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राष्ट्रीय

1 करोड़ गरीबों को रसोई गैस कनेक्शन का लक्ष्य, उज्ज्वला के रास्ते फिर भाजपा तय कर पायेगी अपना भविष्य ?

Janjwar Desk
13 Aug 2021 2:21 PM GMT
1 करोड़ गरीबों को रसोई गैस कनेक्शन का लक्ष्य, उज्ज्वला के रास्ते फिर भाजपा तय कर पायेगी अपना भविष्य ?
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(उज्ज्वला योजना का लोगों पर कितना प्रभाव पड़ेगा इसका अंदाजा लगाना आसान नहीं है)

उज्ज्वला योजना के दूसरे चरण का फायदा लेने के लिए प्रवासियों को राशन कार्ड और एड्रेस प्रूफ की जरूरत नहीं होगी। जरूरतमंद परिवार अब खुद के सेल्फ डिक्लेरेशन देकर भी इस योजना का फायदा ले सकते हैं.....

जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट

जनज्वार। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए उज्ज्वला योजना के पार्ट टू अभियान की छह दिन पूर्व शुरूआत की थी। अगले वर्ष 2022 में देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसके चंद माह पूर्व योजना की शुरूआत करने के पीछे कुछ लोग इसे गरीबों के वोट बैंक को साधने की एक बार फिर कोशिश के रूप में देख रहे हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि उज्ज्वला के रास्ते फिर भाजपा अपना उज्ज्वल भविष्य तय कर पाएगी। इसे समझने के लिए उज्ज्वला कनेक्शन धारियों की स्थिति का आकलन करना जरूरी है।

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भाजपा किसी भी कीमत पर सत्ता बरकरार रखे, यह आगे के चुनावी भविष्य के लिहाज से उसके लिए बहुत जरूरी है। देशभर में एक करोड़ गरीबों को उज्ज्वला योजना का कनेक्शन देने का लक्ष्य तय किया गया है। इसकी शुरूआत यूपी के महोबा जिले में 1 हजार महिलाओं को नए कनेक्शन देकर की गई। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिेए शुरू की गई इस योजना के समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री केशव मौर्य व दिनेश शर्मा भी शामिल रहे। योजना के तहत फ्री कनेक्शन के साथ भरा हुआ सिलेंडर भी फ्री में मिलेगा। वित्तीय वर्ष 2021-22 में इस योजना के तहत 1 करोड़ कनेक्शन बांटने के लिए अलग से फंड जारी किया गया है। गैस कनेक्शन कम आय वाले उन परिवारों को दिए जाएंगे, जो उज्ज्वला योजना के पहले चरण में शामिल नहीं हो सके थे।

चुनावों के साथ प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना का दिखा नाता

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना को भाजपा के चुनावी रणनीति के साथ ऐसे ही जोड़कर नहीं देखा जा रहा है। वर्ष 2016 में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना की शुरूआत की गई। इसके एक वर्ष के अंदर ही उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में चुनाव होने थे।चुनावी विश्लेषकों का कहना है कि यह योजना वोट बैंक तैयार करने के लिहाज से प्रमुख साबित हुई। जिसका नतीजा रहा कि पंजाब को छोडकर अन्य राज्य में बीजेपी को जीत मिली। इसके बाद भी कनेक्शन जारी करने का क्रम चलता रहा।

लोकसभा चुनाव के दौरान भी इसे जारी रखते हुए भाजपा सरकार ने गरीबों की एक बड़ी संख्या को अपने पक्ष में करने में कामयाब रही। आंकड़ों पर गौर करें तो इसके तहत 5 करोड़ गरीब परिवार की महिलाओं को गैस कनेक्शन बांटने का लक्ष्य रखा गया था। इसके बाद वर्ष 2018 में इस योजना को आगे बढ़ाते हुए 7 और कैटेगरी की महिलाओं को इसका फायदा दिया गया। इसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अंत्योदय अन्न योजना, अति पिछड़ा वर्ग, चाय बगान वर्कर, वनवासी और द्वीपों में रहने वाले लोगों को भी शामिल किया था।

