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योगी सरकार की भर्तियों का आंकड़ा है सिर्फ नंबर गेम, साढे तीन साल में वास्तविक संख्या में कोई इजाफा नहीं
राजेश सचान की टिप्पणी
उत्तर प्रदेश में रोजगार संकट की भयावह स्थिति अखबारों में सरकारी धन का अपव्यय कर दिये जा रहे विज्ञापनों से छिपाई नहीं जा सकती है। फिल भी प्रोपेगैंडा में यह लोग माहिर हैं और आम जनता में भ्रम की स्थिति पैदा करने की कोशिश में हैं, इसलिए रोजगार के मुद्दे पर योगी सरकार का भंडाफोड़ करना बेहद जरूरी है।
इनके द्वारा जारी विज्ञापनों व आंकड़ों पर गौर करें। एक लाख सैंतीस हजार शिक्षा मित्र इनके कार्यकाल में बर्खास्त हुए और सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर भर्ती हो रहे हैं। इनके आंकड़े में इन एक लाख सैंतीस हजार पदों को डिलीट किया जान चाहिए, यह कोई नई भर्ती नहीं है। इसके अलावा ज्यादातर पिछली सरकार द्वारा जनदबाव के बाद शुरू की गई भर्तियां हैं जिसमें भी अभी तक कुछ लंबित हैं। इनकी गणना में स्वास्थ्य विभाग की करीब 30 हजार संविदा की भर्तियों को भी जोड़ लिया गया है। वास्तव में पुलिस के अलावा आम तौर पर कोई न कोई भर्ती के लिए विज्ञापन तक जारी नहीं किया गया है, अब साढे तीन साल बाद रिक्त पदों का ब्योरा तलब किया जा रहा है। इसमें भी अभी तक खाली पदों के सापेक्ष बेहद कम पदों का ही ब्योरा उपलब्ध हुआ है। खासकर तकनीकी व शिक्षक पदों को छोड़ ही दिया गया है। जबकि प्रदेश में शिक्षा विभाग व तकनीकी संवर्ग में सबसे ज्यादा खाली पद हैं लेकिन इक्का-दुक्का छोड़कर कोई नया विज्ञापन नहीं आया।
वास्तव में प्रदेश में कर्मचारियों की संख्या में शायद ही कोई इजाफा इन साढे तीन साल में हुआ हो। योगी सरकार के कार्यकाल में इन वर्षों में लाखों सृजित पदों को ही खत्म किया गया। प्राइमरी स्कूलों में करीब सवा लाख प्रधानाचार्य के पदों को खत्म कर दिया गया, चतुर्थ श्रेणी के लाखों सृजित पदों को खत्म किया गया। राजकीय आईटीआई व पालीटेक्निक के निजीकरण से भी सरकारी कर्मचारियों की संख्या घटेगी। बिजली विभाग के प्रस्तावित निजीकरण से भी कर्मचारियों की संख्या कम ही होगी। कस्तूरबा गांधी स्कूलों से लेकर संस्कृत शिक्षण संस्थान बंदी के कगार पर हैं, माध्यमिक विद्यालयों में कंप्यूटर के शिक्षक नाममात्र हैं। महिला सामाख्या, 181 महिला हेल्प लाइन जैसी सेवाओं को बंद कर रोजगार छीनने का काम योगी सरकार ने किया है। इसी तरह कोरोना काल में सवा करोड़ असंगठित मजदूरों के लिए रोजगार का प्रोपेगैंडा किया गया, इसकी असलियत लोग जानते ही हैं कि इसमें औसतन एक परिवार को महीने में 5 दिन का भी काम नहीं मिला है जबकि इसमें मनरेगा भी शामिल है।
सबसे ज्यादा मजाक तो चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता के दावा कर किया जा रहा है। कौन नहीं जानता कि चयन प्रक्रिया में भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद तो चरम पर है ही, नियम कानूनों को ताक पर रख कर भर्तियां भी की जा रही हैं और इससे ही भर्तियां न्यायिक प्रक्रिया के पचड़े में वर्षों तक उलझी रहती हैं। लोक सेवा आयोग की पीसीएस जैसी परीक्षा में स्केलिंग लागू करने में नियमों को ताक पर रख कर भ्रष्टाचार किया गया, जोकि पीसीएस-2018 के परिणाम से स्वतः स्पष्ट है।
फिलहाल अभी तक जो भर्तियां संपन्न हुई हैं उनकी सच्चाई से तो वाकिफ ही हैं। इनके अलावा सरकार दावा कर रही है कि 6 महीने के अंदर 3 लाख पदों पर नियुक्ति देंगे। इसके बारे में युवा मंच की मांग है कि सरकार इसके लिए बयानबाजी व अखबारों में विज्ञापनों के बजाय ठोस कार्ययोजना प्रस्तुत करे और ठोस कदम उठाए। आखिर चयन बोर्ड में साल भर पहले प्राप्त 40 हजार पदों के अधियाचन पर विज्ञापन जारी करने में क्या अड़चन है? चयन बोर्ड व उच्चतर शिक्षा आयोग की बातों को मानें तो मुख्यमंत्री ही विज्ञापन जारी करने की इजाजत नहीं दे रहे हैं। चयन संस्थाओं के यं दावे मुख्यमंत्री द्वारा भर्तियों में तेजी लाने के आदेश संबंधी बयानों के विपरीत हैं। इस तरह लगातार युवाओं को गुमराह किया जा रहा है। युवा मंच की मीटिंग में निर्णय लिया गया है कि रिक्त पदों पर भर्ती प्रक्रिया शुरू करने, तत्काल विज्ञापन जारी करने, चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता और स्केलिंग पर स्पष्टीकरण देने आदि मांग को लेकर 22 अक्टूबर को प्रशासनिक अधिकारियों को ईमेल आदि के माध्यम से प्रदेश भर में ज्ञापन भेजें जायेंगे।
(लेखक युवा मंच के संयोजक हैं।)