Russia Ukraine War : सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहा है, नवीन को आरक्षण ने मारा!
सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहा है, नवीन को आरक्षण ने मारा!
Russia Ukraine War : रूस और यूक्रेन के बीच आठवें दिन भी भीषण जांग जारी है। जंग के बीच खारकीव में फंसे भारतीय छात्र नवीन की मौत एक मार्च को हुई थी। मौत के बाद कर्नाटक के चलागेरी का रहने वाला नवीन शेखरप्पा ( Naveen shekharappa ) के पिता शेखरप्पा ज्ञानगौदर ( Shekharappa Gyangaudar ) ने कहा था मेरे बेटे की मौत जंग की वजह से नहीं, बल्कि जातिवादी शिक्षा व्यवस्था की वजह से हुई है। अब यह मामला सोशल मीडिया ( Social Media ) पर नवीन को आरक्षण ने मारा ( Naveen Ko Arakshan Ne Mara ) हैशटैग से ट्रेंड कर रहा है।
पुष्पेंद्र सिंह @पुशपेन95334005 नाम यूजर ने लिखा - ये है आरक्षण की हकीकत है, लेकिन कोई इस बारे में बात नहीं करता।
फूट डालो और राज करो
योद्धा @Starpandeyspeak नाम ट्विटर यूजर ने लिखा है कि 'फूट डालो और राज करो' आरक्षण की जड़ वायसराय मेयो के बयान में देखी जा सकती है। मेयो ने मुस्लिम शिक्षा की खराब स्थिति पर विलाप करते हुए 29 अगस्त, 1871 को प्रस्ताव पारित किया था। मेयो ने कहा था कि इतना बड़ा और महत्वपूर्ण समूह को किसी भी विद्रोह में भाग नहीं लेना चाहिए।
भारत डिजर्व की जगह रिजर्व पर चल रहा है
#नवीनको_आरक्षण_ने_मारा
— Sunil (@SUNILBHADOO) March 3, 2022
Reservation is Cancer for our Nation. India running on Reserve instead of Deserve. Tell, How does our Nation go ahead? What's use of Merit?
If you agree, Retweet and Like pic.twitter.com/CCyriHrXc3
वहीं सुनील @SUNILBHADOO का कहना है कि आरक्षण हमारे देश के लिए कैंसर है। भारत डिजर्व की जगह रिजर्व पर चल रहा है। बताओ, हमारा राष्ट्र कैसे आगे बढ़ता है? मेरिट का क्या उपयोग है?
दरअसल, नवीन की मौत के बाद गम में डूबे उनके पिता शेखरप्पा ज्ञानगौदर ( Shekharappa Gyangaudar ) ने देश के एजेकुशन सिस्टम पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने बेटे को खोने की वेदना पर काबू पाते हुए सुबकते हुए कहा - टॉपर होने के बावजूद नवीन को सरकारी मेडिकल कॉलेज में सीट नहीं मिल पाई थी। मजबूरन उसे डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए यूक्रेन भेजना पड़ा।
शेखरप्पा ज्ञानगौदर ( Shekharappa Gyangaudar ) ने टाइम्स ऑफ इंडिया से नवीन को यूक्रेन भेजने का जिक्र करते हुए कहा कि हम अपने बेटे के लिए सपने देख रहे थे। अब वे सब टूट चुके हैं। मैंने अपने बेटे को एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए मजबूरी में यूक्रेन भेजा था, क्योंकि एसएसएलसी और पीयूसी एग्जाम में टॉपर होने के बावजूद उसे सरकारी मेडिकल कॉलेज में सीट नहीं मिली थी। समझ में नहीं आता कि ये कौन सी शिक्षा व्यवस्था है जो अपने टॉपर को अपने रुचि के विषय में पढ़ने के लिए प्रवेश तक नहीं देता।
नवीन के पिता शेखरप्पा ज्ञानगौदर ( Shekharappa Gyangaudar ) ने बेटे को यूक्रेन भेजने के लिए अपने मित्रों और रिश्तेदारों से पैसे कर्ज लिए। उनका सपना था बेटे को डॉक्टर बनाना है। उन्होंने कहा था कि एजुकेशन सिस्टम और जातिवाद की वजह से होनहार होने के बावजूद नवीन को एक सीट नहीं मिल सकी। मैं अपने राजनैतिक सिस्टम, शिक्षा व्यवस्था और जातिवाद से निराश हूं। सब कुछ प्राइवेट इंस्टिट्यूट्स के हाथों में है। शिक्षा व्यवस्था मेरिट से नहीं पैसों से संचालित है।