अब कनेक्शन के लिए एड्रेस प्रूफ की बाध्यता समाप्त

उज्ज्वला योजना के दूसरे चरण का फायदा लेने के लिए प्रवासियों को राशन कार्ड और एड्रेस प्रूफ की जरूरत नहीं होगी। जरूरतमंद परिवार अब खुद के सेल्फ डिक्लेरेशन देकर भी इस योजना का फायदा ले सकते हैं। कनेक्शन के लिए महिला की आयु 18 वर्ष से ज्यादा होनी चाहिए। योजना के अंतर्गत प्रति कनेक्शन पर 1,600 रुपये का खर्च आएगा। इससे घरों में खाना बनाने में शत प्रतिशत स्वच्छ ईंधन का लक्ष्य पूरा हो जाएगा।

सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि घरेलू एलपीजी गैस कनेक्शन के दायरे से बाहर रह गए करीब एक करोड़ परिवारों की जरूरत अगले दो वर्षों में पूरी कर दी जाएगी। सभी परिवारों को यह कनेक्शन मुफ्त में उपलब्ध कराया जाएगा। पहली फरवरी को पेश केंद्रीय बजट में इसका उल्लेख किया गया था। उज्ज्वला योजना की सफलता से देश में एलपीजी कनेक्शन धारक परिवारों की संख्या 29 करोड़ तक पहुंच चुकी है। इस योजना के तहत आठ करोड़ गैस कनेक्शन बांटे गए हैं।

निशुल्क कनेक्श्नधारियों को नहीं मिलती सब्सिडी की धनराशि

गरीबों को निश्शुल्क गैस कनेक्श्न देने की बात करनेवाली सरकार धीरे-धीरे माफ की गई रकम को वसूल लेती है। सामाजिक कार्यकर्ता दीपक दीक्षित कहते हैं कि सरकार इस योजना का खुब प्रचार प्रसार कर गरीबों की हितैषी होने की तमाम बातें कर ले,पर असली सच कुछ और ही है। उज्ज्वला के कनेक्शनधारियों से सोलह सौ रूपये सरकार शुरूआत में नहीं लेती है। लेकिन इन्हें गैस सिलेंडर पर मिलनेवाली सब्सिडी की धनराशि से वंचित रखा जाता है।

यह धनराशि तब तक गरीबों को नहीं मिलती है,जब तक की प्रत्येक सिलेंडर पर मिलनेवाली सब्सिडी की रकम कुल सोलह सौ रूपये न हो जाए। इस तरह धीरे-धीरे निर्धारित कनेक्शन का मुल्य ले लिया जाता है। कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता व देवरिया जिलाध्यक्ष रामजी गिरि कहते हैं कि यह एक तरह से उपभोक्ताआंे के साथ धोखा है। सरकार चुनाव आने पर इस योजना का एक बार फिर प्रचार प्रसार कर गरीबों को गुमराह करने में लगी है।

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने केंद्र सरकार की उज्ज्वला योजना को लेकर निशाना साधा है। प्रियंका गांधी वाड्रा ने दावा किया है कि इस स्कीम के तहत गरीब परिवारों को मिले 90 फीसदी सिलेंडर धूल खा रहे हैं।

सिलेंडर के दाम 7 सालों में दुगने और सब्सिडी न के बराबर

कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने कहा है कि 'उज्ज्वला में मिले 90 प्रतिशत सिलेंडर धूल खा रहे हैं और महिलाएं चूल्हे पर खाना बनाने को मजबूर हैं क्योंकि भाजपा सरकार ने सिलेंडर के दाम 7 सालों में दुगने और सब्सिडी न के बराबर कर दी है।'

प्रियंका गांधी ने ट्वीट कर कहा, 'अगर उज्ज्वला को लेकर सरकार जरा भी ईमानदार है तो गरीबों को सब्सिडी दे और महंगाई कम करे। उधर लगातार एपीजी सिलेंडर की बढ़ती कीमत ने उपभोक्ताओं की परेशानी बढ़ा दी है। तकरीबन एक वर्ष में प्रति सिलेंडर ढाई सौ रूपये तक दाम बढे हैं।

