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राजनीति

गुजरात नरसंहार के 14 अपराधियों को सुप्रीम कोर्ट से जमानत, मोदी के मुख्यमंत्री रहते हुआ था यह अपराध

Prema Negi
29 Jan 2020 11:32 AM IST
गुजरात नरसंहार के 14 अपराधियों को सुप्रीम कोर्ट से जमानत, मोदी के मुख्यमंत्री रहते हुआ था यह अपराध
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सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से निराश हैं गुजरात दंगों के दौरान ओडे हत्याकांड में अपने 22 रिश्तेदारों को खोने वाले, कहा ऐसे फैसले से कोर्ट ने पेश की है गलत मिसाल, हत्यारों को लगेगा कि हत्या जैसे गंभीर अपराध के बाद भी उन्हें आसानी से मिल सकती है जमानत...

जनज्वार। 2002 में गुजरात में हुए हिंसक दंगों ने पूरे देश को हिला दिया था। वही गुजरात दंगे जिसमें बेरहमी से 23 लोगों को जिंदा जला दिया गया। 2002 के गुजरात दंगों में 14 लोगों को दोषी माना गया था। इन्हीं दोषी 14 लोगों को सुप्रीम कोर्ट ने कल 28 जनवरी को जमानत दे दी।

सुप्रीम कोर्ट ने 14 लोगों को सशर्त जमानत देते हुए कहा दोषियों को आध्यात्मिक और सामाजिक कार्य करने चाहिए, जब तक उनकी अपील पर अंतिम फैसला नहीं हो जाता। उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को मध्य प्रदेश को इस दिशा में अपने आदेश जारी किए। गुजरात दंगों के ये 14 दोषी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बिना गुजरात में प्रवेश नहीं कर सकते हैं।

गौरतलब है कि भीड़ ने एक मार्च 2002 को गुजरात के आणंद जिले के ओडे कस्बे के पीरवाली भगोल इलाके में एक घर में आग लगा दी थी। इस घटना में अल्पसंख्यक समुदाय के 33 सदस्य जिंदा जल गए थे। इसमें 9 महिलाएं और बच्चे शामिल थे। गोधरा ट्रेन अग्निकांड के दो दिन बाद इस घटना को अंजाम दिया गया था। इस भीषण हिंसक अग्निकांड के कारण समूचे गुजरात में सांप्रदायिक हिंसा फैल गई थी।

गोधरा ट्रेन जलने की घटना के बाद ओड के निवासियों ने कस्बे में मुस्लिम संपत्तियों को निशाना बनाना शुरू किया था। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने पहले आंसूगैस के गोले दागे और फिर गोलियां चलाईं। घटना 1 मार्च, 2002 को ओड के पिरवाली भागोल इलाके में हुई थी। आनंद जिले के ओड में 23 लोगों को जिंदा जला दिया गया था| जिंदा जला दिए गए इन 23 लोगों में 8 बच्चे और 6 महिलाएं थी| इनमें से 22 लोग एक ही परिवार से थे। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल ने माना था कि कि गोधरा कांड के 9 सबसे वीभत्स मामलों में से एक ओडे हत्याकांड था।

1 मार्च, 2002 को ओड के पिरवाली भागोल इलाके में गोधरा ट्रेन जलने की घटना के बाद मुस्लिमों और उनकी संपत्तियों को निशाना बनाना शुरू किया गया था। तब भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने पहले आंसूगैस के गोले दागने और फिर गोलियां चलाने की बात स्वीकारी थी, जिसमें एक लड़का मारा गया था। इसी दौरान 1 मार्च को ही शाम 4 बजे, लगभग 1500-2000 की संख्या में भीड़ ने पिरवाली भागोल में मुस्लिम घरों पर हमला कर दिया। इन परिवारों ने डरकर एक तीनमंजिला एक घर में शरण ली थी, जिसे भीड़ ने दरवाजों को बाहर से बंद कर दिया और पेट्रोल और मिट्टी का तेल डालकर आग के हवाले कर दिया था, जिसमें इतना बड़ा नरसंहार हुआ।

सी मामले में फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट में भारत के मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे और जस्टिस बी आर गवई और सूर्यकांत की पीठ ने कोर्ट में बताया कि दोषियों ने छह-सात साल की जेल पूरी कर ली है और दोषियों की अपील पर फैसला लंबित चल रहा था| सुप्रीम कोर्ट ने आदेश देते हुए कहा कि 14 दोषियों को मध्य प्रदेश भेजा जायेगा, जहाँ वे आध्यात्मिक और सामाजिक काम करेंगे। 14 दोषियों को दो समूहों में जबलपुर और इंदौर भेजा जायेगा।

ध्य प्रदेश विधिक सेवा प्राधिकरण उन्हें रोजगार उपलब्ध करवाएगा और यह भी ध्यान रखेगा कि सभी दोषी सप्ताह में छह घंटे सामुदायिक सेवा करें। मध्य प्रदेश विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा हर तीन महीने में एक रिपोर्ट भी तैयार करके पेश की जाएगी।

दोषियों ने इस तरह किया कोर्ट में अपना बचाव

6 दोषियों ने अधिवक्ता आस्था शर्मा के माध्यम से अपनी याचिका दायर की थी। छह दोषियों ने कहा कि उनके मामले में केवल एक आदमी के सबूतों और गवाही के आधार पर दोषी ठहराया गया है और गवाह भी घटना के समय उपस्थित था या नहीं, यह बात स्पष्ट नहीं हो पाई है। छह अन्य लोगों ने कहा कि हाईकोर्ट को उनकी सजा को बरकरार नहीं रखना चाहिए, क्योंकि पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार उनकी घटना में कोई विशेष भूमिका नहीं थी। सारे बयान और पूछताछ सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एसआईटी और विभिन्न गैर सरकारी संगठनों के सामने लिए गए थे। जब भी उन्हें पैरोल दी गई, उनके द्वारा कभी भी रिहाई की शर्तों का उल्लंघन नहीं किया गया।

गुजरात दंगों के दोषियों को जमानत देने पर मामले के मुख्य गवाहों में से एक माले मोहम्मद मियाँ कसम मियाँ ने मीडिया से कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से निराश है। गवाह मोहम्मद मियाँ ने ओडे हत्याकांड में अपने 22 रिश्तेदारों को खो दिया था। उन्होंने कहा की ऐसे फैसले से कोर्ट ने गलत मिसाल पेश की है, लोगों को लगेगा कि ऐसे गंभीर अपराध के बाद भी उन्हें जमानत मिल सकती है।

मामले में शिकायतकर्ता रफीक खलीफा ने कहा कि वह पूरी उम्मीद खो चुके हैं, जिन्होंने लोगों को मार डाला, जिन्दा जला डाला उन्हें कैसे जमानत दी जा सकती है। हमने सबकुछ अल्लाह पर छोड़ दिया है अब वही फैसला करेंगे।

2012 में एक विशेष अदालत ने 23 लोगों को दोषी ठहराया था। ट्रायल कोर्ट ने दोषियों में से आठ को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। 18 दोषियों ने गुजरात उच्च न्यायालय में अपील की थी, गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा उनकी अपील का फैसला करने से पहले एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई थी। इसके बाद, हाईकोर्ट ने 17 दोषियों में से तीन को बरी कर दिया और 14 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इसके बाद दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।

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