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DDU News Today: डीडीयू गोरखपुर के छात्रों पर आपराधिक मुकदमे के बाद विश्वविद्यालय बना युद्ध का मैदान, प्री पीएचडी का पेपर कराने पर अड़ा प्रशासन
जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट
DDU News Today: दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय गोरखपुर के कुलपति को हटाने की मांग को लेकर शिक्षकों का आंदोलन 17 छात्रों पर आपराधिक धाराओं में मुकदमा दर्ज करने के बाद एक नया मोड़ ले लिया है। मानकों के विपरित प्रश्न पत्र तैयार करने को लेकर कुछ छात्रों के परीक्षा बहिष्कार व अन्य छात्रों की कापियां फाड़ देने को लेकर शुरू हुआ बवाल बढ़ने से कैंपस में युद्ध का माहौल बन गया है। पुलिस चैकसी जहां बढ़ा दी गई है,वहीं 9 जनवरी को दूसरे प्रश्न पत्र की परीक्षा कराने पर अड़े विश्वविद्यालय प्रशासन के विरोध में ये छात्र विरोध प्रदर्शन के मूड में हैं।
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.राजेश सिंह के खिलाफ शिक्षकों ने मोर्चा खोल दिया है। नियमों की अनदेखी करने व शिक्षकों को प्रताड़ित करने का आरोप लगाते हुए कुलपति को हटाने की मांग को लेकर हिंदी विभाग के प्रोफेसर कमलेश गुप्ता ने सत्याग्रह के साथ आंदोलन की शुरूआत की र्थी जिसके समर्थन में उतरे शिक्षक संध ने नई कार्यकारिणी के चुनाव के पूर्व तक संघर्ष समिति बनाकर आंदोलन जारी रखने का एलान किया। इसके एक दिन बाद ही अमेरिका के दौरे से लौटे कुलपति प्रो.राजेश सिंह ने पहली बार फौरी तौर पर संवाद का रास्ता अपनाया, जिसमें सभी विभागाध्यक्षों और अन्य शिक्षकों तथा अधिकारियों से वार्ता की।
हालांकि कुछ शिक्षकों ने इस वार्ता को शिक्षकों पर दबाव बनाने का नया तरीका बताया। हालांकि कुलपति के इस पहल के बाद आंदोलन कुछ कमजोर पड़ता दिखा। इस बीच प्री पीएचडी के परीक्षा में छात्रों के बवाल मचाने से कैंपस का माहौल गरमा गया है और अब शिक्षकों के बाद अब छात्रों का आंदोलन एक नया मोड़ ले लिया है। प्रथम प्रश्नपत्र की परीक्षा में निर्धारित मानक के विरूद्ध पेपर तैयार करने को लेकर कुछ छात्रों ने विरोध किया तथा अन्य छात्रों की कापियां भी फाड़ दी। इस मामले में आरोपित छात्रों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज कराया गया है। इसके बाद विश्वविद्यालय प्रशासन अब द्वितीय प्रश्न पत्र की परीक्षा कराने जा रहा है। कोरोना के अचानक तेजी से बढ़ते मरीजों के चलते यूपी के सभी उच्च शिक्षण संस्थान भी बंद कर दिए गए हैं। इसके बाद भी 9 जनवरी को परीक्षा कराने पर विश्वविद्यालय प्रशासन अड़ा हुआ है।
सत्रह छात्रों पर आपाराधिक मुकदमे के बाद आक्रोश
डीडीयू में प्री पीएचडी परीक्षा के दौरान 7 जनवरी को कई छात्रों ने विवि प्रशासन द्वारा प्रश्न पत्र का प्रारूप बदले जाने का आरोप लगाते हुए हंगामा किया। आरोप है कि परीक्षा के दौरान ही हंगामा कर रहे छात्रों द्वारा सौ से अधिक विद्यार्थियों की उत्तरपुस्तिका फाड़ दी गई। इसके बाद डीडीयू प्रशासन ने इस मामले में 17 छात्रों पर कैंट थाने में केस दर्ज करा दिया है।
प्री पीएचडी का कोर्स वर्क छह महीने में ही पूरा हो जाता है। लेकिन कोरोना के चलते '2019-20 के छात्रों की परीक्षा ढाई साल बाद भी पूरी नहीं हो पाई' थी। इसे लेकर छात्र आंदोलित थे। इस बीच डीडीयू प्रशासन द्वारा 7 और 9 जनवरी को उनकी परीक्षा कराने का निर्णय लिया। छात्रों को आश्वासन दिया गया था कि जितना पाठ्यक्रम पढ़ाया गया है, उसी के अनुरूप परीक्षा होगी। 7 जनवरी को रिसर्च मेथोडोलॉजी का पेपर शुरू हुआ तो प्रश्नपत्र हाथ में मिलते ही कुछ छात्र परीक्षा कक्ष से हंगामा करते हुए बाहर निकल आए। छात्रों के हंगामे को देखते हुए डीडीयू प्रशासन ने पीएसी बुलवा ली। दीक्षा भवन के सभी द्वार बंद कर ताले जड़ दिए गए।
