Begin typing your search above and press return to search.
उत्तर प्रदेश

EXCLUSIVE : कानपुर के रैन-बसेरों में सिपाहियों का कब्जा, सड़कों पर सो रहे बेसहारा गरीब-मजदूर

Janjwar Desk
4 Dec 2020 12:12 PM GMT
EXCLUSIVE : कानपुर के रैन-बसेरों में सिपाहियों का कब्जा, सड़कों पर सो रहे बेसहारा गरीब-मजदूर
x
कानपुर में नगर निगम और डूडा के 28 से जादा शेल्टर होम बने हुए हैं, बीती 26 नवम्बर को मंडलायुक्त ने मुआयना किया था, बावजूद इसके हालात ठीक नहीं कहे जा सकते। मंडलायुक्त ने सामाजिक दूरी का हवाला देकर रजिस्टर भी चेक किये थे जबकि हमें न तो कोई रजिस्टर मिला और न ही सामाजिक दूरी ही दिखी....

मनीष दुबे की रिपोर्ट

जनज्वार ब्यूरो/कानपुर। ठंड शुरू हो चुकी है। हालांकि कोई नई बात नहीं है, हर साल ठंड का मौसम आता है। नई बात यह है कि ठंड से पहले शहर के रैन बसेरों को दुरस्त करने का फरमान दिया-लिया जाता है, बावजूद इसके गरीबों के लिए निर्मित शेल्टर होम किस हद तक इनके काम आते हैं बीती रात 'जनज्वार' ने इसका जायजा लिया।

रात के साढ़े आठ पौने 9 बजे चुन्नीगंज स्थित शेल्टर होम का नजारा बाहर से बेहद सुखद लग रहा था। अंदर का दृश्य और भी ठीक था कि वहां रुकने वालों के लिए एक बगल में पुस्तकालय भी चलाया जा रहा है। आम जनता को इसका फायदा मिलता हो ना मिलता हो उन्हें जरूर फायदा मिलता होगा जो विशेष प्रवत्ति के आगंतुक आकर ठहरते होंगे।

इस रैन बसेरे के एक कमरे में एक आध सिपाही रुके हुए थे। रैन बसेरा चला रहे व्यक्ति से पूछा तो बोला एक होमगार्ड है। कब से रुका है पूछने पर बताया गया कि कोई 5-6 दिन से रुका है। अन्य कमरे में कुछ और भी लोग रुके थे। इनके मुताबिक वह 15-15 रुपये में यहां रुके हैं। कोई फतेहपुर से आया था तो कोई उन्नाव से। 15 रुपये लिए जाने की बाबत शेल्टर होम को चला रहे व्यक्ति ने बताया कि बाकायदा पर्ची दी जाती है।

रात साढ़े 9 बजे सरसैया घाट वाले दो-मंजिला शेल्टर होम में नीचे आगंतुक तो ऊपर यूपी पुलिस का सिपाही रुका हुआ था। इस शेल्टर होम की देखरेख कर रहा एक अधेड़ व्यक्ति हमे देखकर चलने को हुआ, तो हमने उसे रोका। हमने कहा कौन कौन रुका है। उसने कहा कि ऊपर कुछ सिपाही रुके हैं। एंट्री वाला रजिस्टर मांगने पर उसने बताया कि बना ही नहीं है।

ऊपर जाकर देखा तो एक सिपाही मय हथियार वर्दी उतारकर सोने जा रहा था। पूछने पर उसने बताया लगभग-लगभग डेढ़ महीने से वो यहां ठहरा हुआ है। यहां ठहरने का हवाला उसने पुलिस लाइन की बैरकें ध्वस्त हो जाना बताया। हमने उससे पूछा कि क्या आपके ऊपर अधिकारियों को आपके यहाँ रुकने की जानकारी है तो उसने नहीं में जवाब दिया। सिपाही ने अपना नाम रजनीश यादव जनपद इटावा का रिहायसी बताया।

इस शेल्टर होम में एक समस्या यह थी जो नीचे रुके लोगों से पता चली वह यह कि यहां आगंतुकों के लिए शौचालय नहीं है। यहां रुकने वालों को थोड़ी दूर चलकर सुलभ में जाना पड़ता है। जहां 5 रुपये नहाने के और इतने ही रुपये नित्यक्रिया के देने पड़ते हैं। कपड़े धो लो तो उसका चार्ज अलग है।


हम बाहर आकर चलने को हुए तो दो सिपाही डायल-100 पर बैठकर और आ गए। दोनों हमें देखकर चौड़ाते हुए अंदर दाखिल होने लगे। अंदर बताया गया कि पत्रकार आये हैं। तो बाहर आकर हमारे पास खड़े हो गए। एक सिपाही ने अपना नाम शिवकुमार यादव बताते हुए पूछा 'भैया कौन से अखबार से हो? हमने उसे कहा 'जनज्वार' से। बोला ये अखबार तो आता ही नहीं। हमने कहा हर आने वाला भी अखबार नहीं होता।

सिपाही शिवकुमार के साथ एक अन्य सिपाही और भी था। हमने पूछा कि यहीं ठहरे हैं। दोनों एक साथ बोले नहीं। हम लोग रुके नहीं हैं, रात्रि गस्त पर हैं बस घण्टे चार घण्टे कमर टेक कर चले जायेंगे। बातों बातों में उसने देश के पीएम की बुराई करनी शुरू कर दी। साथ मे योगी आदित्यनाथ को भी लपेटा। बोला 'भैया इन लोगों ने सब बेच दिया' हमने कहा आपको काहे की तकलीफ, मौज है पूरी।

