Uttarakhand Open University में भ्रष्टाचार के सारे रिकॉर्ड टूटे, भर्तियों का महाघोटाला जारी, कुलपति के गणित में फिट हुए कुलाधिपति
Uttarakhand Open University News: उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति ओपी नेगी अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में भी विवादास्पद भर्तियां करने से बाज नहीं आ रहे हैं. कुलपति के कार्यकाल के अंतिम तीन महीनों में कार्य परिषद की बैठक ना बुलाने और भर्तियां ना करने के प्रावधान और परंपरा के बावजूद धड़ल्ले से मनमानी जारी है. अब 2 दिसंबर को कार्य परिषद की बैठक बुलाने की जोड़-तोड़ कर आठ नए पदों पर भर्ती का रास्ता साफ़ कर लिया गया है. कुलाधिपति और राज्यपाल की तरफ़ से पहले कार्य परिषद की बैठक ना बुलाने के निर्देश होने के बावजूद बाद में कुलपति को बैठक की अनुमति देना कई सवाल खड़े करता है.
विश्वविद्यालय में सहायक निदेशक और रिसर्च ऑफिसर के आठ पदों पर भर्ती करने के लिए कुलपति ने एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रखा है. अपने तीन साल के कार्यकाल में प्रोफेसर और अन्य पदों पर सौ से ज़्यादा विवादास्पद नियुक्तियां करने के बाद भी सत्ता की सह की वजह से कोई उनका बाल भी बांका नहीं कर पाया है. कुलाधिपति की तरफ़ से आख़िरी तीन महीनों में नीतिगत फैसले ना लेने के निर्देश हवा-हवाई साबित हुए हैं. उल्टा कुलपति ने कुलाधिपति को भी अपने गणित में फिट कर लिया है. अब कुलपति के राजनीतिक प्रभाव के चलते कुलाधिपति ने भी पाला बदल लिया है.
कुलपति परंपरा को तोड़ते हुए अपने अंतिम दिनों में आठ पदों पर इंटरव्यू करवा चुके हैं. अब इन भर्तियों पर अंतिम मोहर लगाने के लिए उन्हें कार्यपरिषद की बैठक करानी है. कुलाधिपति की तरफ़ से इसकी इजाज़त ना मिलने पर उन्हें 25 नवंबर को होने वाली कार्यपरिषद की बैठक निरस्त करनी पड़ी थी. लेकिन कुलपति चुप नहीं बैठे और उन्होंने देहरादून में डेरा जमाकर सरकार और आरएसएस की मदद से कुलाधिपति से कार्यपरिषद की बैठक कराने की अनुमति ले ली है. अब ये बैठक 2 दिसंबर को होने जा रही है. कार्यपरिषद की पूर्व बैठक निरस्त करने और फिर नई बैठक बुलाने के पत्र भ्रष्टाचार के गणित की पोल खोल देते हैं.
मुक्त विश्वविद्यालय की कार्य परिषद के एक सदस्य ने नई कार्य परिषद का आमंत्रण पत्र देते हुए बताया कि वे कुलपति पूरी तरह से मनमानी पर उतारू हैं. कार्य परिषद में अगर कोई सदस्य सही बात उठाने की कोशिश भी करता है तो उसे रोक दिया जाता है. कार्य परिषद में कुलपति के समर्थकों का बहुमत होने की वजह से उनसे असहमत कई सदस्य मौनी बाबा बन जाते हैं.
नए पत्र में कुलाधिपति की तरफ़ से मिली अनुमति का हवाला दिया गया है. अपने कर्मों को सही ठहराने के लिए कुलपति ने कई तर्क गढ़ रखे हैं. कभी वे नैक के मूल्यांकन का हवाला देते हैं तो कभी छात्र हित में विश्वविद्यालय के ज़रूरी कामों को पूरा करने के लिए कार्य परिषद की बैठक बुलाने को सही ठहराते हैं. लेकिन जानबूझकर नहीं बताते कि इस बैठक का असली मकसद आठ विवादास्पद नियुक्तियों पर मोहर लगाना है.
सवाल ये भी है कि आख़िर कुलाधिपति पहले कार्य परिषद की बैठक ना कराये जाने के निर्देश के बाद भी बाद में वे बैठक कराने की अनुमति कैसे दे देते हैं. क्या कुलपति के राजधानी देहरादून में डेरा डालने से इसका कोई रिश्ता नहीं है? क्या सरकार और आरएसएस की इसमें कोई भूमिका नहीं है?
विश्वविद्यालय के एक शिक्षक आरोप लगाते हैं कि कुलपति ने नियुक्तियों में मोटा पैसा कमाया है. इसका एक हिस्सा ऊपर तक गया है. यही वजह है कि बीजेपी-आरएसएस कार्यकर्ताओं के अलावा अधिकारियों के रिश्तेदारों की बिना योग्यता के अवैध नियुक्तियां की जा रही है. अगर इसकी निष्पक्ष जांच हो जाए तो सारी तस्वीर साफ़ हो जाएगी. कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत कह चुके हैं कि पूर्व कुलाधिपति और राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को विश्वविद्यालय में हुई नियुक्तियों की जांच के आदेश देने की वजह से अपना पद गंवाना पड़ा था. इससे पता चलता है कि कुलपति ओपी नेगी की सरकार और आरएसएस में कितनी गहरी पैठ है. पूर्व कुलाधिति के जांच के आदेश उनकी विदाई के साथ ही हवा हो चुके हैं
कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की तरफ़ से राज्यव्यापी प्रदर्शन के बाद भी कुलपति बेलगाम हैं. सरकार अगर भ्रष्टाचार के खिलाफ़ थोड़ा भी सख्ती दिखाती ती इतने विवादास्पद कुलपति की अब तक विदाई हो चुकी होती.
मुक्त विश्वविद्यालय में चल रहा भ्रष्टाचार का मामला उत्तराखंड के संस्थानों में राज्य के लाखों बेरोज़गारों का हक़ मारकर पिछले दरवाजे से अपने चहेतों को बिना योग्यता के अंदर करने का मामला है. इसके लिए हर लोकतांत्रिक नियम का तोड़ कुलपति के पास है. शिक्षा मंत्री धन सिंह का उन्हें बरदहस्त प्राप्त है. कुलपति नेगी की हालत जब सैंया भये कोतवाल तब डर काहे का वाली है.
कुलपति जाते-जाते विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह कराने की जुगत में भी लगे हैं. इससे वे अपने ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों से ध्यान हटाने की कोशिश तो करेंगे ही सरकार में बैठे मंत्रियों को बुलाकर चुनाव से पहले उनका मुफ्त में प्रचार भी करवाएंगे. इसमें कई सत्तानिष्ठ व्यक्तियों को डी-लिट की उपाधि देने की तैयारी भी है. ज़ाहिर है कि दीक्षांत समारोह में भी टैक्स पेयर्स का मोटा पैसा ख़र्च होना है. भ्रष्टाचार के तमाम आरोपों के बाद भी कुलपति तीन साल का कार्यकाल पूरा होने पर जोड़-तोड़ के दम पर एक्सटेंशन मिलने का शगूफा छोड़ रहे हैं.