DDU News Today: कुलपति के खिलाफ सत्याग्रह कर रहे प्रोफेसर ने अब शरीर त्यागने की दी चेतावनी, निर्णय वापस लेने की उठी मांग
DDU News Today: कुलपति के खिलाफ सत्याग्रह कर रहे प्रोफेसर ने अब शरीर त्यागने की दी चेतावनी, निर्णय वापस लेने की उठी मांग
जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट
DDU News Today: दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजेश सिंह के खिलाफ एक माह से चला आ रहा आंदोलन अब एक नये मोड़ पर आ गया है। कुलपति को हटाने की मांग को लेकर सत्याग्रह कर रहे प्रोफेसर कमलेश कुमार गुप्त ने अपने विरोध को सत्याग्रह के रास्ते पर चलकर आगे बढ़ाने के फैसले पर 23 जनवरी को पुनर्विचार करते हुए स्थगित करने का एलान किया। साथ ही कुलपति को न हटाने की स्थिति में वसंत पंचमी के दिन शरीर त्याग देेने का एलान कर सबको अचंभित कर दिया। उनके इस निर्णय पर शिक्षक-छात्र व अन्य शुभचिंतकों ने चिंता व्यक्त करते हुए फैसले को वापस लेने की मांग की है। इस बीच सवाल यह उठता है कि कुलपति के खिलाफ भ्रष्टाचार व मनमानी की शिकायतों के बावजूद कुलाधिपति के कोई कार्रवाई न करने के पीछे आखिर वे कौन लोग हैं,जो गलत परंपराओं व कार्यशैली को संरक्षण देकर माहौल खराब करने की कोशिश कर रहे हैं तथा शिक्षक संघ के लड़ाई को आगे बढ़ाने के आश्वासन के बाद उनकी चुप्पी कुलपति के असंवैधानिक कार्यों को बढ़ावा देने पर बल दे रहा है।
कुलपति प्रोफेसर राजेश सिंह के महीनों से चल रहे इस विवाद का कोई परिणाम ना आता देख सत्याग्रह कर रहे प्रोफेसर कमलेश कुमार गुप्त का धैर्य 23 जनवरी को आखिरकार अब जवाब दे दिया है। व्यवस्था से त्रस्त आकर उन्होंने अपना सत्याग्रह तो स्थगित कर ही दिया साथ ही बसंत पंचमी के दिन शरीर त्याग देने की भी घोषणा कर दी है । प्रोफेसर कमलेश कुमार के इस अगले कदम ने विश्वविद्यालय प्रशासन को सकते में डाल दिया है।
सोशल मीडिया पर इनके समर्थन में ढेर सारी पोस्ट लिखी जा रही है। एक महीने से सत्याग्रह कर रहे प्रोफेसर कमलेश कुमार ने अपने विरोध कार्यक्रम के तहत सबसे बड़ा कदम चल दिया है। अब देखना यह है कि विश्वविद्यालय प्रशासन और राजभवन आगे क्या करता है। निलंबित प्रोफेसर कमलेश कुमार गुप्त का साफ कहना है कि दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर राजेश सिंह के पद पर बने रहते हुए उनके विरुद्ध जांच प्रक्रिया संभव नहीं है। जब तक वे पद पर बने रहेंगे तब तक निष्पक्ष जांच नहीं हो सकती।
प्रोफेसर कमलेश कुमार गुप्त ने सोशल साइट्स पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जयंती पर उन्हें सादर नमन करते हुए लिखा कि मेरे सत्याग्रह का एक महीने से ज्यादा समय पूरा हो चुका है। प्रोफेसर राजेश सिंह कुलपति दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर के विरुद्ध शपथ पत्र और साक्ष्यों के साथ की गई शिकायत पर भी अब तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है। कुलाधिपति सचिवालय के संरक्षण में वे लगातार खुलेआम नियम-कानूनों का उल्लंघन कर रहे हैं। इस बीच कोरोना काल में विश्वविद्यालय की प्रथम सेमेस्टर की परीक्षा शुरू कर शिक्षकों व विद्यार्थियों का दमन एवं उत्पीड़न कर रहे हैं और अब गोरखपुर और संबद्ध महाविद्यालयों के विद्यार्थियों, शिक्षकों और कर्मचारियों की जान खतरे में डाल चुके हैं।
उन्होंने आगे लिखा कि जब कोरोना संकट को देखते हुए कई विश्वविद्यालयों की परीक्षाएं स्थगित हो गई हैं (शैक्षणिक संस्थानों को पूर्णतया बंद रखने के अर्थ में यह आता है।) ऐसे में, भी प्रोफेसर राजेश सिंह परीक्षा कराने पर अड़े हुए हैं। क्या कोरोना पढ़ाई और परीक्षा के बीच कोई भेदभाव करेगा? पढ़ाई के लिए आने वालों को हो जाएगा और परीक्षा के लिए आने वालों को नहीं होगा?
इस बार बिना लक्षण वाले मरीजों की संख्या ज्यादा बताई जा रही है। ऐसे में, आने वाले विद्यार्थियों, शिक्षकों और कर्मचारियों में कौन संक्रमित है, कौन नहीं, इसका पता कैसे चलेगा? बिना लक्षण वाले लोगों से संक्रमण दूसरों में नहीं फैलेगा, यह कैसे कहा जा सकता है?
