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राष्ट्रीय

Supreme Court : स्टेट्स-यूटी की सरकारें 21 दिनों के अंदर करें ये काम, धारा-66ए के तहत FIR गंभीर चिंता का विषय

Janjwar Desk
7 Sep 2022 6:33 AM GMT
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Supreme court : देश की शीर्ष अदालत ने कहा कि सात साल पहले 66ए को खत्म करने की आधिकारिक घोषणा के बाद भी इस धारा में केस दर्ज होना आश्चर्यजनक है।

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ( supreme Court ) ने 6 जुलाई को साफ कर दिया है कि आईटी एक्ट ( IT act 2015 ) की धारा 66ए ( section 66a ) के तहत केस ( FIR ) दर्ज करने पर सात साल पहले रोक लगने के बावजूद अब भी उन्हीं मामलों में केस दर्ज होना गंभीर चिंता का विषय है। जबकि इसे 2015 में गैर कानूनी घोषित कर दिया गया था। सूप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) ने संबंधित राज्यों के मुख्य सचिवों को तीन हफ्ते के भीतर मामले को वापस लेने का निर्देश जारी किया। पिछले साल पांच जुलाई 2022 को भी शीर्ष अदालत ने कहा था कि यह चौंकाने वाली बात है कि आईटी एक्ट की धारा 66ए को हटाने के बाद भी लोगों पर केस दर्ज हो रहे हैं।

ऐसे हुआ इस मामले का खुलासा

साथ ही मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित और जस्टिस एस रवींद्र भट की पीठ ने केंद्र सरकार से कहा कि वह राज्यों से इस प्रावधान का इस्तेमाल नहीं करने के लिए राज्य सरकारों को निर्देश जारी करे। इसके अलावा केंद्र सरकार के वकील जोहेब हुसैन को संबंधित राज्यों के मुख्य सचिवों से संपर्क करने का निर्देश भी दिया है। पीठ ने कहा कि अदालत अब इस मामले पर तीन हफ्ते के बाद विचार करेगी। सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) ने यह आदेश तब दिया है जब याचिकाकर्ता संगठन पीयूसीएल की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील संजय पारिख ने श्रेया सिंघल मामले में फैसला आने के बाद भी आईटी एक्ट की धारा-66ए के तहत दर्ज मामलों का ब्योरा पेश किया।

देशभर में हजारों केस दर्ज

याचिकाकर्ता संगठन पीयूसीएल ने दावा किया कि सुप्रीम कोर्ट ( supreme Court ) के फैसले के बाद भी देश में हजारों मामले ( FIR ) दर्ज किए गए। इसमें झारखंड में इस प्रावधान के तहत 40 मामले अदालतों में लंबित हैं जबकि मध्य प्रदेश में 145 मामलों पर राज्य मशीनरी ने संज्ञान लिया और 113 मामले अदालतों में लंबित हैं।

क्या है धारा 66ए

दरअसल, आईटी एक्ट 2015 की धारा 66ए ( Section 66a ) के तहत कंप्यूटर डिवाइस के माध्यम से झुंझलाहट, असुविधा, खतरा, बाधा, अपमान, आपराधिक धमकी, दुश्मनी, घृणा या दुर्भावना आदि के मकसद से आपत्तिजनक संदेश भेजने पर तीन साल की कैद और जुर्माना का प्रावधान था। 2015 में शीर्ष अदालत ने इस प्रावधान को असंवैधानिक घोषित कर दिया था।

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