Supreme Court ने NCB से पूछा, अगर आप बिना मुकदमे के सालों तक लोगों को जेल में रख सकते हैं तो ट्रायल की क्या जरूरत?
जनज्वार। सुप्रीम कोर्ट ने एनडीपीएस अधिनियम (Narcotic Drugs And Psychotropic Substances Act) के 66 वर्षीय आरोपी की जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) से कहा कि अगर आप लोगों को सालों तक जेल में डाल रहे हो तो मुकदमे की क्या जरूरत है? आरोपी चार साल से जेल में बंद है। कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि आरोपी 16 अक्टूबर 2017 से हिरासत में है और निकट भविष्य में मुकदमे के पूरा होने की कोई संभावना नहीं है।
सीजेआई जस्टिस एन.वी. रमना (CJI NV Ramana), जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने आरोपी को जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया। बेंच को बताया गया कि याचिकाकर्ता वरिष्ठ नागरिक हैं और सुनवाई में कोई प्रगति नहीं हुई है। एनसीबी की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने कहा कि याचिकाकर्ता 35 किलोग्राम गांजे के साथ एक कमरे में पाया गया जो वाणिज्यिक मात्रा से अधिक है।
कानूनी मामलों की समाचार वेबसाइट लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक इसके बाद सीजेआई रमना (CJI Ramana) ने अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल से कहा कि राजू मैं आपसे पूछना चाहता हूं। आपके अनुसार उन्हें कितने साल तक बिना मुकदमे के जेल में रखा जा सकता है? जवाब में अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल ने कहा कि पांच साल। फिर सीजेआई ने कहा - पांच क्यों? उसे 10 साल के लिए रखें, फिर ट्रायल की कोई आवश्यकता नहीं है। सीजेआई ने आगे कहा कि वह पहले से ही 66 साल का है, जब तक आप अपना ट्रायल पूरा करेंगे तब तक वह वहां नहीं होगा।
विशेष अनुमति याचिका कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta High Court) के 28 जनवरी 2020 के आदेश को चुनौती देते हुए दायर की गई। इसमें याचिकाकर्ता को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा गया कि सह आरोपी के कमरे में 35 किलोग्राम गांजा के साथ उसकी आशंका प्रथम दृष्टया कथित अपराध में उसकी भूमिका खुलासा करती है।
हालांकि हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को हिरासत में लिए जाने की अवधि को ध्यान में रखा और निचली अदालत को गवाहों की शीघ्र परीक्षा सुनिश्चित करने और और एक वर्ष के भीतर मुकदमे को निष्कर्ष सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।