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Varansi News : नफरत, गैर बराबरी और फासीवाद की आग में झुलस रहा देश, 'आइडिया ऑफ इंडिया' को बचाना जरूरी

Janjwar Desk
1 Nov 2021 5:13 PM IST
Varansi News : नफरत, गैर बराबरी और फासीवाद की आग में झुलस रहा देश, आइडिया ऑफ इंडिया को बचाना जरूरी
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( 'भारत की परिकल्पना' : संगोष्ठी को संबोधित करते वक्ता)

Varansi News : प्रोफेसर आर के मंडल ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता भारतीय संविधान (Indian Constitution) की आत्मा है। इसे बचाये रखना हर नागरिक का कर्तव्य है।

Varansi News। आजादी के आंदोलन के दौरान जिस 'आइडिया ऑफ इंडिया' (Idea Of India) का सपना परवान चढ़ा था आज वह बर्बाद हो रहा है। मुल्क नफरत, गैर बराबरी और कॉरपोरेट फासीवाद की आग में झुलस रहा है। यदि समय रहते स्वतन्त्रता, समता, बंधुता और इंसाफ पर आधारित आईडिया ऑफ इंडिया/भारत की परिकल्पना के लिए संघर्ष नहीं किया जाएगा तो हमारी वसुधैव कुटुम्बकम की विरासत खतरे में पड़ जाएगी। आज जरूरत है कि संविधान की प्रस्तावना को आत्मसात कर उसे सुदुर ग्रामीण अंचलों तक पहुंचाने का प्रयास किया जाए, जिससे जन मानस को न सिर्फ संवैधानिक मूल्यों की जानकारी हासिल हो बल्कि इन मूल्यों पर आधारित समाज निर्मित करने में भी आसानी हो। यह बातें मात्रिधाम स्थित अंजलि में 'राइज एंड एक्ट' प्रोग्राम के तहत आयोजित 'भारत की परिकल्पना' विषयक एक संगोष्ठी में वक्ताओं ने कही।

मुख्य वक्ता प्रोफेसर आर के मंडल ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता भारतीय संविधान (Indian Constitution) की आत्मा है। इसे बचाये रखना हर नागरिक का कर्तव्य है। आज प्रतिगामी ताकते न केवल संवैधानिक मूल्यों को चुनौती दे रही है बल्कि सदियों से स्थापित विश्व में हमारी पहचान के लिए भी खतरा पैदा कर रही हैं। धार्मिक पहचान और उसपर आधारित राष्ट्रवाद को महत्व दिए जाने से विभिन्न समाजों के बीच टकराव की स्थिति पैदा होगी। यह भारत जैसे विविधता वाले मुल्क के लिए ठीक नहीं है। इससे सावधान रहने की जरूरत है।

वरिष्ठ पत्रकार ए के लारी ने कहा कि सदियों से भारतीय समाज मेल-जोल से रहने का हामी रहा है। हमने पूरी दुनिया को सिखाया है कि विभिन्नता हमारी कमजोरी नहीं बल्कि ताकत है। आज दुनियाभर में पत्रकारिता के आयाम बदले हैं। हमारा मुल्क भी उससे प्रभावित हुआ है। बावजूद इसके यह सोच लेना कि सभी पत्रकार सरकार की सोच के साथ है ठीक नहीं हैं। हमारी एक बड़ी जमात आज भी मौजूदा खतरों के बीच जनता और मुल्क के सवालों को उठा रही है। उनकी कोशिश को सोशल मीडिया से लेकर प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में देखा जा सकता है।

सामाजिक कार्यकर्ता डॉ लेनिन रघुवंशी ने कहा कि आज सियासत लोगों को जोड़ने की जगह बांटने का काम कर रही है। हम एक ऐसे भारत की ओर बढ़ रहे हैं जो नफरती उन्माद से परिपूर्ण है, न कि प्रेम और अहिंसा पर। डॉ. मुनीज़ा रफीक खान ने कहा कि आजादी के आंदोलन और उससे भी सैकड़ों साल पहले से भारत साझी विरासत और मेल जोल की परंपरा को समेटे हुए निर्मित हुआ है जिसे आज कुछ ताकतें खत्म कर देना चाहती है। हमें इनसे सावधान रहना होगा।

गोष्ठी को विभिन्न सामाजिक वर्गों के प्रतिनिधियों रामजनम कुशवाहा, सतीश सिंह, फजलुर्रहमान अंसारी, श्रुति नागवंशी, डॉ नूर फात्मा, लक्ष्मण प्रसाद, हरिश्चंद्र बिंद, रीता पटेल अयोध्या प्रसाद,अजय सिंह, बाबू अली साबरी कृष्ण भूषण मौर्य, आनंद सिंह, शमा परवीन आदि ने भी सम्बोधित किया। गोष्ठी में पूर्वांचल के अनेक जिलों के लोग उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन और विषय स्थापना डॉ मोहम्मद आरिफ और धन्यवाद ज्ञापन शीलम झा ने किया।

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