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उत्तराखंड

Uttarakhand Election : चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में हरीश रावत 'हरदा' बने पहली पसंद, मगर सर्वे पर ही उठने लगे सवाल

Janjwar Desk
11 Oct 2021 2:54 AM GMT
Uttarakhand Election : चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में हरीश रावत हरदा बने पहली पसंद, मगर सर्वे पर ही उठने लगे सवाल
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कांग्रेस के हरीश रावत इन दिनों अलग-अलग मुद्दों समेत महंगाई पर उठा रहे हैं सवाल

जब भाजपा को पूर्ण बहुमत दिखाया जा रहा है तो मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर कांग्रेस का चेहरा यानी हरीश रावत कैसे पहले स्थान पर हो सकते हैं, वहीं असंतुष्ट होने के बावजूद भाजपा की दोबारा वापसी कैसे संभव है...

सलीम मलिक की रिपोर्ट

Uttarakhand Election, देहरादून। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस चुनाव अभियान समिति अध्यक्ष हरीश रावत (Harish Rawat) मीडिया द्वारा कराए गए मुख्यमंत्री के चेहरे के सर्वे से निकलकर आये परिणामों से गदगद नजर आ रहे हैं। गाड़-गधेरे, लोकसंस्कृति की चर्चाओं से आम उत्तराखंडियत जनमानस का दिल जीतने की हरचंद कोशिश कर रहे हरीश रावत इन सर्वे से इतने उत्साहित हैं कि अपनी भावनाओं को सार्वजनिक करने के लिए उन्हें सोशल मीडिया (Social Media) पर भी पोस्ट करनी पड़ गयी। लेकिन जहां मीडिया हाउस एबीपी नेटवर्क-सी वोटर के सर्वे से रावत गदगद नज़र आ रहे हैं, वहीं कुछ लोगों को यह सर्वे ही नहीं भा रहा है।

मीडिया हाउस का यह सर्वे वैसे तो राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार की वापसी की घोषणा करता नजर आता है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि मुख्यमंत्री के लिए सर्वाधिक पसंदीदा चेहरे के तौर पर वह राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को बता रहा है।

सर्वे में 40 प्रतिशत वोटर्स के बीच बेरोजगारी का मुददा अहम बताने के साथ ही भाजपा को 44 से 48 (पूर्ण बहुमत) तो कांग्रेस को 19 से 23 व आम आदमी पार्टी को 4 सीट दी गयी हैं, लेकिन मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में सबसे पसंदीदा नाम हरीश रावत (36.6 प्रतिशत) का बताया गया है, जबकि वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर धामी को 24 प्रतिशत मतदाताओं की पसंद बताया गया है। अनिल बलूनी 18%, कर्नल अजय कोठियाल 10%, एक्स सीएम खंडूरी 4.4%, सतपाल महाराज .8% प्रतिशत लोगों की पसंद बताए गए हैं।

सर्वे का परिणाम इतने रोचक हैं कि हर कोई इसमें से अपने मतलब का हिस्सा निकालकर इसे अपने पक्ष में बताने को आतुर है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी कुछ ऐसी ही टिप्पणी कर कहा कि राज्य को ऐसे मुख्यमंत्री की आवश्यकता है, जो काफल और काले भट्ट का महत्व समझता हो। साथ ही उस व्यक्ति में मडुवे और गन्ने का समन्वित संगीत तैयार करने की क्षमता भी होनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि उत्तराखंडी पहचान के लिए यह चुनाव अंतिम अवसर है। इंटरनेट मीडिया पर अपनी पोस्ट में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने तमाम सर्वेक्षणों का हवाला देते हुए कहा कि उन्हें 2022 में मुख्यमंत्री पद का सबसे लोकप्रिय चेहरा बताया गया है। उन्होंने कहा कि 2017 की चुनावी हार और उसके बाद कई व्यक्तियों के राजनैतिक व्यंग्य ने उनके दिल में छेद किए थे। उन्होंने भगवान केदारनाथ और भगवान बद्रीश के बेटे और बेटियों की अपनी जिंदगी की परवाह किए बिना सेवा की है। आशा थी कि वही उन्हें न्याय दिलाएंगे। उन्हें सबसे लोकप्रिय पंसद बताए जाने से उनके घाव भर गए हैं। उन्हें सत्ता की चाहत नहीं है। चाहत गांव के उस व्यक्ति को तरक्की से जोड़ने की है, जिसे अभी तक लाभ नहीं मिला हो।


वहीं कुछ लोगों ने इस सर्वे पर ही सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय से सोशल मीडिया पर सीधे टकराव कर पार्टी से निष्कासन पीरियड पर चल रहे महेंद्रप्रताप सिंह बिष्ट नाम के यूजर्स ने इसे भाजपा प्रायोजित मीडिया का सर्वे बताते हुए सर्वे के तरीके पर सवाल उठाए हैं। बिष्ट का कहना है कि भाजपा के तीन लोगों को मुख्यमंत्री के तौर पर सर्वे में लिया गया है। जबकि कांग्रेस से एक ही चेहरे को मुख्यमंत्री के तौर पर दिखाया जा रहा है, जबकि कांग्रेस के प्रभारी और शीर्ष नेतृत्व बार-बार कह चुका है कि कोई एक नेता चेहरा नहीं है। इसलिए जो भी सर्वे हो तो उसमें भाजपा-कांग्रेस दोनो के बराबर चेहरों के नाम को रायशुमारी के लिए सामने होना चाहिए। ऐसा नहीं हो तो सर्वें का आधार सीधे पार्टी के चुनाव चिन्ह को बनाना चाहिए।

कुछ यूजर्स का कहना है कि सर्वे में जब भाजपा को पूर्ण बहुमत दिखाया जा रहा है तो मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर दूसरी पार्टी का चेहरा कैसे पहले स्थान पर हो सकता है, जबकि कुछ यूजर्स के लिए यह हैरान करने वाली बात है कि वर्तमान सरकार के कामकाज से असंतुष्टों की संख्या 47 प्रतिशत होने और बेरोजगारी (41%) महंगाई (16%) को चुनावी मुददा समझने वाले सर्वे में भाजपा को बहुमत से भी आगे की बढ़त कैसे मिल सकती है।

हालांकि प्रदेश के चुनाव में अभी चार महीने का समय है। इस दौरान राजनीतिक तौर पर न जाने क्या-क्या उलटफेर होंगे। जो अंतिम परिणाम को किस हद तक प्रभावित करेंगे, कहा नहीं जा सकता। लेकिन जिन सर्वेक्षणों को आधार बनाकर हरदा गदगद हो रहे हैं, उन सर्वेक्षणों पर उठते सवाल तो गौर करने लायक हैं।

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