Begin typing your search above and press return to search.
उत्तर प्रदेश

Nizamabad Vidhan Sabha: विधायक की ख़ामोशी बनाम राजीव यादव की बेबाकी

Janjwar Desk
27 Feb 2022 7:38 AM GMT
Nizamabad Vidhan Sabha: विधायक की ख़ामोशी बनाम राजीव यादव की बेबाकी
x

Nizamabad Vidhan Sabha: विधायक की ख़ामोशी बनाम राजीव यादव की बेबाकी

Nizamabad Vidhan Sabha: आलम बदी 85 साल के हैं। निज़ामाबाद, आज़मगढ़ से चार बार समाजवादी पार्टी के विधायक रह चुके हैं। और अब, विधानसभा चुनाव 2022 में पांचवीं बार अपनी क़िस्मत आज़मा रहे हैं।बेशक़, उनकी ईमानदार नेता की छवि है।

सृजनयोगी आदियोग की टिपण्णी

Nizamabad Vidhan Sabha: आलम बदी 85 साल के हैं। निज़ामाबाद, आज़मगढ़ से चार बार समाजवादी पार्टी के विधायक रह चुके हैं। और अब, विधानसभा चुनाव 2022 में पांचवीं बार अपनी क़िस्मत आज़मा रहे हैं।बेशक़, उनकी ईमानदार नेता की छवि है। लेकिन क्षेत्र के लोग उनकी ईमानदारी को अब तौलने लगे हैं। ईमानदारी के किस्सों से छक गए हैं, उकता गए हैं। कहते हैं कि विधायक जी के बीस साल लंबे कार्यकाल में क्षेत्र की सूरत तो बदली नहीं। विकास तो कुछ हुआ ही नहीं। निज़ामाबाद में गांव को जोड़ती अधिकतर सड़कें ख़स्ताहाल हैं। बिजली का कोई ठिकाना नहीं रहता। तमाम गांव आर्सेनिक मिला पानी पीने को मजबूर हैं जिसके चलते कैंसर और दूसरे तरह की बीमारियां अपने पांव तेजी से पसार रही हैं। उस पर तुर्रा यह कि सरकारी अस्पतालों की सेहत ना जाने कब से ख़राब है।

यह आम शिकायत है कि समय पर बीज और खाद से लेकर सिंचाई तक की व्यवस्था में किसानों के पसीने छूट जाते हैं। योगी सरकार की मेहरबानी से छुट्टा पशु जीने का संकट अलग से गहरा कर रहे हैं जो फसलों को चट कर जाते हैं, रौंद डालते हैं। इस ख़तरे से निपटने को रात भर खेतों की रखवाली करनी होती है। छुट्टा पशुओं को भगाने के लिए हांका लगाना होता है, टार्च की रोशनी फेंकनी होती है और इस काम में कइयों को लगना होता है। थोड़ी चूक हुई कि गए काम से।

मनरेगा इसलिए लाया गया कि गांव में खाली हाथों को कानूनन थोड़ी राहत मिले। लेकिन भाजपा शासित राज्यों में और ज़ाहिर है कि आज़मगढ़ में भी यही सीन है कि इसमें भी घोटाला है, क़ायदे-कानून की धज्जियां हैं। इस कारण भी भारी संख्या में घर-दुआर छोड़ कर काम की तलाश में बाहर निकलने की मजबूरी है। आसमान छूती मंहगाई और बेरोजगारी आम लोगों की कमर तोड़ रही है, उनमें भयानक निराशा भर रही है।

इन तमाम जलते सवालों पर विधायक जी कुछ बोलते ही नहीं। न बोलना उनकी फ़ितरत का हिस्सा हो गया है। बाटला हाउस इनकाउंटर में संजरपुर के दो लड़के मारे गए। इसके ख़िलाफ़ पूरे देश से आवाज़ उठी लेकिन उसमें विधायक जी की आवाज़ शामिल नहीं थी। मोदी ने आज़मगढ़ की पहचान पर कीचड़ उहाला, उसे आतंक का गढ़ कहा और योगी ने संजरपुर को आतंक की नर्सरी लेकिन विधायक जी चुप रहे। योगी की 'ठोंक दो' की बर्बर और असंवैधानिक नीति के तहत दलितों, पिछड़ों और मुसलमानों को फ़र्ज़ी मुठभेड़ का निशाना बनाया गया लेकिन विधायक जी के होंठ बंद के बंद रहे। नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ कई जगहों पर विरोध उभरा। आज़मगढ़ में भी लोग सड़कों पर उतरे और उनका दमन हुआ। लेकिन विधायक जी चिकना घड़ा ही बने रहे।

