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उत्तर प्रदेश

बजट सत्र में योगी सरकार ने क्यों किया मीडिया को सदन से दूर, प्रेस गैलरी में पत्रकारों के लिए नो एंट्री

Janjwar Desk
20 Feb 2021 6:26 PM IST
बजट सत्र में योगी सरकार ने क्यों किया मीडिया को सदन से दूर, प्रेस गैलरी में पत्रकारों के लिए नो एंट्री
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विधान परिषद में पत्रकारों की कोरोना जाँच करके प्रेस दीर्घा के प्रवेश पत्र दिए गए हैं, इसलिए विधानसभा में प्रेस गैलरी बंद रखने का मामला और भी जटिल व समझ से परे है। राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार सवाल उठा रहे हैं कि आखिर कौन सी जानकारी सरकार बाहर नहीं जाने देना चाहती....

मनीष दुबे की रिपोर्ट

जनज्वार ब्यूरो/लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा में बजट सत्र के दौरान समाचार संकलन करने के लिए पत्रकारों को प्रेस गैलरी के प्रवेशपत्र ही नहीं दिये गये। संसद और विधानसभाओं में चलने वाली कार्यवाही की सही खबरें मतदाताओं तक पहुँचाने के लिए प्रेस दीर्घा होती है, जहां बैठकर पत्रकार आम जनसानस के लिए समाचार एकत्रित करते हैं, लेकिन इस बार बजट सत्र के दौरान मीडिया की नो एंट्री कर दी गयी है। सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों किया गया।

लखनऊ से वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी इस सवाल को उठाते हुए सोशल मीडिया पर कहते हैं, 'संविधान के अनुसार पत्रकारों की ज़िम्मेदारी है कि वे मतदाताओं यानी करदाताओं को सही जानकारी दें कि उनके निर्वाचित प्रतिनिधि सदन में कैसे अपने कर्तव्य का निर्वाह कर रहे हैं, लेकिन हालिया समय में पत्रकारों में भी बदलाव साफ देखा जा सकता है। मीडिया के मायने उलग हो रहे हैं। गुटबाजी और गोदी मीडिया हावी हो रही है। बावजूद इसके मसला यह नहीं है, मसला यह है कि बजट सत्र के दौरान मीडिया को आखिर रोका क्यों गया?

विधान सभा में विरोधी दल समाजवादी पार्टी के नेता राम गोविंद चौधरी ने बजट सत्र के पहले ही दिन यह मामला सदन में उठाया था कि प्रेस दीर्घा ख़ाली क्यों है, पत्रकार क्यों नहीं बैठे हैं? मगर किसी ने उनकी आवाज की तरफ कान नहीं दिया।

इसी बीच खबर यह भी आयी कि विधान परिषद में पत्रकारों की कोरोना जाँच करके प्रेस दीर्घा के प्रवेश पत्र दिए गए हैं, इसलिए विधानसभा में प्रेस गैलरी बंद रखने का मामला और भी जटिल व समझ से परे है। राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार सवाल उठा रहे हैं कि आखिर कौन सी जानकारी सरकार बाहर नहीं जाने देना चाहती जो, विधानसभा प्रेस गैलरी को बंद किया गया।

गौरतलब है कि साल 1978 में तत्कालीन जनता पार्टी सरकार ने संविधान में संशोधन कर अनुच्छेद 361A जोड़ा था, जिसमें पत्रकारों को यह अधिकार और दायित्व मिला था कि वे संसद और विधानसभाओं की कार्यवाही की सही जानकारी दें और इसके लिए उन पर सिविल या आपराधिक कोई कार्यवाही नहीं हो सकती है। इस समय उत्तर प्रदेश में पत्रकारों को प्रेस दीर्घा के साथ–साथ सेंट्रल हाल तक जाने की भी सुविधा नहीं है। सेंट्रल हाल में सत्ताधारी और विपक्षी दलों के विधायक पत्रकारों के सवालों के जवाब देते हैं।

पत्रकारों की बजट सत्र के दौरान विधानसभा में नो एंट्री पर लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार अनिल सिंह ने जनज्वार से बात करते हुए कहते हैं, 'विधानसभा के अन्दर कुछ नौकरशाह ऐसे हैं जो रिटायरमेंट के बाद भी जमे हुए हैं। यह लोग पत्रकारों को दूर रखना चाहते हैं। कुल मिलाकर मीडिया के अन्दर जाने से तमाम बातें बाहर आ जाएंगी। इसके अलावा जो पत्रकार संगठन हैं, जो इस काम को लिए बने हुए हैं उनमें खुद आपसी लड़ाई है। कोई कहने सुनने वाला नहीं है। संगठनों की कमजोरी का फायदा उठा लिया जाता है। नेता दलाली में डूबे हैं। अनिल सिंह आगे कहते हैं कि इसमें एक बात और है कि जब विधान परिषद में पत्रकारों को अनुमति है तो विधानसभा में क्यों नहीं? और जो रिटायरमेंट के बाद प्रमुख सचिव जमे हुए हैं वह मीडिया को सदन के अन्दर नहीं घुसने देना चाहते हैं।'