उत्तर प्रदेश से लेकर अन्य राज्यों के घरेलु गैस सिलेंडरों का औसत मूल्य नौ सौ रूपये तक पहुंच गए है। जबकि यूपीए सरकार में वर्ष 2014 तक इसकी कीमत आधी थी। तेजी से बढी कीमत ने आम आदमी के घरेलु बजट को बिगाड़ दिया है। इसके चलते उपभोक्ताओं की नाराजगी चुनाव में सरकार पर भारी पड़ सकती है। ऐसे में कहा जा रहा है कि घरेलु गैस सिलंेडर समेत महंगाई के ये मुददे चुनाव के समय एक एजेण्डा बनकर सामने आएगा।

साठ से सत्तर फीसद उपभोक्ता नहीं ले पा रहे सिलेण्डर

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों का हाल यह है कि इनमें से नियमित साठ से सत्तर फीसद उपभोक्ता रेगुलर रसोई गैस नहीं खरीद पाते हैं। योजना के एक नोडल अधिकारी गिरीश कुमार कहते हैं कि यूपी के देवरिया जिले में उज्ज्वला योजना के कनेक्शनधारियों की संख्या 1 लाख 70 हजार है।इनमें से बडी संख्या में ऐसे उपभोक्ता हैं जो बजट के अभाव में सिलेंडर नहीं ले पा रहे हैं। इसके अलावा कुछ ऐसे उपभोक्ता हैं जो सालभर में दो से तीन सिलेंडर ही ले पाते हैं। जबकि वर्ष में बारह सिलंेडर सब्सिडी वाले मिल सकते हैं। दूसरी तरफ सामान्य उपभोक्ता वर्ष में सात से आठ सिलेंडर का उठान करते हैं।

बानगी के तौर पर देखें तो देवरिया जिले के भलुवनी अंतर्गत सुरहा निवासी हिरामन प्रजापति के परिवार में दो वक्त के भोजन का सही इंतजाम नहीं है। ऐसे में ये जरूरत पडने पर गैस सिलेंडर कैसे भरवाएं, इनके लिए एक बड़ा सवाल है। हिरामन के मुताबिक सरकार द्वारा कनेक्शन निश्शुल्क दिया गया। लेकिन इसके बाद रूपये के अभाव में सिलेंडर नहीं लिया जा सका। ऐसे उदाहरण हर जिले में हजारों की संख्या में है।

यही हाल पड़ोसी जिले कुशीनगर का भी है। यहां उज्ज्वला योजना के कनेक्शन प्राप्त लोगों की संख्या एक लाख पचासी हजार है। जिसमें से तकरीबन साठ फीसद कनेक्शन मृतप्राय स्थिति में पहुंच गए हैं। कसया के बैरिया निवासी रुदल प्रसाद का कहना है कि रुपए के अभाव में पिछले दो साल से सिलेंडर नहीं भरवा पा रहा हूं। कोरोना के चलते एक साल पूर्व नौकरी भी चली गई। ऐसे में दो वक्त के भोजन का इंतजाम मुश्किल हो गया है। ऐसा ही दर्द गांव के उज्ज्वला योजना के अन्य कई लाभार्थियों का भी है।

इन परिस्थितियों में उज्ज्वला योजना का लोगों पर कितना प्रभाव पड़ेगा इसका अंदाजा लगाना आसान नहीं है। एक तरफ कनेक्शन पानेवाले गरीबों को सुखद अनुभूति होना स्वाभाविक है।दूसरी तरफ पहले चरण में जिन्हें कनेक्शन मिला था और वे धन के अभाव में सिलेंडर न भरवा पा रहे हैं,उनकी नाराजगी तो बनी ही रहेगी। अभी कनेक्शन मिलने के बाद अगले चार माह बाद अगर इनकी भी यही स्थिति रही तो ऐसे उपभोक्ता चुनाव के दौरान अपना क्या नजरिया रखेंगे। यह प्रश्न विचारणीय है।

फिलहाल उज्ज्वला योजना के मदद से भाजपा का आगामी विधानसभा चुनाव में कैसा उज्ज्वल भविष्य बन पाएगा।यह तस्वीर व इसको लेकर कयास अभी ठीक से नहीं लगाया जा सकता। अगले दो महीनों में चीजे कुछ हद तक साफ हो जाएंगी। अब देखना है कि ऐसी योजनाओं के मदद से गरीबों को लुभाने में भाजपा शासित सरकारें सफल हो पाती हैं, या विपक्ष महंगाई के मुददे को गरमा कर सरकार को कठघरे में खडा करने में कामयाब हो पाता है।

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