कही थी।
जब लड़ने को आतुर मोहन भागवत सेना और अपने संगठन के बीच का फर्क ही भूल गये-
2018 में जम्मू के आर्मी कैंप में हुए आतंकवादी हमले पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने एक विवादित बयान दिया था। उन्होंने अपने बयान में कहा- "उनके पास भले ही मिलिट्री संगठन ना हो लेकिन अगर देश को कभी जरूरत पड़ी तो उनके स्वयंसेवक सेना से पहले ही 3 दिन में तैयार हो जाएंगे। यहां पर आर एस एस प्रमुख मोहन भागवत सेना और अपने संगठन के बीच का फर्क ही भूल गए। मोहन भागवत के इस बयान की चौतरफा आलोचना हुई। बाद में आर एस एस की तरफ से उनके बयान पर सफाई पेश की गयी।
मोहन भागवत ही नहीं आर एस एस व उसके के पूर्व सरसंघचालक भी अपने बयानों और को लेकर हमेशा विवादों में रहे हैं। RSS के ऊपर एक ब्राह्मणवादी, जातिवादी, महिलाविरोधी व एक सांप्रदायिक संगठन होने का आरोप लगता रहा है। महिलाओं, पिछड़ी जातियों, दलितों के संघ में प्रतिनिधित्व को लेकर संघ पर लगातार सवाल उठते रहे हैं। महात्मा गांधी का हत्यारा नाथूराम गोडसे भी इसी संगठन से ताल्लुक रखता था।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ वही संगठन है जिसने भारत के राष्ट्रीय ध्वज को सालों तक नहीं अपनाया था। राष्ट्रीय ध्वज के बारे में पूर्व सरसंघचालक माधवराव सदाशिव राव गोलवलकर ने अपनी पुस्तक बंच ऑफ थॉट्स में कहा था- "हमारे नेताओं ने देश के लिए एक नया ध्वज चुना है, आखिर उन्होंने ऐसा क्यों किया? यह केवल पतन और अनुकरण का मामला है, आखिर यह तिरंगा हमारा राष्ट्रीय ध्वज कैसे हो गया?"
भारत की आजादी की लड़ाई में भी आरएसएस ने कभी सहयोग नहीं किया था। अपनी पुस्तक बंच ऑफ थॉट्स में एमएस गोलवलकर ने लिखा है- "अंग्रेजी सत्ता का विरोध देशभक्ति और राष्ट्रवाद कहा जा रहा है। यह एक प्रतिक्रियावादी विचार है। इस विचार का स्वाधीनता आंदोलन, इसके नेताओं और सामान्य जनता पर भयावह प्रभाव पड़ेगा। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के बारे में एमएस गोलवलकर ने लिखा - "सन 1942 में भी अनेकों के मन में तीव्र आंदोलन था, उस समय भी संघ का नित्य कार्य चलता रहा। प्रत्यक्ष रूप से संघ ने कुछ ना करने का संकल्प किया।