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NCRB के आंकड़ों का दावा : भारत में सबसे ज्यादा लड़कों के साथ व्याभिचार और यौन अत्याचार यूपी में
जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट
जनज्वार। उत्तर प्रदेश में रामराज्य स्थापित करने की बात करनेवाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ के राज्य में हमारे नौनिहाल सर्वाधिक असुरक्षित हैं। देशभर में बाल दुराचार की यूपी में सर्वाधिक घटनाएं हो रही है। इसमें भी बालकों के शिकार होने की संख्या अन्य राज्यों से सर्वाधिक है। ऐसे वारदातों के बारे में कहा जा सकता है कि यह हमारे सभ्य समाज के माथे पर एक बड़ा बदनुमा दाग है।जिसे मिटाए बिना योगी सरकार का कानून का राज स्थापित करने के दावे झूठे हैं।
उधर यूपी के अखबारों में बुधवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह बयान सुखियों में रहा कि भाजपा गुडों-माफिया से निपटना जानती है। योगी अपने इन्हीं कड़क बोल के लिए जाने जाते हैं। सीएम के इस बोलवचन के संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति से अमर्यादित बोल की उम्मीद करनेवाले भले ही इससे निराश होते हैं,पर ऐसी भी बड़ी संख्या है जो उनके इसी सख्त जुबान की कायल है। उनके इस बोल के विपरित एक केंद्रीय एजेंसी की रिपोर्ट का आकलन करें तो यूपी में अपराधी बेलगाम है। एनसीआरबी की हाल ही में 2020 के जारी आंकड़ों की बात करें तो भारत में प्रतिदिन औसतन 80 हत्याएं हुईं और कुल 29,193 लोगों का कत्ल किया गया। इसमें राज्यों की सूची में उत्तर प्रदेश अव्वल स्थान पर रहा।
इस पर चर्चा करने के पहले बात करते हैं बाल दुराचार के मामलों की। देशभर में नाबालिग से दुराचार के मामले में पाक्सो एक्ट के तहत कार्रवाई के आंकड़ों पर गौर करें तो यूपी में यह संख्या सबसे अधिक है। 6 से 12 वर्ष के शिकार हुए 493 बच्चों में 67 लड़के अप्राकृतिक दुष्कर्म के शिकार हुए। ऐसे में यह संख्या 7.35 है। जबकि इस औसत उम्र के बाल दुराचार के शिकार की संख्या में महाराष्ट्र में 254 व मध्य प्रदेश के 203 की संख्या में एक भी बालक नहीं शामिल हैं। हालांकि तमिलनाडु में बालदुराचार की 189 की कुल संख्या में से शिकार हुए बालकों की संख्या 10 है। इसके अलावा छह वर्ष तक के उम्र के बच्चों के साथ हुई पाक्सो एक्ट में कार्रवार्रवाई की संख्या पर गौर करें तो यूपी में सर्वाधिक हुए 77 मामलों में से बालकों की संख्या तीन रही।जबकि मध्य प्रदेश में 55,महाराष्ट्र में हुए 82 घटनाओं में बच्चों की संख्या शून्य है।हालांकि तमिलनाडु में हुई कुल 63 घटनाओं में दो बालकों की संख्या है। इसी तरह पाक्सो एक्ट में की गई कार्रवाई पर गौर करें तो 12 से 16 के उम्र के शिकार हुए किशोरों में यूपी में सर्वाधिक 11 28 की संख्या में 20 बालक शामिल हैं।हालांकि इस औसत उम्र के शिकार होनेवालों में मध्य प्रदेश के 1394 किशोर शामिल रहे। हालांकि इसमें लड़कों की संख्या शून्य रही।इसी तरह महाराष्ट्र में भी कुल 1066 संख्या के सापेक्ष बालकों की संख्या एक भी नहीं है। इसी क्रम में तमिलनाडु में 725 वारदातों में से सात बालक शिकार हुए।