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बेहमई कांड : जब फूलन देवी गांव वालों से कहती थी पुलिस को मेरा पता बता दो
कानपुर से मनीष दुबे की ग्राउंड रिपोर्ट
जनज्वार ब्यूरो। कानपुर देहात के बेहमई कांड को आज 40 बरस पूरे हो चुके हैं। आज से ठीक 40 साल पहले 14 फरवरी 1981 को फूलन देवी ने अपने दिल में धधकती बेईज्जती की आग को बेहमई कांड के रूप में अंजाम दिया था। 14 फरवरी की दोपहर बेहमई में गोलियों की तड़तड़ाहत से समूचा इलाका कांप गया था, जिसकी टीस आज तक जारी है। कालपी से लेकर गुढ़ा और पुरवा सहित आस-पास के गांव वाले आज भी फूलन देवी का नाम बेहद अदब से लेते हैं।
गुढ़ा के पुरवा की संकरी गलियों में होते हुए हम फूलन देवी के घर तक पहुँचे। कभी फूस का घर आज पक्के मकान में तब्दील हो चुका है। घर के अन्दर पूर्व सांसद फूलन देवी की संगमरमर की प्रतिमा लगी हुई थी। फूलन की माँ और भतीजा किसी काम से ग्वालियर गए हुए थे। पड़ोस का रहने वाला हरिगोविंद हमें आया देखकर भागते हुए हमारे पास आया। घर के बाहरी दरवाजे पर कुंडी बन्द थी। अन्दर जाकर हमने फूलन के बारे में बोलना शुरू ही किया था कि अचानक हरिगोविंद चिल्लाने लगा। वह कह रहा था कि फूलन के साथ गलत हुआ था।
हमने हरिगोविंद को शांत रहने के लिए कहा, और उसकी बात भी सुनने का भरोसा दिया। जिसके बाद वह शांत हुआ। हरिगोविंद ने हमसे बात करते हुए बताया कि फूलन-फूलन नहीं उनके लिए देवी है। उसे बेहमई गांव के ठाकुरों ने बहुत जादा जलील किया था। उसे पूरी तरह निर्वस्त्र करके कुएं पानी भरवाया था। अपनी इस बेइज्जती का बदला लेने के लिए उसने बेहमई जैसी जघन्य वारदात को अंजाम दिया था। फूलन देवी वीरांगना थी। हरिगोविंद ही बाद में हमें गांव के प्रधान के पास तक लेकर गया।
गांव के प्रधान सिद्धनाथ गांव में बने भैरव मंदिर के एक होने वाले कार्यक्रम में बिजी थे। हमारे बुलाने पर लगभग 15 मिनट के अंतराल के बाद हमारे पास पहुँचे। प्रधान सिद्धनाथ ने हमसे बात करते हुए बताया कि फूलन गरीब घर की सीधी साधी लड़की हुआ करती थी। बेहमई के ठाकुर समुदाय के लोगों ने उसपर बहुत जुल्म और ज्यादतियां की थीं। जिसका बदला लेने के लिए फूलन बीहड़ में उतर गई। 14 फरवरी की दोपहर को उसने अपना बदला पूरा किया। उसने लाईन में खड़ाकर ठाकुरों को भूना था।
सिद्धनाथ आगे बताते हैं कि वह फूलन को बचपन से जानते हैं। उसके साथ खेलकर बड़े हुए। जब फूलन बेहमई कांड के बाद फरारी काट रही थी तो गांव में सैंकड़ों की संख्या में पुलिस पड़ी रहती थी। गांव वालों को नाजायज तौर पर पीटा व परेशान किया जाता था। कहते थे बताओ फूलन कहां है? गांव वाले बताते थे कि नरवा के किनारे जंगल में मिलेगी फूलन, जिसे सुनकर पुलिसवाले फिर मारते थे कि अगर वहां है तो उल्टी दिशा में बताओ। सिद्धनाथ बताते हैं कि उस समय वो आलम था कि अगर हम सही भी बताते थे तो पता नहीं क्या पुलिसवाले डर की वजह से फूलन तक जाने पहुँचने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे।
प्रधान सिद्धनाथ 'जनज्वार' से बात करते हुए कहते हैं कि फूलन हमेशा लोगों की मदद करती थी। जिसका फायदा उसे गांव वालों से मदद के रूप में ही मिलता था। हमने पूढा कि कैसी मदद तो सिद्धनाथ ने बताया कि फरारी का समय बड़ा विकट होता है, और फूलन उस समय प्रदेश और देश में मशहुर हो चुकी थी। जादातर उसने यहीं पास के नरवा में ही फरारी काटी थी। गांव के लोग उसके लिए खाना-पानी पहुँचा देते थे, इतनी ही मदद उसके लिए बहुत थी। वह कभी गांव की औरतों को साड़ियां तो कभी दवाएं बंटवाया करती थी। कुल मिलाकर फूलन किसी के साथ गलत नहीं करती थी।
गांव से निकलते हुए हमें बकरी चराती एक अत्यंत बुजुर्ग महिला बालादेवी मिलीं। बातों ही बातों में उन्होने हमसे फूलन से खुद की हमजोली उजागर की। हमने पूछा कि किस तरह से जानती थीं आप उन्हें? उन्होने बेहद उदासी में हमें बताया कि अब का जानतीं हैं, जिंदा मा जानें अब मर के चली गई तो का जाने? बालादेवी ने भी हमसे कहा कि फूलन बहुत मददगार किस्म की थी। गांव में सांसद बनने के बाद फूलन गाँव में एक मेडिकल कालेज बनवाना चाहती थी। ये उसका सपना था, जे उसकी मौत के साथ ही चला गया।
बेहमई कांड की पिछली तारीख 2 फरवरी 2021 को पड़ी थी। अगली सुनवाई की तारीख कानपुर देहात की माती कोर्ट में 17 फरवरी को होनी मुकर्रर की गई है। इस मामले में फैसला किसी के भी हक या पक्ष में आए लेकिन फूलन देवी और बेहमई में हुए इस कांड को जानने समझने वाले ताउम्र शायद ही भूल पाएं।