Sunil Kumar Mahto : कौन हैं सुनील कुमार महतो जिसने हिला दी हेमंत सोरेन की मुख्यमंत्री की कुर्सी!
Jharkhand News : झारखंड की राजनीति में भूचाल आया है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की कुर्सी जाती दिख रही है। झारखंड में आज जितनी चर्चा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी कुर्सी को लेकर है ठीक उतनी ही चर्चा में सुनील कुमार महतो भी बने हुए हैं। ऐसे में यह सवाल भी उठता है कि आखिर कौन हैं सुनील कुमार महतो। जिन्होने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की कुर्सी तक हिला कर रख दी है।
Who Is Sunil Kumar Mahto : कौन हैं सुनील कुमार महतो
रांची निवासी सुनील कुमार महतो पेशे से हाइकोर्ट के अधिवक्ता के अलावा कद्दावर RTI एक्टिविस्ट हैं। वे 2005 से RTI पर काम कर रहे हैं। साल 2008 में अरविन्द केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के सम्पर्क में आये। 2009 में उन्हें एनडीटीवी RTI अवार्ड और 2016 में केंद्र सरकार की RTI फेलोशिप से नवाजा गया। इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन में झारखंड में सुनील ने अग्रणी भूमिका निभाई थी। इतना ही नहीं, साल 2016 में केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा का मंत्रालय भी उनके द्वारा किये गये खुलासे के बाद बदला गया था।
सेवानिवृत्त शिक्षक पिता और गृहिणी माता के पुत्र सुनील कुमार का जन्म रांची जिले के ही सिल्ली प्रखंड अंतर्गत हजाम गाँव में हुआ था। जनज्वार से बात करते हुए सुनील कुमार यह कहना नहीं भूलते कि उनका गांव आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। उन्होने खुद ही गांव में बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के लिए इसी साल स्कूल शुरू किया है।
पत्रकार पुष्य मित्र ने लिखा है, एक आरटीआई कार्यकर्ता कैसे मुख्यमंत्री तक को भ्रष्टाचार की सजा दिला सकता है इसका उदाहरण इन दिनों झारखंड में नजर आ रहा है। खुद मुख्यमंत्री रहते हुए हेमंत सोरेन ने खनन पट्टा अपने नाम आवंटित करा लिया था। मेरे रांची के दिनों के पुराने मित्र Sunil Kumar Mahto को यह जानकारी मिली। फिर उन्होंने राज्यपाल से जनवरी महीने में लिखित शिकायत की। उन्हीं की शिकायत पर चुनाव आयोग ने संभवतः हेमंत सोरेन की विधायकी को अयोग्य ठहरा दिया है। ऐसा नहीं है कि सुनील भाई राजनीतिक तौर पर हेमंत के विरोधी या भाजपा समर्थक हैं। बस वे भ्रष्टाचार के मसले पर सक्रिय और मुखर रहते हैं। रांची में पत्रकारिता करते वक्त कई खबरों में उनसे मदद मिलती थी। आज जो उनकी मुहिम रंग लाई है तो उनके लिए मन में सम्मान और बढ़ गया है। शुभकामनाएं।
आकाशवाणी के पत्रकार उदय झा लिखते हैं, झारखंड की राजनीति में अभी उथल पुथल मची हुई है। किस तरह एक आम इंसान मुख्यमंत्री की कुर्सी तक हिला सकता है ये Sunil Kumar Mahto ने साबित कर दिया। दरअसल सुनील जी एक आरटीआई कार्यकर्ता हैं उन्हें ये जानकारी मिली कि मुख्यमंत्री रहते हुए हेमंत सोरेन ने खनन पट्टा अपने नाम आवंटित करा लिया था फिर उन्होंने राज्यपाल से कई दस्तावेज के साथ इसकी लिखित शिकायत 20 जनवरी 2022 को की। उन्हीं की शिकायत पर चुनाव आयोग ने संभवतः हेमंत सोरेन की विधायकी को अयोग्य करार दिया है। सुनील जी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ सिर्फ लड़ाई नहीं लड़ी बल्कि एक आम इंसान के अंदर हौसला भरा है उन्हें ताक़त दिया है कि किसी भी मज़बूत इंसान के खिलाफ़ कोई भी बात मज़बूती से रख पाए, किसी भी गलत चीजों का बहिष्कार कर सके उसे टोक सके। सुनील जी किसी पार्टी के समर्थक और विरोधी नहीं हैं बस भ्रष्टाचार के विरूद्ध हमेशा मुखर रहे हैं।
सोरेन को लेकर किया था यह खुलासा
सुनील कुमार महतो ने RTI के जरिए यह खुलासा किया था, जो रांची के अनगड़ा प्रखंड में 88 डेसमिल पत्थर खदान खनन की लीज से जुड़ा है। जिसके बिहाफ पर बीजेपी ने आरोप लगाया था कि हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री और खनन मंत्री का पद संभालते हुए अपने नाम लीज आवंटित किया। वहीं हेमंत सोरेन की दलील थी कि यह लीज उन्हें 14 साल पहले 17 मई 2008 को 10 साल के लिए मिली थी। 2018 में इसे रिन्यू नहीं किया गया। फिर 2021 में लीज को रिन्यू किया गया, लेकिन 4 फरवरी तक प्रशासन ने खनन की अनुमति नहीं दी तो उन्होंने लीज सरेंडर कर दिया। सोरेन ने दलील दी थी कि उन्होंने खनन नहीं किया और उनके पास कोई माइनिंग लीज भी अब नहीं है। सुनील कुमार महतो के इस खुलासे की लीड भाजपा ले गई।
शिकायत के बाद चुनाव आयोग का कदम
हेमंत सोरेन से जुड़े खनन पट्टा मामले में 22 अगस्त को चुनाव आयोग में सुनवाई पूरी हो गई थी, जिसके बाद रिपोर्ट को सीलबंद लिफाफे में राज्यपाल को भेज दिया गया। भाजपा ने जनप्रतिनिधित्व कानून का हवाला देते हुए उन्हें विधायक के रूप में अयोग्य ठहराने की मांग की थी। चुनाव आयोग ने झारखंड के राज्यपाल रमेश बैश को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता रद्द करने की सिफारिश की है। अब यह राज्यपाल पर निर्भर है कि वे चुनाव आयोग की सिफारिश पर क्या कदम उठाते हैं। बता दें कि विधायकी जाने पर सोरेन को सीएम की कुर्सी छोड़नी होगी। चर्चा यह भी है कि वे अपनी पत्नी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा सकते हैं।