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने 2020 में हुए अपराधों के आंकड़ें हाल ही में जारी कर किए हैं। जिसके अनुसार, भारत में 2020 में प्रतिदिन औसतन 80 हत्याएं हुईं और कुल 29,193 लोगों का कत्ल किया गया। इस मामले में राज्यों की सूची में उत्तर प्रदेश प्रथम स्थान पर रहा है। वहीं, पूरे देश में 2020 में बलात्कार के प्रतिदिन औसतन करीब 77 मामले दर्ज किए गए। पिछले साल दुष्कर्म के कुल 28,046 मामले दर्ज किए गए। देश में ऐसे सबसे अधिक मामले राजस्थान में और दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए। वर्ष 2019 की तुलना में हत्या के मामलों में एक प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। 2019 में प्रतिदिन औसतन 79 हत्याएं हुई थी और कुल 28,915 कत्ल हुए थे, वहीं अपहरण के मामलों में 2019 की तुलना में 2020 में 19 प्रतिशत की कमी आई है।केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत आने वाले एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि 2020 में अपहरण के 84,805 मामले दर्ज किए गए जबकि 2019 में 1,05,036 मामले दर्ज किए गए थे। उत्तर प्रदेश में हत्या के 3779 मामले दर्ज किए गए। इसके बाद बिहार दूसरे, महाराष्ट्र तीसरे, मध्य प्रदेश चैथे व पश्चिम बंगाल पांचवे स्थान पर रहा। दिल्ली में 2020 में हत्या के 472 मामले दर्ज किए गए। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, पिछले साल जिन लोगों की हत्या की गई थी उनमें से 38.5 प्रतिशत 30-45 वर्ष आयु समूह के थे जबकि 35.9 प्रतिशत 18-30 वर्ष आयु के समूह के थे। आंकड़े बताते हैं कि कत्ल किए गए लोगों में 16.4 फीसदी 45-60 वर्ष की आयु वर्ग के थे तथा चार प्रतिशत 60 वर्ष से अधिक उम्र के थे जबकि शेष नाबालिग थे।
वर्ष 2020 में अपहरण के सबसे ज्यादा 12,913 मामले उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए। इसके बाद पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, बिहार, मध्य प्रदेश का अपहरण के मामले में क्रमश स्थान रहा। आंकडों के अनुसार, राष्ट्रीय राजधानी में अपहरण के 4,062 मामले दर्ज किए गए हैं। एनसीआरबी ने कहा कि देश में अपहरण के 84,805 मामलों में 88,590 पीड़ित थे। केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत संचालित होने वाली संस्था एनसीआरबी ने कहा कि पिछले साल पूरे देश में महिलाओं के विरूद्ध अपराध के कुल 3,71,503 मामले दर्ज किए गए जो 2019 में 4,05,326 थे और 2018 में 3,78,236 थे। 2020 में महिलाओं के विरूद्ध अपराध के मामलों में से 28,046 बलात्कार की घटनाएं थी जिनमें 28,153 पीड़िताएं हैं। उसने बताया कि कुल पीड़िताओं में से 25,498 वयस्क और 2,655 नाबालिग हैं। गत वर्षों के आंकड़ों के मुताबिक, 2019 में बलात्कार के 32,033, 2018 में 33,356, 2017 में 32,559 और 2016 में 38,947 मामले थे। पिछले साल बलात्कार के सबसे ज्यादा 5,310 मामले राजस्थान में दर्ज किए गए। इसके बाद 2,769 मामले उत्तर प्रदेश में, 2,339 मामले मध्य प्रदेश में, 2,061 मामले महाराष्ट्र में और 1,657 मामले असम में दर्ज किए गए।
उत्तर प्रदेश में जब विधान सभा चुनाव करीब है ,ऐसे वक्त में विपक्ष इन आंकड़ों को लेकर स्वाभाविक तौर पर आक्रामक दिखेगा। खास बात यह है कि केंद्र व राज्य दोनों जगह भाजपा की सरकार है। योगी सरकार भले ही अपराधियों पर लगाम की बात कर रही है।लेकिन भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा नियंत्रित होनेवाली संस्था एनसीआरबी ही उसके इन दावों को झुठला रही है। ऐसे में जुबानी जंग में अपने प्रचारतंत्र के माध्यम से भले ही इन सवालों को लेकर योगी सरकार साफदाफ दिखे,पर केंद्रीय आंकड़े तो इन्हें अवश्य परेशान करती रहेगी।