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Secrets of Cricket Administration in India : भारत में क्रिकेट कौन चला रहा है? क्या कागज पर चुनाव कराकर परिवार में ही बांट ली जाती हैं कुर्सियां? जानिए क्या है माजरा?

Janjwar Desk
19 April 2022 3:30 PM IST
Secrets of Cricket Administration in India : भारत में क्रिकेट कौन चला रहा है? क्या कागज पर चुनाव कराकर परिवार में ही बांट ली जाती हैं कुर्सियां
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Secrets of Cricket Administration in India : भारत में क्रिकेट कौन चला रहा है? क्या कागज पर चुनाव कराकर परिवार में ही बांट ली जाती हैं कुर्सियां

Secrets of Cricket Administration in India : वर्तमान में बीसीसीआई के 38 फुल मेंबर्स में से लगभग एक तिहाई लोग किसी पूर्व प्रशासक या प्रभावशाली राजनेताओं के बेटे या रिश्तेदार हैं। यह संख्या बोर्ड के अब तक के इतिहास में सबसे ज्यादा है...

Secrets of Cricket Administration in India : महानाआर्यमान सिंधिया जो केन्द्रीय मंत्री ज्यो​तिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindhiya) के बेटे हैं इसी महीने ग्वालियर डिविजन क्रिकेट एसोसिएशन (Gwalior Division Cricket Association) के उपाध्यक्ष चुने गए हैं। ऐसे समय में जब परिवारवाद किसी राजनीतिक सफलता की गारंटी नहीं मानी जा रही है और खेल के मैदान में भी हर तबके के लोगों को प्रतिनिधित्व मिल रहा है इस खबर को ज्यादा भौंहें नहीं तनी है। पर इस बात को नहीं नकारा जा सकता है कि भारतीय क्रिकेट बोर्ड में यह एक पुरानी परंपरा रही है कि पुत्र अपने पिता के प्रभावशाली पद्चिह्नों को फॉलो करे और क्रिकेट प्रशासन चलाए।

आपको बता दें कि वर्तमान में बीसीसीआई (BCCI) के 38 फुल मेंबर्स में से लगभग एक तिहाई लोग किसी पूर्व प्रशासक (Ex Administrator) या प्रभावशाली राजनेताओं के बेटे या रिश्तेदार हैं। यह संख्या बोर्ड के अब तक के इतिहास में सबसे ज्यादा है। बीसीसीआई के एक पूर्व वरिष्ठ अधिकारी का मानना है कि ऐसे पहले कभी नहीं हुआ था कि इतने सारे एसोसिएशन कोई परिवार चलाए।

आपको बता दें कि भारत के क्रिकेट बोर्ड में यह स्थिति तब है जब जब कुछ वर्ष पूर्व 2016 में सुप्रीम कोर्ट की ओर से बनायी गयी आरएम लोढ़ा कमिटी ने बीसीसीआई का नया संविधान बनाया गया था जिसमें खास तौर पर कहा गया था कि कुछ राज्यों में बोर्ड के सारे सदस्य कुछ परिवारों के एक सिर्फ एक ही परिवार से आते हैं। ऐसे में क्रिकेट प्रशासन की पूरी ताकत सिर्फ कुछ लोगों के हाथों में समाहित हैं।

इसके अनुसार बीसीसीआई बोर्ड (BCCI) के सदस्य की अधिकतम उम्र सीमा 70 वर्ष तय की गयी। यह भी नियम बनाया गया कि लगातार छह सालों तक बोर्ड में सदस्य रहने के बाद क्रिकेट प्रशासकों को 3 साल के कूलिंग आॅफ पीरियड में रहना होगा। इसी नियम ने क्रिकेट प्रशासकों को अपनी अगली पीढ़ी को अपनी जिम्मेदारी सौंपने का रास्ता दे दिया। इसके बाद कई पुत्र अपने पिता की विरासत को संभालते नजर आए। इनमें कुछ प्रमुख नाम ये हैं-

