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राष्ट्रीय

प्रयागराज के अस्पताल में न्याय के लिए लड़ती गैंगरेप पीड़िता की मौत सरकार, सिस्टम, कानून, पक्ष-विपक्ष सबकी मृत्यु का प्रमाण है

Janjwar Desk
8 Jun 2021 12:30 PM GMT
प्रयागराज के अस्पताल में न्याय के लिए लड़ती गैंगरेप पीड़िता की मौत सरकार, सिस्टम, कानून, पक्ष-विपक्ष सबकी मृत्यु का प्रमाण है
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प्रयागराज के स्वरूपरानी अस्पताल कर्मचारियों पर गैंगरेप का आरोप लगाने वाली मृतका के हाथ का लिखा आरोपपत्र, जो पुलिस ने फाड़ दिया है.

ऑपरेशन टीम में कोई महिला नहीं थी। ऑपरेशन के समय परिवार के सदस्यों को वहां से हटा दिया गया। ओटी में जाने से पहले बेटी खूब बढ़िया बातचीत कर रही थी। ऐसा क्या हुआ कि 3 घंटे बाद जब ऑपरेशन से बाहर निकाला गया तो उसकी आवाज मौन हो गई...

जनज्वार ब्यूरो, लखनऊ। मर गई मिर्जापुर की बेटी। नहीं, मार दी गई। सब ने मिलकर कर उसे मार डाला। स्वरूप रानी मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों ने पता नहीं क्या किया था। रेप किया था या नहीं, बिटिया के अलावा कौन बता सकता था? पर, उसने लिखा था 'उसका इलाज नहीं किया गया, उसके साथ गंदा काम हुआ है।' मां रो रही थी, भाई आँसुओं से भरी आँखों से गिड़गिड़ाता रहा। लेकिन, उसकी आवाज को किसी ने नहीं सुना।

न सत्ता दल ने और न विपक्ष के किसी दल या किसी दल के अनगिनत स्वनामधन्य क्रांतिकारी नेता और कार्यकर्ताओं ने। बेटी का भाई, जिस-जिस की चौखट गया, घंटों प्यार से उसको सुनने के बहाने रेप ना होने का स्वयंभू निर्णय सुना दिया गया। अस्पताल प्रशासन ने घोषणा कर दी कि ऑपरेशन थिएटर में 4 महिला समेत 8 डॉक्टर थे और पारदर्शी सीसे से सब कुछ दिखाई पड़ रहा था। इसलिए रेप होने का तो कोई सवाल ही नहीं।

दूसरी तरफ चचेरा भाई चिल्लाता रह गया, कि सब झूठ बोल रहे हैं। ऑपरेशन टीम में कोई महिला नहीं थी। ऑपरेशन के समय परिवार के सदस्यों को वहां से हटा दिया गया। ओटी में जाने से पहले बेटी खूब बढ़िया बातचीत कर रही थी। ऐसा क्या हुआ कि 3 घंटे बाद जब ऑपरेशन से बाहर निकाला गया तो उसकी आवाज मौन हो गई।

उसने कुछ कहना चाहा लेकिन एनेस्थीसिया के प्रभाव से मुंह से आवाज न निकली। फिर उसने कागज कलम की मांग की। साफ-साफ लिखा 'मेरे साथ गंदा काम हुआ है, ये डॉक्टर अच्छे नहीं हैं। उन्होंने कोई इलाज नहीं किया, गंदा काम किया है।' चचेरा भाई रात के 1:30 बजे तक पुलिस और जिला प्रशासन के उच्चाधिकारियों से फोन पर गुहार लगाता रहा पर किसी ने ना सुनी।

बाद में जो पुलिस पहुंची उसने लड़की की हस्तलिखित पर्ची को फाड़ दिया। और धमकी देकर चली गई। दूसरे दिन जिस तथाकथित भ्रष्टाचार विरोधी पार्टी के महान नेताओं से वह मिला उन्होंने 2:00 बजे तक प्यार का मलहम लगाते हुए यह कह कर उसे विदा कर दिया कि जब तक लड़की ठीक नहीं हो जाती तब तक चुप रहो, सब। वह असहाय रहा। परिवार डर गया। घर की इज्जत को लेकर पूरा परिवार डरा सहमा सा रहा।

