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राष्ट्रीय

Supreme Court के जज के रूप में जेबी परदीवाला और सुधांशु धूलिया की पदोन्नति, कॉलेजियम की सिफारिशों को केंद्र ने दी मंजूरी

Janjwar Desk
7 May 2022 12:31 PM GMT
Supreme Court के जज के रूप में जेबी परदीवाला और  सुधांशु धूलिया की पदोन्नति, कॉलेजियम की सिफारिशों को केंद्र ने दी मंजूरी
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Supreme Court के जज के रूप में जेबी परदीवाला और सुधांशु धूलिया की पदोन्नति, कॉलेजियम की सिफारिशों को केंद्र ने दी मंजूरी

Supreme Court : मंत्रालय के तहत न्याय विभाग ने दोनों जजों की पदोन्नति की पुष्टि की है। वलसाड के मूल निवासी और 1965 में बॉम्बे में जन्मे जस्टिस परदीवाला के 2023 तक अपनी सेवानिवृत्ति तक सुप्रीम कोर्ट में सेवा देने की उम्मीद है।

Supreme Court : केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय (Ministry of Law And Justice) ने शनिवार को एक अधिसूचना जारी कर दो जजों की सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) में नियुक्ति की पुष्टि की है। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम (Supreme Court Collegium) ने गौहाटी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सुधांशु धूलिया (Justice Sudhanshu Dhulia) और गुजरात हाईकोर्ट के जस्टिस जमशेद बुरजोर परदीवाला (Justice J.B. Pardiwala) के नामों की सिफारिश की थी।

मंत्रालय के तहत न्याय विभाग (Deparment Of Justice) ने दोनों जजों की पदोन्नति की पुष्टि की है। इसके अलावा एक दूसरी अधिसूचना में एन.के. सिंह को गौहाटी हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस नियुक्त किया गया है। एन.के. सिंह जस्टिस सुधांशु धूलिया की जगह लेंगे।


बता दें कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम (Supreme Court Collegeum) ने गुरुवार 5 मई को जस्टिस सुधांशु धूलिया (Justice Sudhanshu Dhulia) और जस्टिस जमशेद बुरजोर परदीवाल (Justice J.B. Pardiwala) के नामों की सुप्रीम कोर्ट के लिए सिफारिश की थी। कॉलेजियम, जिसमें भारत की मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस यू.यू. ललित, जस्टिस ए.एम.खानविलकर, जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस एल. नागेश्वर राव शामिल थे, ने केंद्र सरकार से इन दोनों नामों की नियुक्ति के प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की सिफारिश की थी।

कौन हैं जस्टिस सुधांशु धूलिया

जस्टिस धूलिया उत्तराखंड निवासी हैं। वह दूसरी पीढ़ी के कानूनी पेशेवर हैं जो 1986 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में बार में शामिल हुए और 2000 में इसके गठन पर अपने गृहराज्य उत्तराखंड स्थानांतरित हो गए। वह उत्तराखंड हाईकोर्ट में पहले मुख्य स्थायी वकील रहे और बाद में उत्तराखंड राज्य के लिए एक अतिरिक्त महाधिवक्ता रहे। उन्हें 2004 में वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया। 2008 में उन्हें उत्तराखंड हाईकोर्ट के जज के रूप में पदोन्नत किया गया था। बाद में 10 जनवरी 2021 को असम, मिजोरम, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश के हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने।

इसी साल फरवरी में चीफ जस्टिस धूलिया की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने असम सरकार के एक कानून को बरकरार रखा था जिसमें सरकारी मदरसों को नियमित स्कूलों के रूप में परिवर्तित किया गया था, जिसमें कहा गया था कि ऐसे राज्य वित्त पोषित संस्थान धार्मिक निर्देश नहीं दे सकते। सुप्रीम कोर्ट में उनकी नियुक्ति को मंजूरी मिलने के बाद अब उनका कार्यकाल 9 अगस्त 2025 तक रहेगा।


जस्टिस परदीवाला के बारे में

वलसाड के मूल निवासी और 1965 में बॉम्बे में जन्मे जस्टिस जेबी परदीवाला के 2030 तक अपनी सेवानिवृत्ति तक सुप्रीम कोर्ट में सेवा देने की उम्मीद है। जस्टिस परदीवाला (Justice J.B. Pardiwala) वकीलों के परिवार में चौथी पीढ़ी के कानूनी पेशेवर हैं। उनके पिता ने वलसाड और नवसार जिलों में वकालत की थी। वह कुछ समय के लिए गुजरात की सातवीं विधानसभा के अध्यक्ष रूप में भी कार्य कर चुके हैं। जस्टिस परदीवाला ने 1990 में गुजरात हाईकोर्ट में कानून का अभ्यास करना शुरू किया। उन्हें 1994 में गुजरात की बार काउंसिल का सदस्य चुना गया था। उन्हें 2002 में गुजरात हाईकोर्ट के लिए स्थायी वकील के रूप में नियुक्त किया गया था और बेंच में पदोन्नति की तारीख 17 फरवरी 2011 तक इस पद पर रहे। जस्टिस परदीवाला विभिन्न विषयों पर करीब 1012 फैसले लिख चुके हैं।

आरक्षण के खिलाफ टिप्पणी

साल 2015 में 58 राज्यसभा सांसदों ने सभापति और पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के समक्ष एक याचिका दायर की थी जिसमें आरक्षण के खिलाफ कथित टिप्पणी के लिए जस्टिस परदीवाला को हटाने की मांग की थी। हालांकि जस्टिस परदीवाला ने राज सरकार के एक आवेदन पर अपनी टिप्पणी को तुरंत हटा दिया। परिणामस्वरूप उनके खिलाफ राज्यसभा के सांसदों की याचिका पर विचार नहीं किया गया था।

खबरों के मुताबिक जस्टिस परदीवाला ने आरक्षण के खिलाफ टिप्पणी तब की थी जब वह पटेल आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल की याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। तब उन्होंने कहा था कि यदि मुझे पूछा जाए कि कौन सी दो बातें हैं जिन्होंने देश को बर्बाद किया। या सही दिशा में देश की प्रगति में बाधा पैदा की। तब मेरा जवाब होगा- पहला आरक्षण और दूसरा भ्रष्टाचार। हमारा संविधान बना था, तब आरक्षण दस साल के लिए रखा था लेकिन दुर्भाग्य से आजादी के 65 साल बाद भी आरक्षण बना हुआ है।

मेरिटल रेप पर विवादित फैसला

पत्नी के साथ बिना अनुमति शारीरिक संबंध बनाने के मामले में साल 2018 में जस्टिस परदीवाला ने ही फैसला सुनाया था कि अगर कोई व्यक्ति पत्नी की इच्छा के बिना शारीरिक संबंध बनाता है तो इसे रेप नहीं माना जाएगा। जस्टिस परदीवाला ने कहा था कि अगर पत्नी की उम्र 18 साल से ज्यादा है और उसका पति उससे संबंध बनाता है तो वह अपने पति पर वैवाहिक बलात्कार यानी मैरिटल रेप का आरोप नहीं लगा सकती। उन्होंने कहा था कि आईपीसी सेक्शन 375 के मुताबिक पत्नी द्वारा पति पर लगाए गए रेप के आरोप दंडनीय नहीं हैं। इस सेक्शन में रेप को परिभाषित किया गया है। यह कानून महिला को अपने पति पर रेप का आरोप लगाने की अनुमति नहीं देता।

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