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सिरप पीने से जम्मू में 11 बच्चों की हुई मौत मामले में प्रशासन पर अपराधियों से सांठगांठ का आरोप

Janjwar Team
23 March 2020 2:45 PM IST
सिरप पीने से जम्मू में 11 बच्चों की हुई मौत मामले में प्रशासन पर अपराधियों से सांठगांठ का आरोप
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हिमाचल के काला अम्ब स्थित डिजिटल विजिन कंपनी में तैयार खांसी के सिरप में जहरीले कैमिकल से बच्चों की किडनी हो गयी थी फेल, जम्मू प्रशासन, पुलिस और डाक्टरों के लिए यह रूटीन केस...

ग्राउंड जीरो से मनोज ठाकुर की रिपोर्ट

जनज्वार ब्यूरो। पूरा देश इस वक्त कोरोना महामारी से चिंतित है। बीमारी फैलने से रोकने के लिए तमाम उपाय किए जा रहे हैं। कोरोना के इस शोर में जम्मू रीजन के उधमपुर जिले के रामनगर तहसील के गांवों के उन 11 बच्चों के अभिभावकों की चीखें कहीं दब सी गयीं हैं। इन बच्चों को एक नीम हकीम महेंद्र सिंह ने खांसी के जो सिरप दिए थे, इसमें जहरीला कैमिकल था। सिरप पीते ही बच्चों की किडनी फेल हो गयी थीं। एड़ियां रगड़ते हुए बच्चों ने अपनी मां की गोद में ही दम तोड़ दिया।

दिसंबर से जनवरी के बीच हुई इन मौतों को लेकर जम्मू समेत पूरे देश में कहीं चर्चा नहीं हो रही है क्योंकि दवा माफिया के मजबूत नेटवर्क के आगे प्रशासन और पुलिस कुछ नहीं कर रही है। अभिभावक अपने बच्चों की मौत को सुनियोजित नरसंहार करार दे रहे हैं। उनका आरोप है कि न पुलिस उनकी बात सुन रही है और न प्रशासन। हर कोई इस वारदात को दबाने की कोशिश में लगे हुए हैं। इन कोशिशों को दरकिनार करते हुए 'जनज्वार' पीड़ित परिवारों के पास पहुंचा।

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कोरोना की वजह से उधमपुर से रामनगर की ओर जाने के लिए बस आदि बंद कर दिये गए थे। बाहर से किसी को शहर में अंदर नहीं आने दिया जा रहा था। ऐसा लग रहा था कि जम्मू का यह सारा इलाका कोरोना से लड़ने लिए पूरी तरह से मुस्तैद है। एक टैक्सी वाला किसी तरह से रामनगर जाने के लिए इस शर्त पर तैयार हुआ कि वह शहर से पांच किलोमीटर बाहर ही उतार देगा। उसने यह भी शर्त रखी कि जहां उसे रोक दिया, वह वहीं से वापस हो जाएगा। सब कुछ तय होने के बाद हम रामनगर की ओर चल पड़े।

के करीब 1 बजे टैक्सी चालक ने मुझे रामनगर से पांच किलोमीटर दूर उतार दिया। यहां से मुझे पैदल ही शहर की ओर जाना था। करीब दो घंटे चलने के बाद मैं रामनगर के सिविल अस्पताल पहुंचा। सीधे यहां के इंचार्ज डॉक्टर महबूब खान से मिला। डॉक्टर कोरोना को लेकर लगे हुए हैं। अपनी टीम को उन्होंने हिदायत दी, क्या करना है? कैसे करना है। काफी देर बाद मैंने उन्हें अपना परिचय दिया। उन्होंने कहा- जी बताइये, मैंने पूछा कि मैं 12 बच्चों की मौत के सिलसिले में आपसे बातचीत करने आया हूं।

डॉक्टर ने कहा कि वह अभी कोरोना को लेकर व्यस्त हैं। काफी जोर देने पर डाक्टर ऑफ द रिकार्ड बातचीत के लिए राजी होते हैं। डॉक्टर महबूब ने बच्चों की मौत से खुद और अपने पूरे स्टाफ और हेल्थ विभाग को क्लीनचिट देते हुए कहा कि मौत तो दवा की वजह से हुई। इसमें हम कुछ नहीं कर सकते हैं। डॉक्टर ने बताया कि उनकी भूमिका इस केस में कुछ नहीं है। दवा की एक दुकान पर नीम हकीम से बच्चों का इलाज चल रहा है? वहां उन्हें जहरीला सिरप दे दिया जाता है जिससे उनकी मौत हो जाती है, इस सवाल पर डॉक्टर कहते हैं कि यह हम नहीं देखते। इसके लिए ड्रग डिपार्टमेंट है। हालांकि उन्होंने दावा किया कि अब वह नियमित दवा की दुकानों की जांच कर रहे हैं। कितनी दुकानों की जांच हुई, इसका डॉक्टर के पास जवाब नहीं है।

न्होंने बताया कि हम तो इसे कोई रहस्यमयी बीमारी ही मान रहे थे क्योंकि जिस तरह से तेजी से मौतें हो रही थी, यह अपने आप में बहुत गंभीर बात थी। लेकिन हम क्या कर सकते थे? बस हमने बच्चों को रेफर कर दिया। डॉक्टर ने बताया कि मौतों का आंकड़ा तो और बढ़ सकता था यदि पीजीआई की टीम यह पता न लगाती कि बीमारी की वजह खांसी का सिरप है। इसके बाद दवा की दुकान को सील किया गया। इतना कहते हुए डॉक्टर अपनी सीट से खड़े हो बाहर चले जाते हैं।

