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हाथरस कांड में अब हो सकती है ED की एंट्री, विदेशी फंडिंग की हो सकती है जांच
जनज्वार। उत्तर प्रदेश के हाथरस में हुई घटना और पीड़िता की मौत के मामले में ईडी की एंट्री भी हो सकती है। पीड़िता की मौत और उसके बाद पनपे राजनीतिक माहौल के बीच अब स्थिति बदलती हुई दिख रही है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने आरोप लगाया है कि इस घटना की आड़ में प्रदेश में जातीय दंगा भड़काने की कोशिश हो रही थी, जिसके लिए वेबसाइट बनाकर और अन्य प्लेटफॉर्म के जरिए फंड इकट्ठा किया जा रहा था। अब जल्द ही इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) की एंट्री हो सकती है, जहां पर फंडिंग की जांच को लेकर मामला दर्ज हो सकता है।
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में ED के एक अधिकारी के हवाले से कहा गया है कि हाथरस की पुलिस ने एक वेबसाइट को लेकर केस दर्ज किया है। इसके बाद एजेंसी इसमें जांच का एंगल देखेगी। इस वेबसाइट के जरिए जस्टिस फॉर हाथरस के लिए मुहिम चलाई गई। सूत्रों का कहना है कि ऐसे में ईडी जल्द ही PMLA के तहत इसमें मामला दर्ज कर फंडिंग पर जांच शुरू कर सकती है। साथ ही जल्द ही कई गिरफ्तारियां देखने को मिल सकती हैं।
हाथरस की पुलिस ने इस मामले में सेक्शन 153A के तहत भी केस दर्ज किया है। इसी धारा में PMLA का सेक्शन भी लागू होता है। एक बार अगर ED इस मामले में जांच आगे बढ़ाती है तो विदेशी फंडिंग को लेकर कई बातें सामने आ सकती हैं। जिसमें वेब पॉर्टल के द्वारा किसे पैसा मिला, किसने दिया और कहां से आया, जैसी चीज़ों को परखा जाएगा।
इस दौरान कई ऐसी एजेंसियों की मदद ली जाएगी, जो आईपी एड्रेस खंगालने, ई-मेल आईडी, फोन नंबर, वेबसाइट, वेब लिंक जैसे तारों को जोड़ पाए। जो वेब प्लेटफॉर्म इस मामले में निशाने पर है वो मुख्य रूप से अमेरिकी बेस्ड है।
बता दें कि यूपी पुलिस का दावा है कि हाथरस को लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर गलत जानकारी फैलाई गई। जिसके कारण माहौल बिगाड़ने की कोशिश की गई और एक जाति से दूसरी जाति में लड़ाई करवाने की कोशिश की गई। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इस मामले में एक्शन की बात कही थी, साथ ही विपक्ष पर माहौल बिगाड़ने का आरोप लगाया था।
गौरतलब है कि यूपी के हाथरस में एक युवती के साथ कथित तौर पर दुष्कर्म की घटना हुई थी, जिसके बाद दिल्ली में 29 सितंबर को उसकी मौत हो गई थी। मौत के बाद यूपी पुलिस द्वारा युवती का अंतिम संस्कार रात में ही कर दिया गया था, उसपर काफी विवाद हुआ। कुछ राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने इस पर सवाल खड़े किए।