वहीं इस मसले पर कम्युनिष्ट नेता चतुरानन ओझा ने जनज्वार को बताया कि 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कभी प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की, शायद उसी से प्रभाव ग्रहण करते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा से प्रेस गैलरी को ही खत्म कर दिया है। सत्तारूढ़ पार्टी में यह आत्मविश्वास नहीं बचा कि वह प्रतिपक्ष अथवा पत्रकारों के प्रश्नों का जवाब दे पाएगी, उससे नजरें मिला पाएगी और उनकी प्रतिक्रियाओं को बर्दाश्त कर पाएगी। यह निहायत ही गंभीर मसला है। यह सिर्फ पत्रकारों का निष्कासन नहीं है बल्कि विधानसभा से लोकतांत्रिक मूल्यों और जिम्मेदारियों का भी निष्कासन है।'

राजनीतिक विश्लेषक आशुतोष कहते हैं, आज हर स्तर पर लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना के लिए संघर्ष प्रमुख कार्यभार बन गया है। दिल्ली की लोकसभा में चल रहे सत्र में पूर्व सांसदों के बैठने की व्यवस्था भी खत्म कर दी गई है। पुरानी व्यवस्था के तहत संसद सत्र में भाग लेने पहुंचे कई सांसदों को संसद भवन पहुंचकर यह जानकारी मिली, जिसके बाद उन्हें बेरंग वापस लौटना पड़ा।'

इस मामले में समाजवादी पार्टी के विधायक अमिताभ बाजपेई ने जनज्वार से बात करते हुए कहा कि 'सदन के अन्दर इस मामले को उसी दिन रामगोविंद चौधरी ने उठाया था। उन्होंने कहा था कि सबको ना आने दिया जाए तो कम से कम आधे लोगों को तो अलाऊ किया जाए। मौजूदा सरकार की लोकतांत्रिक व्यवस्था में कोई आस्था नहीं है।'

वह आगे कहते हैं, 'ये लोग लगातार यही चाहते हैं कि मीडिया वही दिखाए जो सरकार चाहती है। सदन के अन्दर से पक्ष-विपक्ष दोनों की बात जनता के सामने जाती है। इन्होंने कोविड के बहाने से मीडिया को सदन से दूर रखा है, जबकि सदन के अन्दर कोविड नियमावली का कोई पालन नहीं होता। यह सरकार पूरी तरह से लोकतांत्रिक व्यवस्था को नुकसान पहुँचाने की साजिश कर रही है।'

उत्तर प्रदेश विधानमंडल के बजट सत्र में राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के अभिभाषण के बाद विपक्षी दलों ने विधानसभा की पत्रकार दीर्घा में कवरेज के लिए मीडिया को नहीं बैठने देने का मुद्दा उठाया तो उसके जवाब में विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि कोरोना काल के कारण पत्रकारों के लिए अलग व्यवस्था की गई थी और इस बारे में जल्द ही कोई फैसला लिया जाएगा।

हालांकि नेता प्रतिपक्ष राम गोविंद चौधरी ने राज्यपाल के अभिभाषण के बाद पूछा भी कि विधानसभा में पत्रकार दीर्घा से पत्रकारों को क्यों दूर रखा गया है और क्या कोविड-19 केवल पत्रकारों को ही प्रभावित करता है, विधायकों, विधान परिषद सदस्यों, मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष और नेता विपक्ष को नहीं? चौधरी की इस बात का समर्थन बहुजन समाज पार्टी के विधानमंडल दल के नेता लालजी वर्मा और कांग्रेस विधानमंडल दल की नेता अराधना मिश्रा ने भी किया।

मगर बावजूद इस बात का सही सही जवाब देने के विधान सभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि कोरोना काल में पत्रकारों की सहमति से यह निर्णय लिया गया था कि मीडिया के लिए बैठने की अलग व्यवस्था कर दी जाए और उसी हिसाब से अलग व्यवस्था की गई थी। पत्रकारों ने कोई आपत्ति नहीं जताई है। वर्मा और मिश्रा ने जब इस पर कहा कि कुछ पत्रकारों को अनुमति दी जानी जाए, जिससे कि वे सदन की कार्यवाही सही ढंग से देखें और उसकी रिपोर्टिंग करें। विधानसभा अध्यक्ष ने इसके जवाब में कहा कि इसपर कार्यमंत्रणा समिति की बैठक में विचार कर लिया जाएगा।

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