प्रोफेसर राजेश सिंह की ऐसी ही जिद के कारण हमारे विश्वविद्यालय के दो शिक्षकों और कई कर्मचारियों का देहांत हुआ था, कोरोना की पिछली लहर में। लोकतंत्र में जब किसी महत्वपूर्ण पद पर बैठा हुआ कोई व्यक्ति सारी व्यवस्था को चुनौती देता हुआ नियम-कानूनों का खुला उल्लंघन कर रहा हो और व्यवस्था लाचार हो गई हो उसके सामने, तो शिक्षक का धर्म होता है, व्यवस्था को ठीक करना।
हम व्यवस्था को ठीक से काम करने के लिए, अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करने के लिए प्रेरित करना चाहते हैं। प्रोफ़ेसर कमलेश कुमार गुप्त ने आगे लिखा है कि मैंने प्रोफेसर राजेश सिंह के विरुद्ध शपथ पत्र और साक्ष्यों के साथ शिकायतें की हैं अगर मेरी शिकायतें गलत हों, तो मुझको सजा मिलनी चाहिए और अगर मेरी शिकायतें सही हों, तो प्रोफेसर राजेश सिंह को सजा मिलनी चाहिए।
प्रोफेसर राजेश सिंह के कुलपति के पद पर रहते हुए उनके विरुद्ध कोई निष्पक्ष जाॅंच संभव नहीं है, इसलिए उनको उनके पद से हटाया जाना चाहिए और मेरी शिकायतों की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। मेरे सत्याग्रह करते एक माह का समय बीत चुका है। प्रोफेसर राजेश सिंह के विरुद्ध अब तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है।
कुलाधिपति सचिवालय शासनादेश का उल्लंघन करते हुए उनको संरक्षण दे रहा है। विश्वविद्यालय को बचाने की कामना लिए हुए लोग निराशा की ओर बढ़ रहे हैं। मेरे सभी शिक्षक मित्र, शिष्य और शुभेच्छु कुलपति जी के आतंककारी, असंवेदनशील, गैरकानूनी, विश्वविद्यालयविरोधी निर्णयों और कुलपति के विरुद्ध अब तक किसी कार्यवाही के न होने से गहरे तनाव में हैं। ऐसे में, मेरे पास 'करो या मरो' का ही रास्ता बचता है।
निलंबित आचार्य प्रोफ़ेसर कमलेश कुमार गुप्त ने चेतावनी दी कि अगर बसंत पंचमी (5 फरवरी, 2022) के पूर्व प्रोफेसर राजेश सिंह को उनके पद से नहीं हटाया जाता है,तो मैं बसंत पंचमी (5 फरवरी, 2022) के दिन अपराहन 2.30 पर अपने विश्वविद्यालय के प्रशासनिक भवन परिसर में अवस्थित दीनदयाल उपाध्याय की प्रतिमा के समक्ष यौगिक प्रक्रिया द्वारा अपना शरीर त्याग दूॅंगा। मेरे सत्याग्रह का यह चरण तब तक के लिए स्थगित रहेगा।
मैं विश्वविद्यालय को बचाने की कामना करने वाले सभी जन से, विशेषकर युवा मित्रों और अपने प्रिय शिष्यों से धैर्य और शांति बनाए रखने की अपील करता हूॅं। उन्होंने सभी व्यक्ति, समूह, संगठन और संस्था के रूप में आप द्वारा मिले समर्थन, सहयोग और सुझावों के लिए मैं आभारी हूॅं। उन्होंने पोस्ट के साथ एक कोविड अवकाश से संबंधित शासनादेश भी लगाया है।
प्रोफेसर से निर्णय वापस लेने की उठी मांग
प्रोफेसर कमलेश कुमार गुप्त की यह पोस्ट आने के बाद से ही उनके समर्थक और विद्यार्थी शुभचिंतक लगातार चिंता व्यक्त कर रहे हैं। उनके एक शुभचिंतक ने लिखा है कि आपका यह निर्णय हम सब को बहुत ही आहत कर गया। शरीर का त्याग उचित निर्णय नहीं है। धैर्य और साहस बनाये रखिये हम सब आपके साथ है।
मंशा देवी नाम के यूजर ने लिखा है कि मानव जीवन अनमोल है।जल्दबाजी में यह निर्णय उचित नहीं है।यह आपके धैर्य की परीक्षा है।बुद्धिजीवी वर्ग आपके साथ है।देर है अन्धेर नहीं ,अब समय आ गया है जब सत्याग्रह सफल होने वाला है।विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग के प्रोफेसर विमलेश मिश्र लिखते हैं कि कमलेश सर,इतना बड़ा निर्णय लेना ठीक नहीं है।
कीर्ति आजाद नाम के यूजर ने लिखा है कि इस पूरे आंदोलन को देखकर यह भलीभांति समझ में आ गया कि कुछ लोग सिर्फ बड़ी बड़ी बातें हाँकने के लिए हैं। डरता आखिर कौन है? चोर ही न जिसने चोरी किया है या कोई अन्य जिसने अपराध किया हो।इसका मतलब तो यही हुआ कि लोग सिद्धान्त में कुछ और व्यवहार में कुछ और।कुलमिलाकर यही कहेंगे भेड़िया सिर्फ शेर की खाल ओढ़कर अपनी धौंस जमाता है । वास्तविकता में कुछ और ही रहता है और लोग नौकरी ही बचायें पर यह जान लें आगे किसी मंच पर ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की बात भी न करियेगा। गुरू जी आप का यह निर्णय हम सब को बहुत ही आहत कर गया। शरीर का त्याग उचित निर्णय नहीं है। साथ ही और भी कई यूजर्स ने उनकी पोस्ट को शेयर करते हुए चिंता व्यक्त किया है।