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BJP-RSS के संविधान से 'समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष' शब्द हटाने की मांग के बाद मचा बवाल, सुप्रिया बोलीं सांप लोट रहे इनके सीने में...

Janjwar Desk
28 Jun 2025 6:08 PM IST
BJP-RSS के संविधान से समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द हटाने की मांग के बाद मचा बवाल, सुप्रिया बोलीं सांप लोट रहे इनके सीने में...
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'RSS महासचिव दत्तात्रेय होसबोले और शिवराज सिंह चौहान की संविधान की प्रस्तावना से ‘सोशलिस्ट और सेक्युलर’ शब्दों को हटाने की माँग ने फिर एक बार साबित कर दिया है कि अगर 2024 के लोकसभा चुनाव में BJP को 400 सीटें मिली होतीं, तो हमारा संविधान अब तक शर्तिया बदल चुका होता...

'Socialist' and 'Secular' Controversy : संविधान में ‘समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता’ शब्द 42वें संविधान संशोधन 1976 के दौरान जोड़ा गया था, जिन्हें अब BJP-RSS द्वारा हटाने की मांग की जा रही है। इस मांग के बाद से सत्ता के ​गलियारों में बवाल मचा हुआ है। आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबोले के आपातकाल के 50 वर्ष पर दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम के दौरान संविधान की समीक्षा की जाने की मांग की, जिसके बाद यह बवाल मचा है। विपक्ष इस मुददे पर लगातार मोदी सरकार और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को कटघरे में खड़ा कर रहा है। कांग्रेस नेत्री सुप्रिया श्रीनेत ने भाजपा—आरएसएस पर हमला बोलते हुए कहा है कि 'RSS और BJP की परिकल्पना संविधान की सोच से ठीक 180 डिग्री उलट है, इनका पूरा अस्तित्व मुसलमानों, दलितों, पिछड़ों से अधिकार छीन उन्हें दोयम बनाने पर टिका हुआ है।'

सोशल मीडिया पर ‘समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता’ शब्द हटाने के खिलाफ पोस्ट लिखते हुए सुप्रिया कहती हैं, 'RSS महासचिव दत्तात्रेय होसबोले और शिवराज सिंह चौहान की संविधान की प्रस्तावना से ‘सोशलिस्ट और सेक्युलर’ शब्दों को हटाने की माँग ने फिर एक बार साबित कर दिया है कि अगर 2024 के लोकसभा चुनाव में BJP को 400 सीटें मिली होतीं, तो हमारा संविधान अब तक शर्तिया बदल चुका होता, लेकिन आज मौक़ा है यह रुक कर सोचने का, कि ‘सोशलिस्ट और सेक्युलर’ यानि ‘समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष’ शब्द संविधान में क्यों रखे गए हैं? यह सिर्फ़ दो शब्द नहीं, बल्कि भारत की मूलभूत सोच और परिकल्पना हैं. यह दो सबसे मज़बूत आधारभूत स्तम्भ हैं, जिससे पूरा देश बँधा हुआ है. सरकार, जनता, कार्यपालिका, न्यायपालिका सभी।

सुप्रिया कहती हैं, 'हमारे पुरखों द्वारा संविधान की प्रस्तावना में समाजवाद शब्द जोड़ने के पीछे जो मंशा थी, वो यही थी कि देश के हर नागरिक को समान अवसर और समान अधिकार मिलें। पढ़ने-लिखने, आगे बढ़ने, कमाने-खाने का बराबर हक़ मिले। देश के हर संसाधन पर हर व्यक्ति का समान अधिकार हो, सम्पत्ति-समृद्धि का संतुलन बना रहे। और सेक्युलर, सबसे सुंदर परिकल्पना - कि राज्य यानी स्टेट का कोई धर्म नहीं होगा। इसकी और सरल व्याख्या है कि सरकार का कोई भी निर्णय या कोई भी नीति धर्म के आधार पर नहीं तय होगी। लेकिन RSS और BJP की परिकल्पना हमारे संविधान की सोच से ठीक 180 डिग्री उलट है। इनकी नींव में ही साम्प्रदायिकता है। इनका पूरा अस्तित्व ही मुसलमानों, दलितों, पिछड़ों से अधिकार छीन कर उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक बनाने पर ही टिका हुआ है।'

बकौल सुप्रिया 'इनकी नसों में पूँजीवाद दौड़ता है। इनकी नज़र में 1 अडानी बनाओ और बाक़ी लोग उसके यहाँ मज़दूरी करें - यही है। और इसका सबूत है पिछले 11 सालों में अमीर-गरीब के बीच की बढ़ती खाई। Concentration of Wealth - 1% लोगों के हाथ में देश की 50% सम्पत्ति होना। इनकी इच्छा यही है कि इस देश पर 1-2 इनके पूँजीपति के हिसाब से नीतियाँ बनें और 85 करोड़ जनता 5 किलो राशन पर ज़िंदा रहने की जद्दोजहद करती रहें।

सुप्रिया आरोप लगाती हैं, 'असल में तो इनकी नज़र में बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर सबसे बड़े दोषी हैं, जिन्होंने दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों और महिलाओं को समान अधिकार दिए। देश का संविधान बनने से आजतक, इन्हें दिक्कत ही दिक्कत है। 1949 में इनका मानना था कि यह संविधान मनुस्मृति पर आधारित बनना चाहिए। फिर जबसे इसमें सोशलिस्ट और सेक्युलर शब्द जोड़े गए हैं, RSS के सीने पर साँप लोट रहा है।'

सुप्रिया कहती हैं, 'वोट की मजबूरी में मोदी जी संविधान को माथे पर तो लगा लेते हैं, लेकिन रह रहकर मन की बात, ज़बान पर आ ही जाती है। इनके सपने में एक ऐसा राष्ट्र आता है, जिसमें पिछड़े, दलित, शोषित, वंचित, अल्पसंख्यक यह सब ग़ुलामों की तरह जी रहे हैं और यह राजा की तरह शासन कर रहे हैं। यह दो शब्द, सिर्फ़ शब्द नहीं है, पूरे भारत देश की परिकल्पना हैं, जिसे RSS और BJP हर क़ीमत पर बदलना चाहती है। लेकिन इस बात का भी विश्वास रखिएगा, कि जब तक राहुल गांधी जैसे योद्धा हैं, हम यह होने नहीं देंगे, चाहे इसके लिए हमें कोई भी क़ीमत चुकानी पड़ जाये।'

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