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मनीष दुबे की रिपोर्ट
कानपुर। देश में लॉकडाउन लगा तो सब कुछ थम ठहर गया। रेल, बस, मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा, चर्च, आदमी का खर्च सब ठप हो गया। बावजूद इस बंदी के समय एक चीज सबसे अधिक डिमांड में रही, शराब। कोरोना महामारी के बीच लगे लॉकडाऊन में शराब रेट से अधिक कीमत पर बेची गई। सरकार को शराब से सबसे अधिक कमाई होती है, जिसको ध्यान में रखते हुए सरकार ने लॉकडाउन में ठेके खुलवा दिए।
लॉकडाउन जब जोर से लगा था तब ठेके खुलने का समय सुबह दस बजे से शाम सात बजे तक किया गया, जिसे कुछ ही दिनों में बढ़ाकर सुबह 10 बजे से रात 9 बजे तक कर दिया गया। तब इस बात को लेकर कई सारी बातें उठी थीं। मसलन लोगों का कहना था कि सरकार का ठेके खोल देने के आदेश के बाद लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंस की धज्जियां उड़ेंगी। किसी ने कहा यह गलत है तो कोई बोला कि सरकार पूरी तरह से शराब की कमाई पर निर्भर है। खैर, ये सब सरकारी नियम हैं, जो उनकी ही मर्जी से चलते हैं।
कानपुर में सरकार और उसके नियमों की खुलेआम जमकर धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। यहाँ समय से पहले ही ठेके खोल दिए जाते हैं, तो कहीं-कहीं रात दो बजे तक आप शराब का आनन्द महसूस सकते हैं। दक्षिण के सीटीआई चौराहा, शास्त्री चौक, बर्रा सात, नन्दलाल चौराहा, जूही गौशाला, गोविंदनगर इत्यादी जगहों पर शराब के कद्रदान सुबह पौ फटते ही यानी 6 बजे से ही शराब का लुत्फ उठाते आसानी से प्राप्त हो जाते हैं। इनमें से कुछ ठेके तो सालों से इसी तर्ज पर सुबह से ही खुल रहे हैं, फिर भी जिम्मेदारों को इसकी भनक न मिली हो बात मुश्किल में डालने वाली है।
'जनज्वार' संवाददाता ने सुबह साढ़े 5 बजे जाकर जब इन सूचनाओं का रियलिटी चेक किया तो सब कुछ जस का तस दिखा जैसा हमें बताया गया था। शास्त्री चौक के देशी शराब ठेके में लोग हमें इंतजार में खड़े मिले। हमने उनसे पूछा 'मिल रही' उन्होने कहा 'बस निलने ही वाली है।' ठीक 5 बजकर 54 मिनट पर ही एक व्यक्ति शटर के नीचे से हाथ डालकर शराब की शीशी पकड़ता है, फिर इधर-उधर देखकर धीरे से जेब में रखता है और आगे बढ़ जाता है। वह इंतजार में खड़े और लोगों को भी हरी झंडी देता हुआ निकल जाता है, जिसके बाद अन्य लोग भी एक-एक कर खरीददारी करते हैं।
इसके बाद हम सीटीआई पहुँचे। समय था 6 बजकर एक मिनट। सीटीआई चौराहे के ठेके का शटर खोलकर पेटी निकाली जाती है तथा फिर शटर गिरा दिया जाता है। शराब की निकाली गई पेटी को एक होर्डिंग की आड़ में रखकर वितरण किया जाने लगता है। धीरे-धीरे कद्रदान जुटने शुरू हो जाते हैं। जिसको जहाँ जगह मिली पीकर अपनी जिंदगी को ताजा कर रहा था। यहाँ हैरानी वाली बात ये है कि सामने ही पुलिस बूथ भी बना हुआ है। पुलिस मौजूद भी रहता है, जिनको शायद पता ना चल पाता हो कोई बड़ी बात नहीं है।
बर्रा सात का ठेके वाला बड़ा होशियार आदमी निकला। सामने से देखने पर आपको शटर कानूनी तौर पर बन्द मिलेगा। बगल की गली से अन्दर जाने पर आपको दरबार दिख जाएगा। यहाँ तो इस अनाधिकृत जगह में बैठकर पीने की सुविधा भी दी जाती है। अगल-बगल लगे बाँस के टट्टर और चारों तरफ फैली मौरंग शराब के रंग को थोड़ी सी ढ़क लेती है, लेकिन पारखी और शराब के रोजमर्रा कद्रदानो के लिए इसे जरा भी खोजने की आवश्यकता नहीं है। यहाँ शराब बेच रहे शख्स को हमारे पहुँचने की भनक लगी तो उठकर बाहर आ गया।
बाहर आते ही हमसे बोला 'भईया का चहिए?' हमने कहा 'क्या है तुम्हारे पास?' 'का चहिए, हमरे पास तौ वाहे है देशी वाली' ठेके वाला बोला। हम चलने लगे तो बोला 'अंग्रेजी भी है सामने मिल जाएगी' उसने सामने के अंग्रेजी ठेके की तरफ हाथ उठाते हुए कहा। हम आगे बढ़कर बर्रा गाँव पहुँचे, यहाँ फिलहाल कुछ नहीं मिला। पहले यहाँ भी राह आसान थी, लेकिन हाईवे से सटा होने के कारण फिलहाल कार्य में बाधा चल रही है।
यहाँ के बाद हमने गोविंदनगर, जूही गौशाला, नंदलाल चौराहे पर भी शराब बिकते देखी। जो समय बढ़ने के साथ ही किसी प्रेमी जोड़े की मोहब्बत सरीखी परवान चढ़ती जाती है। रात को जनज्वार संवाददाता ने जिला आबकारी अधिकारी से फोन पर बात की और उन्हें शराब के ठेकों जिला आबकारी अधिकारी आनंद प्रकाश पटेल
में चल रही अनियमितताओं के बारे में बताया। उनने पूछा कहाँ-कहाँ चल रहे, जिसके बाद हमने उन्हें उंगलियों पर हर जगह के नाम गिनाए। उन्होंने चेक करके कार्रवाई का भरोसा दिलाया।
सुबह 17 अक्टूबर को 'जनज्वार' संवाददाता ने जिला आबकारी अधिकारी आनंद प्रकाश पटेल से मिलकर स्थिति से अवगत कराया। उन्होंने हमसे वीडियो दिखाने की बात की, जिसके बाद हमने उन्हें हमारे कैमरे में कैद शराब प्रेमियों और ठेटे वालों की काली करतूतें दिखाई। हमने उनसे ठेके खुलने का समय पूछा, जिस पर आनंद प्रकाश ने सुबह दस बजे से रात 9 बजे की समयसारणी का हवाला दिया। उन्होने कहा कि हमारी टीम जांच करती रहती है, कहीं कुछ अनियमितता नहीं है। हमारे दिखाए वीडियो पर उन्होने संज्ञान लेकर कार्रवाई की बात कही है, जिसका हमें भी इंतजार रहेगा।