जय शाह : वर्तमान में बीसीसीआई सचिव हैं। गुजराज क्रिकेट एसोसिएशन के पूर्व संयुक्त सचिव रह चुके हैं। वे गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष और वर्तमान में देश के गृह और सहकारिता मंत्री हैं।

अरुण धूमल : बीसीसीआई के कोषाध्यक्ष हैं। वे पूर्व बीसीसीआई अध्यक्ष और देश के सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर के भाई हैं।

महाना आर्यमाना सिंधि​या : ग्वालियर डिविजन क्रिकेट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष चुने गए हैं। वे एमपी क्रिकेट एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष और वर्तमान में देश के केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के बेटे हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया चंबल क्रिकेट एसोसिएशन के भी अध्यक्ष हैं।

धनराज नाथवानी : गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष हैं। वे गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के पूर्व उपाअध्यक्ष परिमल नाथवाणी के बेटे हैं।

प्रणव अमीन : बड़ोदा क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं। उनके पिता चिरायू अमीन बड़ोदा क्रिकेट एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष और आईपीएल के अंतरिम चेयरमैन रह चुके हैं।

अजीत लेले : बड़ोदा क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव हैं। उनके पिता दिवंगत जयवंत लेले बीसीए के अध्यक्ष और बीसीसीआई के सचिव रह चुके हैं।

जयदेव शाह : सौराष्ट्र क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं। उनके पिता निरंजन शाह सौराष्ट्र क्रिकेट एसोसिएशन और बीसीसीआई के सचिव रह चुके हैं।

अभिषेक डालमिया : बंगाल क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं। वे दिग्गज क्रिकेट प्रशासक और बंगाल क्रिकेट एसोसिएशन, बीसीसीआई और आईसीसी के अध्यक्ष रह चुके जगमोहन डालमिया के पुत्र हैं।

सौरव गांगुली : बीसीसीआई के अध्यक्ष हैं। उनके भाई स्नेहाशीष गांगुली बंगाल क्रिकेट एसोसिएशन में मानद सचिव हैं। उनके चाचा देबाशीष गांगुली बंगाल क्रिकेट एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष हैं। सौरव गांगुली बीसीसीआई का अध्यक्ष चुने जाने के पूर्व सीएबी के सचिव और अध्यक्ष पद पर रह चुके हैं।

रोहन जेटली : दिल्ली और जिला क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं। वे दिवंगत भाजपा नेता और पूर्व मंत्री अरुण जेटली के पुत्र हैं। अरुण जेटली डीडीसीए अध्यक्ष और आईपीएल गर्वनिंग काउंसिल के सदस्य रह चुके थे।

अद्वैत मनोहर : ​विदर्भ क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं। उनके पि​ता शशांक मनोहर वीसीए, बीसीसीआई और आईसीसी के अध्यक्ष रह चुके हैं।

संजय बहेरा : ओड़िसा क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव हैं। उनके पिता आशीर्वाद बहेरा भी ओसीए के सचिव रह चुके हैं।

माहिम वर्मा : क्रिकेट एसोसिएशन आॅफ उत्तराखंड के सचिव हैं। उनके पिता पीसी वर्मा भी सीएयू के सचिव रह चुके हैं।

निधिपति सिंघानिया (जेके ग्रुप) : उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं। उनके चाचा दिवंगत यदुपति सिंघानियां भी यूपीसीए के अध्यक्ष रह चुके थे।

विपुल फडके : गोवा क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव हैं। उनके पिता विनोद फडके गोवा क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव रह चुके हैं।

केचांगुली रियो : नागालैंड क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं। उनके पिता नैफियू रियो नागालैंड क्रिकेट एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष और नागालैंड के मुख्यमंत्री हैं।

कागजों पर तो इन सारे लोगों की नियुक्ति एक चुनाव के माध्यम से हुई है, पर सच्चाई तो यही है कि बोर्ड की इन सारी यूनिट्स में यह चुनाव केवल कागजों पर ही हुआ है। वास्तव में सत्ता का यह हस्तांरण बड़े ही आसान तरीके से आने वाली पीढ़ी को कर दिया गया। क्योंकि इस पूरी लिस्ट में जिन दिग्गज वेटरन क्रिकेट प्रशासकों के नाम है उन्होंने पहले सही इसकी तैयारी कर रखी थी।

