Teesta Setalvad: तीस्ता सीतलवाड़ को जमानत मिलना लोकतंत्र समर्थकों के लिए राहत की खबर, क्या देश भर में झूठे मामलों में बंद पत्रकारों-कार्यकर्ताओं की हो सकेगी रिहाई?
Teesta Setalvad: तीस्ता सीतलवाड़ को जमानत मिलना लोकतंत्र समर्थकों के लिए राहत की खबर, क्या देश भर में झूठे मामलों में बंद पत्रकारों-कार्यकर्ताओं की हो सकेगी रिहाई?
Teesta Setalvad : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मुंबई की कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को अंतरिम जमानत दे दी, जिसे गुजरात पुलिस ने गुजरात में 2002 के गोधरा दंगों के बाद "निर्दोष लोगों" को निशाना बनाने के लिए कथित रूप से सबूत गढ़ने के आरोप में गिरफ्तार किया था। इसके साथ ही सवाल पैदा होता है कि मोदी सरकार ने जो देश भर में अनेक पत्रकारों-कार्यकर्ताओं को झूठे मामलों में जेल में ठूंस रखा है, क्या उनकी रिहाई का भी कोई मार्ग प्रशस्त हो पाएगा?
पत्रकार सिद्दीकी कप्पन अक्टूबर 2020 से जेल में बंद हैं। उन्हें उत्तर प्रदेश पुलिस ने आतंकवाद, राजद्रोह और समूहों के बीच वैमनस्य को बढ़ावा देने के आधारहीन आरोपों में गिरफ्तार किया था। कप्पन को उस समय गिरफ्तार किया गया, जब वह एक युवा दलित महिला के सामूहिक बलात्कार और हत्या, जिसके विरोध में देशव्यापी विरोध प्रदर्शन हुए, के मामले की रिपोर्ट करने के लिए नई दिल्ली से उत्तर प्रदेश के हाथरस जा रहे थे। इसी तरह भीमा कोरेगांव मामले में फर्जी तरीके से फँसाये गये 13 बुद्धिजीवियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की रिहाई अभी तक नहीं हो पाई है।
गुजरात दंगा 2002 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सोशल एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ को बड़ी राहत देते हुए अंतरिम जमानत दे दी। तीस्ता सीतलवाड़ पर गवाहों के झूठे बयानों का मसौदा तैयार करने और उन्हें दंगों की जांच के लिए गठित नानावती आयोग के समक्ष प्रस्तुत करने का आरोप है। शीर्ष अदालत ने उनके देश छोड़ने पर रोक लगा दी है और उनसे कहा है कि वह जांच में पूरा सहयोग करें।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार 2 सितंबर को सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को अंतरिम जमानत दे दी और शनिवार 3 सितंबर तक उन्हें इस शर्त पर रिहा करने का निर्देश दिया कि वह पासपोर्ट को सरेंडर कर दें और 25 जून को गुजरात पुलिस द्वारा उनके खिलाफ दर्ज किए गए मामले की जांच में सहयोग करें। मामला 2002 के गुजरात दंगों से जुड़ा हुआ है।
इससे पहले सीतलवाड़ को इस मामले में 25 जून को गिरफ्तार किया गया था और 30 जुलाई को अहमदाबाद की एक शहर की अदालत ने उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी। बाद में उन्होंने गुजरात उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जिसने 3 अगस्त को उनकी अपील पर नोटिस जारी किया, लेकिन उन्हें अंतरिम जमानत देने से इनकार कर दिया गया। उनका मामला उच्च न्यायालय में लंबित है। इस आदेश के खिलाफ और निचली अदालत द्वारा अपनी जमानत याचिका को पहले खारिज किए जाने के खिलाफ सीतलवाड़ ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
तीस्ता की जमानत पर वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश कहते हैं, 'तीस्ता सीतलवाड़ को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलना स्वागतयोग्य! उनकी गिरफ्तारी पूर्णतः अन्यायपूर्ण और तर्कहीन थी, देखिये अब सरकार क्या करती और कहती है!
सुप्रीम कोर्ट ने तीस्ता सीतलवाड़ को जमानत देते हुए कहा कि तीस्ता को जल्द से जल्द संबंधित ट्रायल कोर्ट में पेश किया जाये, ट्रायल कोर्ट जमानत की शर्तें तय कर उन्हें जमानत दे। तीस्ता सीतलवाड़ को पासपोर्ट सरेंडर करने का आदेश देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह जांच में लगातार सहयोग करें।
सुप्रीम कोर्ट तीस्ता को जमानत देते हुए कहा, 'हमने सिर्फ अंतरिम बेल पर मामले में विचार किया है। हमने मेरिट पर कोई राय नहीं दी है। हाईकोर्ट मेरिट पर स्वतंत्रता से विचार करेगा, वो सुप्रीम कोर्ट की टिप्पिणियों से प्रभावित नहीं होगा। ये फैसला मामले के इस तथ्य कि वो एक महिला है, इसका असर मामले के दूसरे आरोपियों पर नहीं पड़ेगा। ये ट्रायल कोर्ट के लिए खुला होगा कि वो जमानत के लिए बॉन्ड के लिए कैश पर विचार करे, लोकल श्योरटी पर जोर ना दे।
जहां तक पत्रकार कप्पन की गिरफ्तारी का सवाल है तो उसके लगभग छह महीने बाद उनके खिलाफ 5,000 पन्नों का आरोप पत्र दायर किया गया था, जिसमें उन पर एक 'जिम्मेदार पत्रकार' की तरह लिखने में विफल रहने और उत्पीड़ित और हाशिए पर रहने वाले समुदायों पर रिपोर्टिंग करके दंगे कराने का आरोप लगाया गया था। आरोप पत्र में बिना किसी विडंबना के कहा गया है कि इस तरह की रिपोर्ट से 'मुसलमानों को उकसाया जा सकता है', और कप्पन द्वारा लिखे गए 36 लेखों को उनके अपराधों के सबूत के रूप में दिखाया गया।