Begin typing your search above and press return to search.
राजनीति

4120 विधायकों और 543 सांसदों में से कितनों के बच्चे गए राम मंदिर बनवाने

Prema Negi
26 Nov 2018 9:52 AM IST
4120 विधायकों और 543 सांसदों में से कितनों के बच्चे गए राम मंदिर बनवाने
x

मंदिर बनाने का ठेका जिन नेताओं ने ले रखा है उनमें से एक भी स्थानीय नहीं है। हमें यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि अयोध्या के लोग क्या चाहते हैं? अयोध्या के लोगों ने मंदिर के लिए कभी कोई भीड़ इकट्ठा नहीं की....

अभिषेक आजाद

विश्व हिंदू परिषद ने 25 नवंबर को अयोध्या में धर्मसभा बुलाई। देशभर के सभी हिंदुवादी साम्प्रदायिक संगठनों ने अपने कार्यकर्ताओं को अयोध्या में इकट्ठा किया। भारतीय जनता पार्टी ने अपने जनप्रतिनिधियों को भेजा और शिवसेना प्रमुख उद्भव ठाकरे स्वयं इस धर्मसभा में शामिल हुए। इन लोगों के इकट्ठा होने से स्थानीय लोगों का जनजीवन प्रभावित हुआ।

अयोध्या के बाज़ारों में वीरानी और सन्नाटा पसरा रहा। स्थानीय लोगों को दहशत के माहौल में जीना पड़ा। स्थानीय लोगों का किसी भयानक घटना से आशंकित होना जायज़ था, क्योंकि दुकानें और मकान तो स्थानीय लोगों के ही जलते हैं। बाहर से आए हुए लोग तो नफरत का ज़हर फैलाकर अपने घरों को वापस लौट जाते हैं।

उस नफ़रत, तनाव और घृणा के माहौल को पूरी उम्र स्थानीय लोग ही झेलते हैं। बाहरी लोग तो आग लगाकर लौट जाते हैं और चुनाव के वक्त उन्हें फिर अयोध्या की याद आती है। स्थानीय लोगों को इन अराजक तत्वों को अयोध्या में घुसने ही नहीं देना चाहिए, जो अपनी रोटी सेंकने के लिए अयोध्यावासियों को आग में झोंक देते हैं जबकि अपने घर—परिवार को इसकी गर्मी तक महसूसने नहीं देते।

सप्ताह भर भी नहीं बीता कि 6 नौजवान नौकरी न मिलने से परेशान हो नदी में कूद गए, जिनमें से 3 की मौत हो गई। मगर इसे लेकर न कोई प्रदर्शन हुआ न धरना, न नारे लगे और न ही किसी नेता के मुंह से उनके लिए संवेदना का कोई शब्द निकला।

झारखंड से राजनीतिक कार्यकर्ता मनोज ठाकुर अपने फेसबुक वॉल पर लिखते हैं, 'भारत में 4120 विधायक हैं, 543 निर्वाचित सांसद हैं। इनमें से कितनों के बच्चे मन्दिर बनवाने अयोध्या गए हैं।'

ताज्जुब यह भी कि मंदिर बनाने का ठेका जिन नेताओं ने ले रखा है उनमें से एक भी स्थानीय नहीं है। हमें यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि अयोध्या के लोग क्या चाहते हैं? अयोध्या के लोगों ने मंदिर के लिए कभी कोई भीड़ इकट्ठा नहीं की। अयोध्या में जब भी भीड़ इकट्ठा हुई तो वह बाहरी लोगों की थी। राम मंदिर की मांग करने वाले नेताओं की निशानदेही कीजिये। इतिहास में भी झांकिये। आपको कोई नाम अयोध्या से नहीं मिलेगा।

आडवाणी, सिंघल, तोगड़िया, ठाकरे आदि इनमें से एक भी नाम अयोध्या से नहीं है। अयोध्या (फैज़ाबाद) अवध रियासत की राजधानी रही है। अवध अपने अदब और तहज़ीब के लिए विश्व विख्यात है। भारत की महान गंगा जमुनी तहजीब इसी अवध की धरती पर फली और फूली।