किसी तरह हिम्मत जुटाकर कुछ मीडिया वालों के सामने उन्होंने अपनी बात रखी और वीडियो फुटेज दिया। लेकिन, मीडिया ने भी बहुत शिद्दत के साथ उसकी आवाज को नहीं उठाया। इस बीच परिवार वालों को एक बार फिर पुलिस वालों ने धमकी दी। लेकिन जब वीडियो वायरल हुआ तो पुलिस व प्रशासन के आला अधिकारियों को भी प्राप्त हुआ। अचानक पुलिस प्रशासन बेटी के परिवार वालों पर मेहरबान हुआ।

आनन फानन बेटी को प्राइवेट वार्ड प्रदान किया गया। एक क्षेत्राधिकारी लेबल के अधिकारी ने चचेरे भाई को बुलाकर सादे कागज पर उसका पक्ष लिखवाया और फिर किसी बाप की तरह कहा, बेटा घबराना मत। मैं हूं। बिटिया ठीक हो जाएगी तो उसके बयान पर एफआईआर दर्ज कर लूंगा। स्वरूपरानी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल भी अचानक उदार हो गए और उन्होंने अपने ही आरोपी डॉक्टरों के खिलाफ अपने ही स्टाफ की एक जांच कमेटी गठित कर दी।

मुख्य चिकित्सा अधिकारी इलाहाबाद भी जागे और उन्होंने भी एक जांच कमेटी गठित कर दी। और शीघ्र ही दोनों कमेटियों ने अपनी जांच रिपोर्ट भी दे दी। होना वही था जो एक चोर अपनी चोरी की इबारत में लिखता है। डॉक्टर दोषमुक्त हो गए।

सभी दल के महान नेता खामोश थे। उन्हें चचेरे भाई के आरोपों में ही झूठ दिखाई पड़ा। वह खा रहे थे, ठहाके लगा रहे थे। सो रहे थे और राष्ट्रहित में अनेकानेक उल्लेखनीय कार्य कर रहे थे। बस दो ऐसे लोग थे, जिन्हें नींद नहीं आ रही थी। जिनकी भूख मर गयी थी। जो बदहवास थे। जिनको बेटी के आरोप में सच्चाई दिखी। वे बेचैन थे। अगर डॉक्टरों को देखकर संज्ञाशून्य बेटी उन्हें नोचने की हरकत करने लगती है। उन्हें देखकर वह अजीब हरकत कर रही है और उसकी हालत बिगड़ने लग जा रही है तो निश्चित है उसके साथ रेप हुआ होगा।


चलो मान लिया कि लड़की झूठ ही कह रही थी, तब भी सुप्रीम कोर्ट की विशाखा गाइडलाइन के अनुसार सबसे पहले पीड़िता के पक्ष से आरोपितों के खिलाफ एफआईआर होनी चाहिए थी। जी हां सपा के संदीप यादव और रिचा सिंह जैसे दो ही नौजवान ऐसे थे, जिनका जमीर जिंदा था। वे लड़ रहे थे। उनका सर इस सिस्टम के शातिर तिकड़म से फटा जा रहा था। इसलिए वे जिला प्रशासन और पुलिस के आला अधिकारियों से लगातार जूझ रहे थे।

संदीप यादव को तो नजर बंद कर दिया गया, लेकिन रिचा सिंह डटी रही। आज सुबह 8:00 बजे के करीब बेटी की आवाज हमेशा-हमेशा के लिए मौन हो गई। स्वरूप रानी अस्पताल सुरक्षित हो गया। आरोपित डॉक्टर निश्चिंत हो गए। जिला और पुलिस प्रशासन ने राहत की सांस ली। क्रांतिकारी नेता भी इन दो नेताओं के नैतिक संघर्ष के दबाव से मुक्त हो गए।

शांति और कानून व्यवस्था के लिए स्वरूप रानी अस्पताल पर सैकड़ों की संख्या में पुलिस बल तैनात कर दिया गया। सब शांत है। उत्तर प्रदेश में कानून का राज है। बिटिया अब दुनिया की सबसे बड़ी अदालत में अपील करने जा चुकी है। जहां से उसको न्याय मिला नहीं मिला, इस सरकार और उसकी माटी की पुतलियां आंखें मिचमिचा कर भी नहीं देख सकेंगी। लानत भेजी जानी चाहिए ऐसे सिंस्टम को।

इनपुट - पवन जायसवाल, मिर्जापुर

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