Pilibhit Fake Encounter Case : हाईकोर्ट का छह साल से जेल में बंद 34 पुलिस कर्मियों को जमानत देने से इनकार, जानिए कोर्ट ने क्या कहा...
Pilibhit Fake Encounter : 10 सिखों की हत्या के आरोपित पुलिसकर्मी और इनसेट में मृतकों की फाइल फोटो।
पीलीभीत से निर्मल कांत शुक्ल की रिपोर्ट
Pilibhit News: इलाहाबाद हाईकोर्ट (High Court) की लखनऊ खंडपीठ (Lucknow Bench) ने वर्ष 1991 के बहुचर्चित पीलीभीत मुठभेड़ कांड (Famous Pilibhit Encounter Case) में 10 सिखों को 'आतंकवादी' (Terrorist) मानकर उनकी हत्या (Murder) करने के आरोपी सीबीआई की विशेष अदालत से दोष सिद्ध जेल में उम्र कैद (Life Imprisonment) की सजा काट रहे 34 पुलिसकर्मियों को जमानत देने से इनकार (Denial of Bail) कर दिया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट (लखनऊ पीठ) ने उन 34 पुलिसकर्मियों को जमानत देने से इनकार कर दिया, जिन पर वर्ष 1991 में एक कथित फर्जी मुठभेड़ में आतंकवादी मानकर 10 सिखों की हत्या करने का आरोप सीबीआई की विशेष अदालत से दोष सिद्ध है और आजीवन कारावास की सजा में इस समय जेल में हैं। जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बृज राज सिंह की खंडपीठ ने कहा कि आरोपी पुलिसकर्मी निर्दोष व्यक्तियों को आतंकवादी कहकर उनकी बर्बर और अमानवीय हत्या में शामिल रहे। अदालत ने अंतिम सुनवाई के लिए पुलिसकर्मियों की दोषसिद्धि को चुनौती देने वाले अभियुक्तों की आपराधिक अपील को 25 जुलाई, 2022 को सूचीबद्ध करते हुए कहा कि यदि कुछ मृतक असामाजिक गतिविधियों में शामिल थे और उनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज थे, तो कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का भी पालन किया जाना चाहिए था। उन्हें अपना काम करना चाहिए था और आतंकवादियों के नाम पर निर्दोष व्यक्तियों की इस तरह बर्बर और अमानवीय हत्या में लिप्त नहीं होना था।
हाईकोर्ट ने कहा कि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए और अपराध की गंभीरता को देखते हुए अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान, दो चश्मदीद श्रीमती स्वर्ण जीत कौर और श्रीमती बलविंदर जीत कौर ने अभियोजन मामले का समर्थन किया। चिकित्सा साक्ष्य अभियोजन मामले की पुष्टि करते हैं। मृत व्यक्तियों के शवों पर पाए गए रगड़ और कटे हुए घावों के निशान की व्याख्या, नीले रंग की बस पर गोली के निशान का स्पष्टीकरण नहीं। पुलिस कर्मियों/अपीलकर्ताओं द्वारा घटना की तारीख को तीर्थयात्रियों की बस से आतंकवादियों की यात्रा के संबंध में एकत्रित इनपुट के स्रोत की व्याख्या नहीं की जा सकी। यह सब देखते हुए यह न्यायालय अपीलकर्ताओं को जमानत देने के लिए उपयुक्त मामला नहीं पाता है।" उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने जेल में उम्र कैद की सजा काट रहे 34 पुलिस वालों को जमानत देने से इनकार कर दिया।
बस से 11 को उतारा था, दस की मिली थी लाश
12 जुलाई 1991 को नानकमत्ता, पटना साहिब, हुजूर साहिब व अन्य तीर्थ स्थलों की यात्रा करते हुए 25 सिख यात्रियों का जत्था बस से वापस लौट रहा था, तभी बदायूं जनपद के कछला घाट के पास पुलिसवालों ने बस को रोका और 11 युवकों को उतार अपनी नीली बस में बैठा लिया था और दिन भर इधर-उधर घुमाने के बाद रात में युवकों को तीन गुटों में बांट लिया। एक दल ने 4, दूसरे दल ने 4 और तीसरे दल ने दो युवकों को कब्जे में लेकर अलग-अलग थाना क्षेत्रों के जंगलों में ले जाकर मार डाला। थाना बिलसंडा के फगुनईघाट में चार सिखों की हत्या और पोस्टमार्टम के बाद आननफानन में अंत्येष्टि कर दी गई। वहीं थाना न्यूरिया के धमेला कुआं व थाना पूररनपुर के पत्ताबोझी जंगल में भी सिखों की हत्या की गई। सिर्फ दस की लाश मिली थी। पुलिस ने इन मामलों में फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी। वकील आरएस सोढी ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की थी, जिस पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 