चूंकि मैं अयोध्या से ही हूं इसलिए मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि अयोध्या के स्थानीय लोग शांति व सौहार्द चाहते हैं। माहौल बाहरी लोगों ने खराब किया है। जरूरत है स्थानीय लोगों के एकजुट होने की और माहौल खराब करने वाले बाहरी लोगों को भगाने की।

समय का चुनाव और चुनाव का समय

धर्मसभा का आयोजन ऐसे समय किया गया है जब केंद्र में भारतीय जनता पार्टी का कार्यकाल समाप्त हो रहा है। ऐसे समय पर सरकारें अपने पांच साल का हिसाब देती है, किंतु मौजूद सरकार के पास हिसाब के नाम पर देने को कुछ भी नहीं है। ऐसे में उसने मंदिर राग अलापना शुरू कर दिया है। वह जनता को मुद्दों से भटका रही है। उसने गुजरात का चुनाव पटेल की मूर्ति बनवाकर जीतने की कोशिश की और अब लोकसभा चुनाव राम मंदिर के नाम पर जीतना चाहती है।

मुद्दों से भटकाव

मंदिर राग अलापने का एक मात्र उद्देश्य जनता का ध्यान महत्वपूर्ण मुद्दों से भटकाना है। 26 नवंबर को देशभर के सभी दलित संगठन संविधान दिवस के रूप में मनाते हैं। संविधान दिवस के दिन सभी दलित संगठन रैलियां व सभाएं आयोजित करते हैं। धर्मसभा की तिथि जानबूझकर 25 नवंबर रखी गई, ताकि जनता का ध्यान दलित विमर्श से भटकाया जा सके।

एक सोची—समझी साजिश के तहत बाबरी मस्जिद को 6 दिसंबर को तोड़ा गया क्योंकि 6 दिसंबर को सभी दलित संगठन बाबा साहेब अंबेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाते हैं। एक सोची-समझी साजिश के तहत दलित विमर्श को खत्म करने की कोशिश की जा रही है।

संबंधित खबर : संघियों से सावधान, किसान और शिक्षक आंदोलन को फेल करने के लिए किया मंदिर आंदोलन

मुद्दों का अभाव और घटिया स्तर की राजनीति

भाजपा के पास मुद्दों का अभाव है। पार्टी को समझ नहीं आ रहा कि 2019 का लोकसभा चुनाव किन मुद्दों पर लड़ा जाए। 2014 का चुनाव विकास और मोदी पॉपुलैरिटी पर लड़ा गया था। विकास हुआ नहीं और मोदी पॉपुलैरिटी में भी काफी गिरावट आई है। पार्टी को पता है कि 2019 का चुनाव विकास और मोदी पॉपुलैरिटी पर नहीं लड़ सकती। राफेल मामले ने तथाकथित ईमानदारी का मुखौटा भी छीन लिया है। ऐसे बुरे वक्त में भाजपा को राम याद आ रहे हैं।

यह कटु सत्य है कि दक्षिण पंथी पार्टियों के पास मुद्दों का अभाव होता है। वे सतही व नकली मुद्दों को उठाकर राजनीतिक बहस के स्तर को गिराती है। इन पार्टियों का एक मात्र ध्येय 'येनकेनप्रकारेण' सत्ता हथियाना होता है। चुनाव जीतना ही इनका एकमात्र एजेंडा होता है। भाजपा इन पार्टियों में अग्रणी है। ऐसी पार्टियां आग लगाकर अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेकती है।

प्राथमिकता का प्रश्न

भक्तजन पूछ रहे हैं कि मंदिर अगर जन्मभूमि पर ना बनाये तो कहाँ बनाएं? लंदन में या पेरिस में? भक्तजनों से पूछा जाना चाहिए कि क्या सारे चुनावी वादे पूरे हो चुके हैं! क्या सरकार और उनके पास हल करने के लिए कोई समस्या शेष नहीं है? और कोई काम नहीं है? सारे काम किए जा चुके हैं?

