यूपी : मारपीट की शिकायत लेकर थाने पहुंचा दलित तो दरोगा ने घूस में लिया मुर्गा, बाद में धमकाकर भगाया
(बनमालीपुर गांव निवासी शिवपूजन हरिजन को उसके पाटीदारों द्वारा मारा पीटा गया।)
संतोष देव गिरि की रिपोर्ट
जनज्वार ब्यूरो। कोरोना काल में पुलिस का कहीं मानवीय चेहरा देखने को मिला है तो कहीं आपदा को अवसर मेंं बदलने का मौका भी हाथ से खाली जाने नहीं देना चाह रही है। यूं कहें कि जेब और पेट (स्वाद) दोनों के लिए वर्दी की गरिमा को भी ताक पर रख दे रही है। कुछ ऐसा ही मामला भदोही जनपद से जुड़ा हुआ सामने आया है जहां एक दरोगा जी ने पीड़ित दलित से कार्रवाई के नाम पर मुर्गा गटक गए और कार्रवाई से पीछे भी हट गए हैं।
भदोही जनपद के औराई थाना क्षेत्र के महादेवा न्याय पंचायत के बनमालीपुर गांव निवासी शिवपूजन हरिजन को उसके पाटीदारों द्वारा मारा पीटा गया। जिसकी शिकायत शिवपूजन ने औराई थाने में की लेकिन औराई थाना पुलिस द्वारा किसी भी प्रकार की कार्यवाही नही की गई।
इस मामले से खुन्नस खाए विपक्षियों ने शुक्रवार 4 जून को अपराह्न 5 बजे शाम दारु के नशे में रहते हुए शिव पूजन के कच्चे घर पर लगे टीन सेड को तोड़ कर बाहर फेंक दिया। इस घटना से दु:खी पीड़ित ने 112 नंबर पर फोन किया तो डायल 112 नंबर वाले जांच में पहुंचे।
भुक्तभोगी शिव पूजन ने बताया कि पहले औराई थाने पर भी शिकायत पत्र दे आए थे। जिसके जांच में पहुंचे इलाके के दरोगा सुरेश भारती ने उससे मुर्गे की मांग रखी। उसने औराई थाना जाकर मुर्गा भी दे दिया। यदि उसी समय दरोगा मुकदमा दर्ज करके कार्रवाई किए होते तो आज उसे बेघर नहीं होना पड़ता।
शिव पूजन ने आरोप लगाया कि कोई कार्रवाई नहीं किए जाने से मनबढ़ों ने दारु पीकर उसके कच्चे घर में घुसकर कर तोड़फोड़ करने के बाद टिन शेड उखाड़कर हम गरीबों को बरसात के मौसम में घर से बेघर कर दिया है और दरोगा भी विपक्षियों की साजिश में आराम फरमा रहे हैं। थाने जाने पर मुझे भगा दिया जाता है और दबंग विपक्षियों पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।
पीड़ित शिवपूजन अपनेे विपक्षियों पर कार्रवाई न होने व दरोगा द्वारा मुर्गा हजम कर उल्टे उसे ही फटकार लगाये जाने से आहत होकर न्याय की खातिर भटकने को विवश है। वहीं दूसरी ओर विपक्षियों के हौसले बुलंद बने हुए हैं।
हैरानी की बात है कि औराई विधानसभा क्षेत्र से ही भारतीय जनता पार्टी के टिकट से चुनाव जीते पूर्व मंत्री दीनानाथ भास्कर भी इस गरीब दलित की पीड़ा को सुनकर न्याय दिलाने के लिए आगे नहीं आए जिन्हें दलितों का रहनुमा कहा जाता है।