रामनगर की तंग गली में उस नीम हकीम महेंद्र की दुकान है जिसने बच्चों को जहरीला सिरप इलाज के लिए दिया। दुकान बंद है, महेंद्र फरार है। अभी तक उसका पता नहीं चल पाया। आस-पास के दुकानदारों ने बताया कि वह 15 सालों से बच्चों का इलाज कर रहा है। वह बच्चों की बीमारी देखकर उन्हें दवा भी देता है। दुकानदारों ने बताया कि आस-पास के गांवों और यहां तक कि शहर के लोग भी अपने बीमार बच्चों के इलाज के लिए महेंद्र पर ही निर्भर थे।

पुलिस अभी तक महेंद्र को पकड़ने में कामयाब नहीं हो सकी है। रामनगर थाने के इंचार्ज जसविंद्र सिंह कहते हैं, 'हमारी टीम लगातार कोशिश कर रही है लेकिन उसका पता नहीं चल पा रहा है।' उन्होंने बताया कि महेंद्र सिंह और दवा कंपनी के अधिकारियों के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज कर लिया है। एक टीम इस केस की छानबीन कर ही है। पुलिस के पास इस सवाल का जवाब नहीं है कि 4 माह होने को आ गए, अभी तक महेंद्र या अन्य आरोपी पकडे़ क्यों नहीं गए? इस पर एसएचओ ने जवाब दिया कि हम अपने स्तर पर पूरी कोशिश कर रहे हैं।

लेकिन पीड़ित अभिभावकों का आरोप है कि पुलिस, प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी आरोपियों को बचाने की कोशिश में लगे हुए हैं। एक पीड़ित अशोक कुमार ने बताया कि उनके बच्चे स्वाभाविक मौत नहीं मरे, उन्हें मारा गया है। इसके पीछे दवा माफिया था जिसने अपने मुनाफे के लिए हमारे मासूमों को हमसे छीन लिया है।

कुमार बताते हैं, 'ज्यादातर पीड़ित लोग अनपढ़ हैं। वह अपने हक में आवाज नहीं उठा सकते। इसी का फायदा पुलिस और अधिकारी उठा रहे हैं। महेंद्र को ही अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया। इससे ही साफ हो रहा है कि पुलिस केस को हलका करने में लगी हुई है क्योंकि जैसे-जैसे समय बीत रहा है, हर कोई घटना को भूल रहा है। बस अब तो पीड़ित परिवारों को ही याद है उनके साथ हुआ क्या?'

मृतक बेटे के साथ अशोक कुमार

सएचओ इन आरोपों पर कहते हैं कि ऐसा नहीं है। हम केस को संजीदगी से ले रहे हैं लेकिन उन्हें यह नहीं पता कि कंपनी के खिलाफ हिमाचल में मामला दर्ज है। ऐसे में आरोपियों को पकड़ने में हिमाचल पुलिस की मदद क्यों नहीं ली जा रही है। इसके लिए संयुक्त टीम का गठन क्यों नहीं हो रहा है जिससे आरोपी पकड़े जा सके, इन सवालों पर जब रामनगर के डीएसपी धारू राम ने कहते हैं, 'हम पूरी तरह से मुस्तैद हैं। इस वक्त कोरोना वायरस को लेकर हमारा ध्यान इधर है। जल्दी ही आरोपियों को पकड़ लिया जाएगा।' उन्होंने बताया कि एसटीएफ को केस दिया गया है।

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लेकिन पीड़ित परिवारों का आरोप है कि 11 मौत पर पुलिस की कार्यवाही से वह कतई संतुष्ट नहीं हैं। उन्होंने कहा कि जब वह पुलिस के पास केस के बारे में जानकारी लेने जाते हैं तो उन्हें थाने से भगा दिया जाता है। रामनगर के स्थानीय एडवोकेट हरजीत सिंह ने बताया कि सबसे पहले तो यह गैर इरादन हत्या नहीं बल्कि सुनियोजित हत्या का केस है। क्योंकि कंपनी ने जिस कैमिकल का दवा में प्रयोग किया वह जहरीला था। कंपनी ने पैसा कमाने के लिए बच्चों की जान से खिलवाड़ किया है। लेकिन पुलिस इस तथ्य की ओर ध्यान नहीं दे रही है।

रजीत सिंह कहते हैं, 'ज्यादातर बच्चों का पोस्टमार्टम तक नहीं हुआ। यह जानबूझ कर नहीं कराया गया क्योंकि यदि पोस्टमार्टम रिपोर्ट होती तो यह कानूनी प्रमाण बनता, जिसे कोर्ट में प्रस्तुत किया जा सकता था। सरकारी डाक्टरों ने किसी स्तर पर अभिभावकों को जागरूक करने की दिशा में कुछ नहीं किया। सरकारी डाक्टर को इसे रहस्यमयी बीमारी मान कर हाथ पर हाथ रखे बैठे थे। इससे ही पता चलता है कि इन मौतों पर स्वास्थ्य विभाग की क्या गंभीरता थी।'

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