Supreme Court : सभी हाईकोर्ट 28 दिन में एमपी-एमएलए के खिलाफ लंबित मामलों का ब्यौरा करें जमा
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ( Supreme court ) ने सांसदों और विधायकों के लंबित मामलों में तेजी लाने के मसकद सभी हाईकोर्ट से डिटेल में ब्यौरा मांगा है। हाईकोर्ट से 4 सप्ताह के अंदर उन सांसदों और विधायकों के खिलाफ पांच साल से अधिक समय से लंबित आपराधिक मामलों और उनके शीघ्र निपटारे के लिए उठाए गए कदमों को बारे में जानकारी देने को भी कहा है।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने अपने 10 अगस्त 2021 के आदेश को भी संशोधित करते हुए कहा था कि सांसदों और विधायकों के खिलाफ मामलों की सुनवाई कर रहे न्यायिक अधिकारियों को कोर्ट की पूर्व अनुमति के बिना नहीं बदला जाना चाहिए। पीठ ने न्याय मित्र और वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया की दलील को गंभीरता से लेते हुए ये आदेश दिए हैं।
न्याय मित्र विजय हंसारिया ने कहा कि पदोन्नति या स्थानातंरण के चलते कई न्यायिक अधिकारियों द्वारा विशेष अदालत के प्रभार से मुक्त होने के लिए आवेदन दायर किए जा रहे हैं। उसके बाद डीवाई चंद्रचूड़की पीठ ने 10 अगस्त 2021 के आदेश में संशोधन करते हुए कहा कि हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ऐसे न्यायिक अधिकारियों के स्थानांतरण का आदेश देने के लिए स्वतंत्र होंगे।
चुनाव लड़ने पर लगे आजीवन प्रतिबंध
जस्टिस चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा कि चार सप्ताह के अंदर सभी हाईकोर्ट एक हलफनामा दाखिल करें जिसमें सांसदों और विधायकों के खिलाफ पांच साल से अधिक समय से लंबित आपराधिक मामलों की संख्या और उनके त्वरित निपटारे के लिए उठाए गए कदमों का जिक्र हो। सुप्रीम कोर्ट ने अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर 2016 की जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद ये आदेश दिए हैं। अधिवक्ता उपाध्याय ने 6 साल पहले आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए जाने पर नेताओं के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग की थी।
हर मामले में सीधे सुप्रीम कोर्ट आने की जरूरत नहीं
वहीं जस्टिस जस्टिस एसके कौल और जस्टिस अभय एस ओका ने एक अन्य मामले में कहा कि कोर्ट के पूर्व निर्णय को लागू करवाने के लिए यह याचिका दायर हुई है। इसके लिए याची चुनाव आयोग के समक्ष अर्जी दे सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट सीधे चले आने की जगह नहीं है। इस मामले में याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने मांग की थी कि चुनाव के दौरान प्रत्याशियों के चयन और आपराधिक रिकॉर्ड का ब्यौरा राजनीतिक दल पार्टी की आधिकारिक वेबसाइट के होम पेज पर जारी करें लेकिन शीर्ष अदालत ने याची के उक्त मांग वाली याचिका को खारिज कर दी। इस मामले में पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष होने के नाते जस्टिस कौल ने प्रवेश नीति संबंधी याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। बता दें कि दिल्ली हाईकोर्ट ने 12 सितंबर को एक ईसाई अल्पसंख्यक समुदाय संस्थान को दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा तैयार की गई प्रवेश नीति का पालन करने के लिए कहा था, जिसके अनुसार अपने स्नातक पाठ्यक्रमों में गैर-अल्पसंख्यक छात्रों को प्रवेश देने के लिए कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट -2022 के स्कोर को 100 प्रतिशत वेटेज देना होता है। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि कॉलेज गैर-अल्पसंख्यक श्रेणी के छात्रों के लिए अलग से साक्षात्कार आयोजित नहीं कर सकता है। प्रवेश केवल सीयूईटी स्कोर के अनुसार होना चाहिए।