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Kisan Andolan Update: किसान आंदोलन को धार देने आज जौनपुर आएंगे योगेंद्र यादव, पूर्वांचल में तीन दिनों तक नेताओं का रहेगा जमावड़ा
जीतेन्द्र उपाध्याय की रिपोर्ट
Kisan Andolan Update: उत्तर प्रदेश की सियासी राजनीति का केंद्र बन चुके किसान आंदोलन को धार देने अपने तीन दिवसीय दौरे पर योगेंद्र यादव समेत संयुक्त किसान मोर्चा के नेता 7 दिसंबर को जौनपुर पहुंच रहे हैं। रणनीतिकारों के मुताबिक किसान आंदोलन के चलते पश्चिमी उतर प्रदेश में सरकार की बढ़ी धड़कनों के बाद अब पूर्वांचल के वाराणसी व आजमगढ़ मंडल क्षेत्र में किसान महापंचायत के बहाने भाजपा को घेरने की यह कोशिश है।
तीन दिवसीय दौरे के अंतिम दिन बलिया में होगी किसान पंचायत
संयुक्त किसान संघर्ष समिति बलिया के बलवंत यादव ने बताया कि पहली किसान महापंचायत 7 दिसंबर को जौनपुर मंे हो रही है। इसकी जिम्मेदारी जय किसान आंदोलन जौनपुर के जिलाध्यक्ष अश्वनी कुमार यादव को दी गई हैं। जय किसान महापंचायत सिद्धिकपुर गुलावी देवी महाविद्यालय परिसर में हो रही हैं। इसके बाद 8 दिसंबर को आजमगढ़ तथा अंतिम किसान महापंचायत 9 दिसंबर को बलिया में निपनिया स्थित गंगा राम बाबा मैदान में आयोजित होगी। जिसमें योगेन्द्र यादव के अलावा अविक साहा,पुष्पेन्द्र कुमार,दीपक लांबा,अर्चना श्रीवास्तव प्रमुख रूप से हिस्सा लेंगे।
142 संगठनों के समन्वय से हुई थी किसान आंदोलन की शुरूआत
दिल्ली के बार्डर पर पिछले एक वर्ष से किसानों के जमावड़े की रणनीति बनाने वाले प्रमुख चेहरों में योगेन्द्र यादव रहे हैं। देश में चल रहे किसान आंदोलनों को दिशा देने के लिए 16 जून 2017 को अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति का गठन किया गया था। 142 किसान संगठनों के समन्वय से पिछले कई दशकों में देश भर के किसान संगठनों का सबसे बड़ा गठबंधन बन गया। इसमें स्वराज इंडिया के योगेन्द्र यादव की प्रमुख भूमिका रही। अन्य संगठनों के साथ ही गुरनाम सिंह, हरपाल सिंह और कक्का जी के नेतृत्व में चल रहा 'राष्ट्रीय किसान संघ' भी इसी पहल से जुड़ गया। इसके बाद अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति द्वारा मंदसौर पुलिस गोली चालन में शहीद हुए किसानों की स्मृति में 6 जुलाई 2017 को पिपल्यामंडी (मंदसौर) से किसान मुक्ति यात्रा निकाली गई। यात्रा का उद्देश्य किसानों की कर्ज मुक्ति और किसानी की लागत से डेढ़ गुने समर्थन मूल्य पर सभी कृषि उत्पादों की खरीद जैसे महत्वपूर्ण मुददो पर किसानों को एकजूट करना रहा। यह यात्रा मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और हरियाणा से होते हुए 18 जुलाई को दिल्ली पंहुची। यह यात्रा बारदोली और खेड़ा जैसे किसान आंदोलन के ऐतिहासिक स्थलों से होकर भी गुजरी। दिल्ली पंहुचकर यह मार्च जंतर मंतर पर एक मोर्चे का स्वरुप ले ली। इस समिति के संयोजक वी एम सिंह के अलावा कार्यकारिणी सदस्य और पूर्व सांसद हन्नान मौला (ऑल इंडिया किसान सभा), लोक सभा सदस्य राजू शेट्टी (स्वाभिमानी शेतकरी संगठन), पूर्व विधायक डा. सुनीलम (जनांदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय) उपस्थित थे।