इस दौरान 'मुख्य नियंता प्रो. सतीश चन्द्र पाण्डेय छात्रों को समझाते' रहे। डीडीयू प्रशासन का आरोप है कि इसी दौरान परीक्षा दे रहे 100-150 छात्र-छात्राओं की उत्तर पुस्तिका फाड़ दी गई। व्यवधान उत्पन्न करने और उत्तरपुस्तिका फाड़ने के आरोपियों को 'विवि से निष्कासित करने तथा उनके खिलाफ सरकारी कार्य में बाधा पहुंचाने और सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाने की धारा में केस दर्ज' कराया गया है।
डीडीयू प्रशासन के मुताबिक परीक्षा में व्यवधान उत्पन्न करने और उत्तरपुस्तिका फाड़ने वालों में मंदीप राय, कमलकान्त राव, राधा, अन्नू जायसवाल, कृतिका सिंह, रामभरोसे तिवारी, राजन दूबे, अमन यादव, सुधीर मद्धेशिया, अंजली पाण्डेय, राजन विश्वकर्मा, प्रशान्त मौर्या, आनन्द मिश्रा, श्वेता, दीप्ति, अर्चना, प्रियंका आदि शामिल रहे।
परीक्षा का बहिष्कार करने वाले छात्रों का आरोप
परीक्षा का बहिष्कार करने के बाद ये छात्र डीडीयू के मुख्य द्वार पर मंडलायुक्त को संबोधित ज्ञापन अपर नगर मजिस्ट्रेट को सौंपा। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रथम प्रश्न पत्र की परीक्षा 45 नंबर की कराई जानी थी। लेकिन प्रारूप के विपरीत 45 नंबर का बहुविकल्पीय और 20 नंबर की लिखित परीक्षा का पेपर दिया गया। इसके अलावा पाठयक्रम मेे जितनी पढ़ाई हुई थी। उसी से प्रश्न पूछे जाने का आश्वासन दिया गया था,पर उससे बाहर के कई प्रश्न पूछे गए।
सात प्रोफेसरों के एक दिन का वेतन काटने से बढ़ा आक्रोश
विश्वविद्यालय प्रशासन ने वाणिज्य विभाग के प्रो. अजेय कुमार गुप्त, रसायन विज्ञान विभाग के प्रो. उमेश नाथ त्रिपाठी,गणित एवं सांख्यिकी विभाग के प्रो. विजय कुमार,प्रो. विजय शंकर वर्मा व प्रो. प्रो. सुधीर कुमार श्रीवास्तव, इतिहास विभाग के प्रो. चंद्रभूषण गुप्त 'अंकुर' एवं हिन्दी विभाग के प्रो. अरविंद कुमार त्रिपाठी का एक दिन का वेतन काटने का आदेश जारी हुआ है।ये सभी शिक्षक 'हिन्दी विभाग के निलंबित आचार्य प्रो. कमलेश कुमार गुप्त के समर्थन में 21 दिसम्बर को प्रशासनिक भवन पर बैठे थे।' इसके बाद कुलपति ने एक दिन का वेतन भुगतान न करने का आदेश दिया था। इसी क्रम में दो दिन पूर्व कुलसचिव विशेश्वर प्रसाद ने एक दिन का वेतन काटने का आदेश निर्गत' किया है। प्रो. कमलेश कुमार गुप्त ने शिक्षकों की वेतन कटौती के आदेश को पूरी तरह विधि विरूद्ध बताते हुए कहा है कि यह गैर लोकतांत्रिक कार्रवाई है। सभी शिक्षक अपनी कक्षाएं लेने के बाद हमारे सत्याग्रह में शामिल हुए थे। इस उत्पीडनात्मक कार्रवाई से कुलपति सभी शिक्षकों पर दबाव बनाने की असफल कोशिश कर रहे हैं।
इस बीच आंदोलन की अगली रूपरेखा तय करने के लिए शिक्षक संघर्ष समिति की 8 जनवरी दिन शनिवार को बैठक बलाई गई थी। लेकिन शिक्षक संघ के उमेश तिवारी के पिता के निधन की सूचना पर बैठक स्थगित कर दी गई। ऐसे में अब आगे के आंदोलन को लेकर अनिश्चितता की स्थिति उत्पन्न हो गई है। उधर ओमिक्रान के मरीजों की तेजी से बढ़ती संख्या के बाद 14 जनवरी तक के लिए कैंपस बंद कर दिया गया है। दूसरी तरफ विधान सभा चुनाव को लेकर अधिसूचना जारी हो जाने से अब कोई भी आंदोलन बिना अनुमति के शिक्षक नहीं कर पाएंगे। दूसरी स्थिति यह है कि परीक्षा का बहिष्कार करनेवाले व मुकदमा पंजीकृत होने से नाराज छात्र दूसरे पेपर की परीक्षा कराने का विरोध कर रहे हैे। ऐसे में कैंपस का माहौल तनाव पूर्ण बना हुआ है।
बहुविकल्पीय प्रश्नपत्रों पर इतना जोर क्यो?
