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पहली बार मां बनी महिला जाम में फंस गई तो दो भाइयों ने एंबुलेंस में ही कराई डिलीवरी
यूट्रस में इस बीमारी के होने से मां नहीं बन सकती महिला, जानिए इसके लक्षण और इलाज
कानपुर, जनज्वार। जैसे-जैसे समय गुजर रहा था, मैं जोर-जोर से चिल्ला रही थी। मां के अलावा वो दोनों भाई भी मुझे सम्हालने की कोशिश कर रहे थे। आखिर में वो दोनों ही मेरे मसीहा बने। ये शब्द आंखों में आंसू भरकर मसवानपुर की आरती कह रही थी और बार.बार शून्य में खोकर उन दोनों नौजवानों को याद कर रही थी, जिन्होंने उसकी डिलेवरी कराई।
कानपुर के मसवानपुर की रहने वाली आरती अपनी पीड़ा बताते बताते सिहर उठती है। प्रसव पीड़ा से तड़पती आरती शुक्रवार को लगभग दो घण्टों तक अस्पतालों के चक्कर काटती रही। अस्पताल आने-जाने के दौरान वह गीतांगर क्रासिंग के जाम में फंस गई। एम्बुलेंस के मेडिकल टेक्निशियन ने एक दूसरे एमटी की मदद से एम्बुलेंस में ही आरती की डिलिवरी कराई। आरती इस समय अपर इंडिया अस्पताल में नवजात के साथ एडमिट हैं।
आरती कहती हैं कि कल्याणपुर से हैलट तक का सफर मेरे जेहन में ताउम्र कड़वी याद के रूप में याद रहेगा। उस वक्त हर मिनट कीमती था और मेरे मन मे हजारों सवाल कौंध रहे थे। दर्द की कोई सीमा नहीं थी। मेरा पूरा शरीर पसीने से भीग गया था। मैं अपना दर्द भूलकर सिर्फ बच्चे की सलामती की दुआ कर रही थी। अगर कुछ भी गलत हो जाता तो मैं खुद को कभी माफ न कर पाती।
नर्सिंग होम से कल्याणपुर सीएचसी पहुंची आरती को वहां के डॉक्टरों ने हाथ तक नहीं लगाया। उन्हें खून की कमी बताकर हैलट रेफर कर दिया गया। आरती को लगा उसके पास पैसे ना होने के चलते टरका दिया गया, जिसमें एक घण्टे का समय भी बर्बाद हुआ। आरती कहती है जब हैलट की तरफ जाते हुए एम्बुलेंस जाम में फंस गई तो एक समय उनके मां बनने का सपना टूटता-सा नजर आया।
जैसे-जैसे समय गुजर रहा था, आरती चिल्ला रही थी। मां के अलावा दोनों भाई जो एम्बुलेंस के एमटी थे, उनने भी मुझे सम्हालने की कोशिश की। दोनों समझा रहे थे हिम्मत रखो सब ठीक होगा। पहले किसी पुरुष से डिलीवरी कराने की बात सुनकर आरती को झिझक हुई। शर्म भी आ रही थी, लेकिन आरती के पास कोई विकल्प नहीं था। बच्चा सही सलामत है, इन दोनों भाइयों की वजह से ही मेरी और मेरे बच्चे की जान बची। आरती कहते-कहते फफक सी पड़ती हैं।