अन्न दाता के खुशहाली के सवाल पर सरकार का दावा रहा है कि वर्ष 2022 तक किसानों की आमदनी दुगनी होगी लेकिन कोई भी दिन ऐसा नहीं गुजरता जब देश के किसी न किसी इलाके से किसानों के आत्महत्या की खबरें न आती हो। सरकार के इस खोखले दावों को लेकर मध्यप्रदेश से शुरू हुआ किसान आंदोलन देश के अलग अलग भागों में फैला। लगभग एक माह से अलग अलग राजनीतिक दलों और किसान संगठनों ने अपनेकृअपने स्तर मंदसौर और महाराष्ट्र के किसानों के साथ,उनकी मांगों के साथ एकजुटता प्रदर्शित किया। यही कारण है कि सौ से ज्यादा किसान संगठन एक मंच पर एकत्रित होकर अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति बनाकर 6 जुलाई को मंदसौर से 18 जुलाई को दिल्ली तक किसान मुक्ति यात्रा का सफलता पूर्वक आयोजन किए। किसान नेताओं का मानना है कि कर्ज-मुक्ति और ड्योढ़े दाम की मांग पर देश के सभी किसान संगठन एकजुट हुए हैं। किसानों की शहादत ने किसान संगठनों में एक नयी राष्ट्रव्यापी एकता पैदा कर दी है।
किसान मुक्ति यात्रा के तीसरे चरण की शुरुआत इस 2 अक्टूबर 2017 को चम्पारण के गांधी आश्रम से हुई। उसके 100 साल पहले महात्मा गांधी ने सत्याग्रह का पहला प्रयोग यहीं से किया था। इस सत्याग्रह ने चम्पारण के किसानों को अंग्रेजो द्वारा बलपूर्वक नील की खेती कराने से मुक्ति दिलाई थी। इसका असर भारतीय राजनीति में गांधी युग की शुरुआत के रूप में हुआ। इस घटना से आजादी के आंदोलन को नई ऊर्जा और दिशा मिली। इसी सत्य के प्रयोग से प्रेरणा लेते हुए स्वराज इंडिया जय किसान आंदोलन, अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति की अगुआई में किसान मुक्ति यात्रा के तीसरे चरण की शुरूआत हुई थी। योगेंद्र यादव संयुक्त किसान मोर्चा के प्रमुख सूत्रधारों में से एक रहे हैं। 26 नवंबर 2020 से शुरू हुए इस आंदोलन की एक-एक रणनीति पर मंथन करने और उसे अंतिम रूप देने में उनकी बड़ी भूमिका रही है।
आंदोलन की शुरूआत में ये रहे सवाल
योगेंद्र यादव ने शुरूआत में कहा था कि हम दो प्रमुख मुद्दों पर एकजुट हो गए हैं,जिसमें किसानों को सभी फसलों का पूरा दाम और सभी किसानो की पूर्ण कर्जा-मुक्तिब का सवाल शामिल है। किसान को उसकी फसल की लागत से 50 फीसदी अधिक दाम दिलवाया जाय। यह दाम देश के हर किसान को, हर फसल में और हर हालत में मिले। अगर किसान उस दाम से कम में फसल बेचने पर मजबूर होता है तो सरकार उस कमी की भरपाई करे।लाभकारी दाम के साथ किसान नए सिरे से शुरुआत कर सकें इसलिए एक अंतरिम उपाय के तौर पर एक बार किसान द्वारा किसी भी राष्ट्रीयकृत बैंक या फिर राज्य की सहकारी समिति या वित्तीय संस्थानों से लिया गया ऋण पूरी तरह से माफ किया जाना चाहिए। साहूकार के ऋण से भी मुक्ति की व्यवस्था हो।