हिंदी विभाग के प्रोफेसर कमलेश गुप्त ने कहा कि हमारा विश्वविद्यालय गहरे आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है। ऐसे में, कुलपति बहुविकल्पीय (जिस पद्धति से न पढाई हुई और न ही जिसका प्रारूप किसी संवैधानिक निकाय से पास था।) प्रश्नपत्रों को मुद्रित करवाकर और बाहरी एजेंसी द्वारा उसका मूल्यांकन कराकर विश्वविद्यालय पर और अधिक आर्थिक बोझ बढ़ा रहे हैं। अधिकाधिक रूप से बाहरी एजेंसियों पर निर्भर होने और उन्हें लाभान्वित कराने का कारण क्या है? प्री पीएचडी की परीक्षा जिस प्रारूप पर हुई है, प्रश्न पत्रों का वह 'प्रारूप विश्वविद्यालय के किसी सक्षम निकाय से प्रस्तावित, स्वीकृत, संस्तुत और अनुमोदित नहीं था। यह कुलपति द्वारा पाठ्यक्रम समिति, संकाय परिषद, विद्या परिषद और कार्य परिषद जैसे संवैधानिक निकायों की 'जानबूझकर की गई अनदेखी तथा उनकी विधिविरुद्ध मनमर्जी का एक और प्रबल प्रमाण है।
विश्वविद्यालय के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि विभागाध्यक्षगण और विश्वविद्यालय के वरिष्ठतम आचार्यों द्वारा 'मॉडरेशन के बाद लिफाफे में सीलबंद किए हुए प्रश्न पत्रों के प्रारूप में बदलाव हो गया हो और अतिरिक्त प्रश्न जुड़ गए हों। यह भी पहली बार ही घटित हुआ है कि 'उर्दू के प्रश्नपत्र हिंदी (देवनागरी लिपि)में छपकर आए हैं। यह कोई चामत्कारिक संयोग नहीं है, बल्कि 'गंभीर अनियमितता का ज्वलंत उदाहरण' है। इस पूरे प्रकरण के लिए वैधानिक रूप से पूरी तौर पर हमारे विश्वविद्यालय के कुलपति 'प्रोफेसर राजेश सिंह जी जिम्मेदार' हैं। इसकी 'स्वतंत्र एजेंसी से उच्चस्तरीय और निष्पक्ष जाॅंच होनी चाहिए और दोषियों पर कठोरतम कार्रवाई' होनी चाहिए।
प्रोफेसर कमलेश गुप्ता ने यह भी कहा है कि 'हम यह माॅंग करें किससे? अगर कुलाधिपति जी से करें, तो पता नहीं उन तक हमारी बात पहुंचेगी भी, कि नहीं। कुलाधिपति सचिवालय पूरी तरह से कुलपति जी के साथ खड़ा है। हमारी सारी शिकायतें कुलपति तक प्रेषित कर रहा है और कुलपति जी लगातार शिक्षकों, विशेषकर विभागाध्यक्षगण पर अपना दबाव बनाने में लगे हुए हैं। कुलाधिपति सचिवालय की बेहद आपत्तिजनक भूमिका के बाद सत्याग्रह के सिवाय और रास्ता बचता ही क्या है?'
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