वर्षों से ये सारे क्रिकेट प्रशासन अपनी इकाइयों में महत्वपूर्ण नियुक्तियां कर रहे थे। उन्होंने जिला क्रिकेट एसोसिएशनों, क्लबों और इंडिविजुअल सदस्यों को पक्ष में वोट डालने के लिए प्रेरित किया। बीसीसीआई के एक पूर्व अधिकारी यह मानते हैं कि ज्यादातर क्रिकेट एसोसिएशन निजी क्लबों के रूप में चलाए जा रहे थे, किसी बाहरी के लिए उसमें प्रवेश पाना बहुत कठिन था।

लोग मानते हैं कि क्रिकेट प्रशासन में बेटों और रिश्तेदारों की इंट्री के लिए ताकवतर राजनेताओं और क्रिकेट प्रशासकों की ओर से पहले से ही रास्ते तैयार कर लिए जाते हैं। उदाहरण के लिए राजस्थान में कांग्रेस के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत प्रदेश में क्रिकेट के प्रभारी हैं।

मध्य प्रदेश में भी क्रिकेट प्रशासन पर सत्ता और राजवंश का समानांतर प्रभाव रहता है। ग्वालियर डिविजन के अध्यक्ष प्रशांत मेहता मानते हैं कि महानाआर्यमान की नियुक्ति के लिए केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की ओर से अनुमति मिली थी। वे बताते हैं कि हाउस की ओर से अध्यक्ष का चुनाव किया जाता है उसके बाद अध्यक्ष अपनी ​मैनेजिंग कमिटी को नियुक्त करने के लिए अधिकृत होता है।

ज्योतिरादित्य सिंधिया को अध्यक्ष चुना गया था, पर उन्होंने मना कर दिया और मुझे यह पद सौंप दिया। उसके बाद उन्होंने जो मैनेजिंग कमिटी बनायी उसमें महानाआर्यमान को उपाध्यक्ष के रूप में शामिल किया गया। इंडियन एक्सप्रेस के साथ बातची में मेहता ने बताया कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर डिविजन के संरक्षक और चंबल डिविजन के अध्यक्ष हैं।

आपको बता दें कि केन्द्रीय गृह मंत्री अमित के पुत्र जय शाह बीसीसीआई का सचिव चुने जाने से पहले गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के संयुक्त सचिव के पद पर थे। उनके पिता अमित शाह पूर्व में गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष रह चुके हैं।

सौराष्ट्र क्रिकेट एसोसिएशन में पूर्व रणजी कप्तान जयदेव शाह अध्यक्ष हैं। उनके पिता निरंजन शाह एससीए में चार दशकों तक अध्यक्ष रहे हैं। वे बीसीसीआई में भी सचिव के पद पर रह चुके हैं। इस मुद्दे पर संपर्क करने पर उन्होंने इस चलन का बचाव करते हुए कहा कि कोई किसी को चुनाव में खड़ा होने से कौन रोक सकता है? अगर कोई सक्षम प्रशासक है और खेल के प्रति उसके मन में लगाव है तो यह बात मायने नहीं रखती है कि वह किसी पूर्व प्रशासक या अधिकारी का रिश्तेदार है।

मैं लोढ़ा कमिटी के नियमों के मुताबिक रिटायर हो गया हूं। पर एक संस्था जिसे बनाने में वर्षों लगे हैं उन्हें गलत हाथों में जाने ​नहीं दिया जाना चाहिए। निरंजन शाह ने यह भी कहा कि मेरा पुत्र प्रथम श्रेणी ​क्रिकेट का खिलाड़ी रहा है, उसकी अपनी एक अलग पहचान है। वह क्रिकेट को प्रमोट भी करना चाहता है, ऐसे में उसकी नियुक्ति सही है।

निहाल कोसी और देवेंद्र पांडेय की यह रिपोर्ट द इंडियन एक्सप्रेस में अंग्रेजी में प्रकाशित हो चुकी है।

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