15 मई 1992 को मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी थी। सीबीआई ने मामले की विवेचना के बाद 57 पुलिस कर्मियों के खिलाफ सुबूतों के आधार पर चार्जशीट दायर की थी। जिन पर 20 जनवरी 2003 को आरोप तय हुए थे। पुलिस ने बस से जिन सिखों को उतारा था उनमें ग्यारहवां तीर्थयात्री बच्चा था, जिसका पता नहीं चला और उसके माता-पिता को राज्य सरकार द्वारा मुआवजा दिया गया था। न्यायाधीश, सीबीआई/अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, लखनऊ की अदालत में सुनवाई हुई थी और सीबीआई की विशेष अदालत के विशेष न्यायाधीश लल्लू सिंह ने 4 अप्रैल 2016 को सभी 47 पुलिस वालों को आईपीसी की धारा 120-बी, 302, 364, 365, 218, 117 के तहत दोषी ठहराया था। सजा के बाद इनको जेल भेज दिया गया था। दोषसिद्ध और सजा से व्यथित होकर सभी 47 दोषियों/अपीलकर्ताओं ने हाईकोर्ट का रुख किया। इन 47 दोषियों में से 12 दोषियों/अपीलकर्ताओं को या तो उम्र या गंभीर बीमारी के आधार पर हाईकोर्ट की को-ऑर्डिनेट बेंच ने जमानत दे दी थी।
फर्जी मुठभेड़ में मारे गए थे यह लोग
- 1- नरिंदर सिंह उर्फ निंदर पुत्र दर्शन सिंह निवासी पीलीभीत।
- 2 - लखविंदर सिंह उर्फ लाखा पुत्र गुरमेज सिंह निवासी पीलीभीत।
- 3 - बलजीत सिंह उर्फ पप्पू पुत्र बसंत सिंह निवासी गुरदासपुर, पंजाब।
- 4 - जसवंत सिंह और जस्सा पुत्र बसंत सिंह निवासी गुरदासपुर, पंजाब।
- 5 - जसवंत सिंह उर्फ फौजी पुत्र अजायब सिंह निवासी गुरदासपुर,पंजाब।
- 6 - करतार सिंह पुत्र अजायब सिंह निवासी गुरदासपुर,पंजाब।
- 7 - मुखविंदर सिंह उर्फ मुखा पुत्र संतोख सिंह निवासी गुरदासपुर, पंजाब।
- 8 - हरमिंदर सिंह उर्फ मिंटा पुत्र अजीत सिंह निवासी गुरदासपुर, पंजाब।
- 9 - सुरजन सिंह उर्फ बिट्टो पुत्र करनैल सिंह निवासी गुरदासपुर, पंजाब।
- 10 - रनधीर सिंह उर्फ धीरा पुत्र सुंदर सिंह निवासी गुरदासपुर, पंजाब।
- 11 - तलविंदर सिंह पुत्र मलकेत सिंह निवासी शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश (लापता)
इन पुलिस वालों को हुई थी सजा
सीबीआई की विशेष अदालत के विशेष न्यायाधीश लल्लू सिंह ने 4 अप्रैल 2016 को जिन 47 पुलिस वालों को उम्र कैद की सजा सुनाई थी, उनमें बिलसंडा के तत्कालीन थानाध्यक्ष मोहम्मद अनीस, एसआई वीर पाल सिंह, दिनेश सिंह, अरविंद सिंह, राम नगीना, पूरनपुर के तत्कालीन थानाध्यक्ष विजेंद्र सिंह, एसआई एमपी विमल, एसआई सुरजीत सिंह, सत्यपाल सिंह, रामचंद्र सिंह व एसआई हरपाल सिंह पुत्र राम चंद्र सिंह, ज्ञान गिरी, कांस्टेबल लाखन सिंह हरपाल सिंह, कृष्ण वीर सिंह, करन सिंह, नेम चंद्र, सतेंद्र सिंह, बदन सिंह, हेड कांस्टेबल नत्थू सिंह, सुभाष चंद्र, नाजिम खां, राजेंद्र सिंह, नरायन दास, राकेश सिंह, शमशेर अहमद, देवेंद्र पांडेय, रमेश चंद्र, धनीराम, सुगम चंद्र, कलेक्टर सिंह, कुंवर पाल, श्याम बाबू, बनवारी लाल, सुनील कुमार दीक्षित, विजय कुमार सिंह, एमसी दुर्गापाल, आरके राघव, उदय पाल, मुन्ना खां, दुर्विजय सिंह, महावीर सिंह, गया राम, राजिंदर सिंह, रासिद हुसैन, दुर्विजय सिंह, सै. अली रजा रिजवी हैं।
सुनवाई के दौरान इनकी हो गई मौत
इस चर्चित मुकदमे में सुनवाई के दौरान न्यूरिया थाने के तत्कालीन थानाध्यक्ष छत्रपाल सिंह, दरोगा ब्रह्मपाल सिंह, सिपाही अशोक पाल सिंह, राम स्वरूप, अशोक कुमार, मुनीस खां, कृष्ण बहादुर, सूरज पाल सिंह, दरोगा राजेश चंद्र शर्मा तथा दरोगा एमपी सिंह की मृत्यु हो गई।
न्याय दिलाने में हरजिंदर सिंह कहलो की अहम भूमिका
बहुचर्चित पीलीभीत मुठभेड़ कांड में पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए समाजसेवी हरजिंदर सिंह कहलो ने लंबी लड़ाई लड़ी। इसके लिए उनको कई बार मुसीबतों का भी सामना करना पड़ा। वसुंधरा कॉलोनी निवासी हरजिंदर सिंह कहलो बताते है कि कई बार उनको धमकियां भी मिली मगर उन्होंने संघर्ष का रास्ता नहीं छोड़ा और पीड़ितों को न्याय दिलाकर ही दम लिया। वह आज भी पीड़ित परिवारों के साथ हर वक्त खड़े हैं और हर स्तर पर पैरवी में जुटे हैं।