शेल्टर होम के बगल में कूड़े का ढेर भी लगा था। मंदिर के पुजारी अपना शुभ नाम अमरनाथ मिश्रा बताया। महंत जी के मुताबिक यहां की साफ-सफाई का जिम्मा 'नमामि गंगे' परियोजना के तहत काम कर रहे लोगों की है। पर इन लोगों ने साफ-सफाई के नाम पर यहां की मिट्टी पलीत कर रखी है। पुजारी ने बताया कि इनकी जो सुपरवाइजर है वह लेडीज और फैशनेबल है। सारे कर्मचारी उसके ही आगे पीछे घूमते रहते हैं, साफ-सफाई का बंटाधार हुआ जा रहा है। सब फ्री की तनख्वा ले रहे हैं।

हम यहां से निकले तो साढ़े 10 बजे आगे एक्सप्रेस रोड पर जिंदगी के हालात और खराब नजर आए। सड़कों गैलरियों में बाहर आदमी पड़े सो रहे थे। थोड़ी ही दूर शेल्टर होम बना हुआ है। हमने कहा वहां जाकर क्यों नहीं रुकते। तो एक नए उठकर कहा 'भैया वहां गुंडों का कब्जा है, वहां जो भी रुक गया आज तक जिंदा वापस नहीं आया।' हमने कहा ऐसा क्या होता है वहां? 'बोला ऐसा ही है। पैसे लिए जाते हैं वहां, हम लोग गरीब कहां वहां रुकेंगे जाकर।'

थोड़ा ही आगे बढ़ने पर एक बुजुर्ग पतला सा चादर ओढ़कर सोते मिले। इन्होंने पूछने पर अपना नाम शुक्लागंज निवासी शुशील वर्मा बताया। ये पास के शनिमंदिर में बैठते हैं और मांगकर गुजारा करते हैं। घर मे ना रहने की कहानी बताई की लॉकडाउन लगने के कुछ महीनों बाद बेटे ने घर से यह कहते हुए की 'अब हम तुम्हें नहीं खिला पाएंगे' निकाल दिया। बुजुर्ग की बात सुनकर मुझे उसपर तरस तो उसके बेटे पर गुस्सा आया। हमसे बात करते-करते बुजुर्ग के आंखों की कोरें आंसुओं से भीग गईं जो रात के घुप्प अंधेरे में भी चमक रही थी।

बुजुर्ग शुशील से हमने कहा कि आप शेल्टर होम में जाकर क्यों नहीं रुकते थोड़ा ही आगे बना है। बोला उसके पास जान-पहचान नहीं है। बिना जान-पहचान वालों की हालत बहुत खराब है वहां। बुजुर्ग ने हमे बताया कि एक्सप्रेस रोड वाले शेल्टर होम में नीचे बिना पहचान वालों को रोंका जाता है तो ऊपर रुकने वालों से पैसे लिए जाते हैं। कुछ लोकल बदमाशों का वहां कब्जा है। जो अपनी मर्जी से सबकुछ चलाते हैं।

आगे चलकर हम एक्सप्रेस रोड वाले शेल्टर होम पहुंचे। शेल्टर होम के निचले हिस्से में सैंकड़ो की तादाद में लोग अस्त-व्यस्त हालत में पड़े थे। कुछ संत-महात्मा तो कई नशेबाज लेटे हुए थे। सामने कुछ लोग चिलम भी सुलगा रहे थे। घुप्प अंधेरा था, रोशनी का नामोनिशान तक नहीं दिख रहा था। बीड़ी और गांजे के धुएं से वहां खड़ा हो पाना भी जंग लड़ने के समान लग रहा था।


दूसरे माले में जाकर देखा तो चार से पांच लोग रुके हुए थे, सामने टीवी चल रहा था। बाकी सारे बिस्तर खाली पड़े हुए थे। इस शेल्टर होम की निगरानी कर रहे व्यक्ति से हमने नीचे के हालात पूछे तो बताया गया जिनके पास कोई पहचान नहीं होता वो नीचे आकर सो जाते हैं। कोई रजिस्टर इत्यादि हो, जिसमे यहां रुकने वालों के नाम लिखे जाते हों पूछने पर मना किया गया। कहा नहीं ऐसी कोई सुविधा, व्यवस्था नहीं है।

कानपुर में नगर निगम और डूडा के 28 से जादा शेल्टर होम बने हुए हैं। बीती 26 नवम्बर को मंडलायुक्त ने मुआयना किया था, बावजूद इसके हालात ठीक नहीं कहे जा सकते। मंडलायुक्त ने सामाजिक दूरी का हवाला देकर रजिस्टर भी चेक किये थे। जबकि हमें न तो कोई रजिस्टर मिला और न ही सामाजिक दूरी ही दिखी। पक्ष विपक्ष सब गर्म रजाइयों में रात काट रहा। उसे पक्ष-विपक्ष का तमगा देने दिलाने वाला वोटर सर्द रात में खट रहा है, यही नियति है।

इसके अलावा चमनगंज, डिप्टिपड़ाव, मोतीझील, एक्सप्रेस रोड सहित कई रैन बसेरो के हालात भी एक जैसे थे। कहीं रैन बसेरों में ताला बंद, तो कहीं चारों तरफ गंदगी का अंबार। कई रैन बसेरों के छत की हालत जर्जर हो चुकी थी। बेसहारों को मुंह चिढ़ाते ये रैन बसेरे निकम्मे अधिकारियों की अनदेखी की भेंट चढ़ चुके हैं। कई स्थानीय लोगों ने बताया कि यहां रैन बसेरा खुला जरूर है, लेकिन ये महज हाथी के दांत के समान हैं।

Next Story

विविध