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उत्तराखंड के अल्मोड़ा में डॉक्टर और शिक्षक ने पेश की मिसाल, बीते ढाई महीने से गांव-गांव जाकर बांट रहे मास्क और सैनिटाजर

Janjwar Desk
17 Jun 2020 4:49 PM IST
उत्तराखंड के अल्मोड़ा में डॉक्टर और शिक्षक ने पेश की मिसाल, बीते ढाई महीने से गांव-गांव जाकर बांट रहे मास्क और सैनिटाजर
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ललित चंद्र जोशी बताते हैं, 'शुरूआती दिनों में हमने अपने जेब से पैसा खर्च करके इस मुहिम को चलाया। गली, मोहल्लों में जाकर लोगों को जागरूक करने के साथ मास्क और सैनिटाइजर का भी वितरण किया।'

अल्मोड़ा से विमला की रिपोर्ट

जनज्वार ब्यूरो। कोरोना माहमारी जो आज वैश्विक महामारी का रुप ले चुका है इस समय में लोगों के अन्दर अनेक प्रकार के भेदभाव और छूआछूत की भावना देखने को मिली रही है। इस कोरोना लॉकडाउन के कारण बहुत सारे लोगों का रोजगार छिन चुका है, लोग हताश निराश होकर अपने घरों को लौट रहे हैं। भय और अवसाद ग्रस्त माहौल देखने को मिल रहा है।

ऐसे में पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के शिक्षक डॉक्टर ललित चन्द्र जोशी (योगी) जो संविदा में सोबन सिंह जीना परिसर अल्मोड़ा में कार्यरत हैं, वह बताते हैं, 'पिछले ढाई महीने से जब से लाॉकडाउन शुरू हुआ है तब से लेकर अभी तक कोरोना वायरस को लेकर अल्मोड़ा नगर व उसके आस-पास के गांव में जागरूकता बढाने व निर्धन लोगों को मास्क, सेनिटाइजर बांटने का काम कर रहा हूं। इसमें मेरे सहयोगी नेत्र चिकित्सक व पूर्व चिकित्सा निदेशक डॉक्टर जे.सी. दुर्गापाल जी रहे हैं।'

'शुरुआती दिनों में मजदूर नियाजगंज, राजपुरा बस्तियों में भ्रमण के समय मैंने देखा सरसों गांव की जो मजदूर महिलाएं है जो मौसमी सब्जियां बेचकर अपना घर चलातीं हैं, उनके पास मास्क नहीं है। उनकी फटी साडियां या जो झाडन है वह बहुत गंदे हो चुके थे। तब मेरे दिमाग में एक सवाल आया कि क्या हम इनकी मदद कर सकते हैं। तब मैने इस सम्बंध में फेसबुक पर एक पोस्ट डाला, 'क्या हम इनकी मदद कर सकते हैं। हम मास्क और सेनिटाइजर मुहिम चला रहे हैं। आपके द्वारा दिये गए सहयोग को हम उन निर्धन लोगों तक पहुचाएंगे जो जरूरत मन्द हैं।'

'शुरूआती दिनों में हमने अपने जेब से पैसा खर्च करके इस मुहिम को चलाया। गली, मोहल्लों, बाजारों में जाकर लोगों को जागरूक करने के साथ-साथ मास्क और सैनिटाइजर का भी वितरण किया। जब हमने इस काम को करना शुरू किया तब कुछ ज्यादा अच्छा रिस्पॉन्स नहीं मिला, क्योंकि जब कोई भी व्यक्ति समाज के लिए कुछ अच्छा करता है लोग उस पर अंगुली उठाते हैं। लोगों की परवाह किये बिना हम अपना काम करते रहे। बाद में लोगों ने हमारे काम की सराहना भी की। अपने घर के छतों में खडे होकर तालियां भी बजाई।'

ललित चंद्र जोशी आगे बताते हैं, 'यह काम बहुत आसान नहीं था। कई बार लोगों को डांटना भी पड़ा जब लोग इसकी भयावहता को हल्के में लेते थे। मास्क और सैनिटाइजर लेने से मना कर देते। लेकिन हम इससे कतराएं नहीं निरन्तर जन सेवा की, अभी भी कर रहे हैं। जब लोगों को समझ आने लगा कि हम सही काम कर रहे हैं, तब हमें कई लोगों ने सहयोग किया। हमें सबसे पहला सहयोग मीनू जोशी से मिला जो पेशे से शिक्षिका हैं। इसके बाद हमें कई अन्य साथियों ने भी सहयोग किया।'

शिक्षिका आशा खाती, डॉक्टर रेनू जोशी, इतिहास की शोध छात्रा, डॉक्टर जे.सी. दुर्गापाल जी जो मेरे साथ इस मुहिम का हिस्सा भी हैं। अल्मोड़ा शहर के कुछ मेडिकल स्टोरों ने भी 20-30 की संख्या में मास्क और सैनिटाइजर देकर हमारी मदद की। इस दौरान ढाई से तीन महीने हमने शहर व उसके आस पास के इलाकों में पैदल यात्राएं की कुछ दूर दराज़ के इलाकों में ही हम लोगों ने वाहन का प्रयोग किया।


'हमने आगे भी सोचा है जो लोग निर्धन हैं, जरूरत मन्द हैं, हम उनको जागरूक करने व मास्क वितरण करने का काम करेंगे। इस मुहिम के दौरान यह भी अनुभव हुआ कि हमें गांव में भी जाना चाहिए। लोगों को जागरूक करना चाहिए। इस मुहिम के तहत हम अल्मोड़ा की जेल में भी गए जहां 170 कैदी हैं। उनको सैनीटाइज किया और मास्क भी वितरण किया और इस कोरोना वायरस के बारे में लम्बी बातचीत की।'

डॉक्टर जे.सी दुर्गापाल कहते हैं, 'इस वैश्विक महामारी के संकट के समय मे मुझे एक डॉक्टर होने के नाते यह महसूस हुआ कि इस समय लोगों की मदद करना व इस वायरस के लिए जागरूक करना मेरा कर्तव्य है। मार्च से जब से लाकडाउन शुरू हुआ है, हम इस मुहिम के तहत काम कर रहे हैं। इसकी भयावहता के बारे में लोगों को जागरूक कर रहे हैं। कई गांव में जाकर लोगों को मास्क और सैनिटाइजर बांटे और अगले तीन साल तक मे इस मुहिम के तहत काम करता रहूंगा। क्योंकि ये जो वायरस है यह लम्बे समय तक मौजूद रहने वाला है।

'भले ही इसकी वैक्सीन या टैबलेट बन जाने के बाद इसमें रोकथाम हो जाय परंतु इसका असर कब तक रहेगा कुछ कहा नहीं जा सकता। वह आगे कहते है, 'इस मुहिम के दौरान जब हम चितई गांव में गए, हमने लोगों को इस वायरस की भयावहता के बारे में बतायाउनका कहना था कोरोना जाने, डॉक्टर, मोदी जानें हमे नहीं पता यह क्या है। वो हमारी बात सुनने को तैयार नहीं थे।'

'अपनी नौकरी से रिटायर होने के बाद में सामाजिक कार्यों से जुड़ा हूँ जब भी मुझे मौका मिलता है में लोगों की मदद करता हूँ व स्वास्थ्य के प्रति लोगों को जागरूक करने की कोशिश करता हूँ। साथ में रेडक्रास सोसायटी के साथ भी जुड़ा हुआ हूँ।'

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