अभी चुनावी गहमागहमी के बीच अहमदाबाद बम धमाकों के मामले में आये निचली अदालत के फैसले के बाद आज़मगढ़ एक बार फिर चर्चा में आया जिसमें ज़िले के पांच लोगों को मृत्युदंड और एक को उम्रक़ैद की सजा सुनायी गयी। अदालत ने अपना फ़ैसला 3 सितंबर 2021 को सुरक्षित किया और कोई पांच महीने बाद ठीक चुनाव के बीच 18 फरवरी को सज़ा का ऐलान किया। कहें कि अदालत ने भी भाजपा के ध्रुवीकरण अभियान में हाथ बंटाया। लेकिन विधायक जी की ज़ुबान से इस पर उफ़-आह तक नहीं निकली। हमेशा की तरह वह मौनी बाबा ही बने रहे। गोया कुछ हुआ ही नहीं। उनकी चुप्पी दरअसल यह बेहूदा बयान थी कि इस फ़ैसले से आख़िर उनका क्या लेनादेना?

विपक्ष का पहला काम है- जनता की दुख-परेशानियों को सतह पर लाना, उसके साथ किये जा रहे अन्याय और अत्याचार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना। लेकिन विधायक जी इस धर्म का पालन नहीं करते। अब उन्हें कौन समझाए कि जनता के नुमाइंदे के तौर पर यह जनता के साथ सरासर बेईमानी है। सियासत में केवल निजी तौर पर ईमानदार होना ही ईमानदारी की निशानी नहीं हुआ करती। जनता के सच्चे नुमाइंदे की पहली शर्त है- गलत को गलत कहने की हिम्मत रखना और सच की ख़ातिर किसी भी क़ुर्बानी के लिए तैयार रहना।

इस पैमाने पर देखें तो निज़ामाबाद के तमाम उम्मीदवार बौने और चुनावी मौसम के मेंढक नज़र आयेंगे। ऐसा नहीं कि निज़ामाबाद के मतदाताओं के सामने कोई मज़बूत विकल्प नहीं। एक ऐसा नौजवान भी चुनावी मैदान में है जो हमेशा दुखियारों के साथ खड़ा हुआ। उसने ज़ुल्म के मारों के आंसू पोछे, उनके हक़ और इंसाफ़ की लड़ाई लड़ी।

कहीं भी कोई अत्याचार हुआ, वह चुप नहीं बैठा। दहशतगर्दी के झूठे मामलों में फंसाये गये बेगुनाह मुसलमानों की रिहाई के लिए उसने रात-दिन एक कर दिया। अपराधियों के सफ़ाये के नाम पर मुसलमानों, दलितों और पिछड़ों को निशाना बनायी गयीं फ़र्ज़ी मुठभेड़ों को सवालों के कटघरे में खड़ा किया। उसने उन्नाव और हाथरस में हुए बलात्कार कांड के सियासी रसूखदारों को जेल पहुंचा कर ही दम लिया। आरक्षण में सरकारी सेंधमारी का मुखर विरोध किया। लखनऊ, दिल्ली, अलीगढ़ और आज़मगढ़ में भी उठे नागरिकता विरोधी आंदोलन का चर्चित चेहरा बन गया। ख़ास कर पूर्वांचल में किसान आंदोलन को संगठित करनेवाला हो गया।

उसने मोदी को ललकारने और योगी को सुप्रीम कोर्ट में घसीटने तक का जोख़िम उठाया। बदले में पुलिस की लाठियां झेलीं और उसे फ़र्ज़ी मुठभेड़ में मार गिरा देने की धमकियां भी मिलीं। लेकिन वह डरा नहीं, पीछे हटा नहीं। बहादुरी के साथ मोर्चे पर डटा रहा। इस तरह उसने ख़ुद को सच और इंसाफ़ का राही साबित किया। इन्हीं जुझारू तेवरों के चलते वह देश-दुनिया के मीडिया में छा गया। उसका नाम है राजीव यादव। वह रिहाई मंच का महासचिव है और अब 348, निज़ामाबाद, आज़मगढ़ से निर्दलीय उम्मीदवार है। उसका चुनाव निशान है- हेलीकाप्टर। चुनाव निशान आख़िरकर केवल उम्मीदवार की पहचान के लिए होता है। वरना तो राजीव यादव ज़मीन से जुड़ा आदमी है, हवा में नहीं उड़ता। उसका चुनाव निशान गोया मुनादी है-

चाहत के पंख लगा कर

नयी दिशाएं अपना कर

इक ऊंची उड़ान भरेगा

इनके, उनके, सबके ख़ातिर

मिलजुल कर इक संग......

सोच-समझ के इंजन से

संघर्षों के ईंधन से

हर मुश्किल दूर करेगा

इनके, उनके, सबके ख़ातिर

मिलजुल कर इक संग......

Janjwar Desk

Janjwar Desk

    Next Story

    विविध