प्रश्न यह नहीं है कि मंदिर कहाँ बनाये, प्रश्न यह है कि उनकी प्राथमिकता क्या है? किसी भी व्यक्ति या सरकार के पास करने के लिए बहुत सारे काम होते हैं और इन कार्यों को प्राथमिकता के अनुसार व्यवस्थित कर सबसे महत्वपूर्ण काम को सबसे पहले किया जाता है। सभी काम बराबर महत्व नहीं रखते। उन्हें प्राथमिकता के आधार पर ही किया जाना चाहिए। प्राथमिकता का प्रश्न अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।

से उनकी प्राथमिकतायें पूछी जानी चाहिए। उनसे पूछा जाना चाहिए कि आपकी प्राथमिकता क्या है? राष्ट्रनिर्माण या मंदिर निर्माण? एक भक्त पत्रकार ने तो यहां तक कह दिया कि दिल्ली की हवा इतनी प्रदूषित हो गयी है कि अब राम मंदिर पर चर्चा भी मास्क लगाकर करनी पड़ेगी। हवा जहरीली हो गयी है, साँस लेना दूभर हो रहा है लेकिन भक्त पत्रकार मास्क लगाकर भी बहस राम मंदिर पर ही करेंगे और मंदिर वहीं बनाएंगे। ये वक्त प्राथमिकताएं तय करने का है। इन मंदबुद्धि लोगों को कौन समझाये की मास्क लगाकर हवा की गिरती गुणवत्ता पर बहस करनी है राम मंदिर पर नहीं।

अगर सरकार की बात करें तो सरकार का काम राष्ट्रनिर्माण है। मंदिर या मस्जिद बनाना सरकार का काम नहीं है। उसका काम स्कूल और अस्पताल बनाना है, किन्तु भाजपा स्कूल और अस्पताल बनाने में पूरी तरह से असफल रही है। आज लोग शर्त लगा रहे हैं कि भाजपा द्वारा बनाये गए किसी एक स्कूल या अस्पताल का नाम बताइये।

अपनी असफलताओं को छुपाने के लिए भाजपा ने मंदिर राग अलापना शुरू कर दिया है। इस सरकार ने राजनीति के स्तर को घटिया दर्जे तक गिराया है। अपने निहित स्वार्थ के लिए धर्म और राजनीति को मिलाकर देश की आबोहवा में ज़हर घोल रही है।

धर्म और राजनीति का मिश्रण बहुत ही जहरीला होता है। इसीलिए राजनीति को धर्म से अलग रखा जाता है। किन्तु इस सरकार ने राजनीति का स्तर इतना गिरा दिया है कि अब धर्म और राजनीति, राज्य और राष्ट्र, सरकार और राज्य के बीच का अंतर समाप्त होता जा रहा है। सरकार के खिलाफ बोलना राजद्रोह और देशद्रोह समझा जा रहा है।

भावनात्मक शोषण

शोषण किसी भी रूप-रंग में हो निंदनीय है। आर्थिक शोषण ही एकमात्र शोषण नहीं है। दक्षिणपंथी सरकारें जनता के निम्नकोटि के आवेगों को उकसाती हैं, उनकी भावनाओं को भड़काकर उनका भावनात्मक शोषण करती हैं। उनकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ करती है। जनता को इमोशनली ब्लैकमेल करती है।

कांग्रेस और भाजपा दोनों ने मंदिर के मुद्दे पर लगभग एक जैसा रवैया अपनाया है। राजीव गाँधी ने मंदिर का ताला खुलवाया। कांग्रेस के सी. पी. जोशी कह रहे हैं कि मंदिर का निर्माण तो कांग्रेस ही करा सकती है। दोनों ही पार्टियों का रवैया बेहद ही शर्मनाक रहा है। जनता का भावनात्मक शोषण करने में कोई भी क्षेत्रीय या राष्ट्रीय दक्षिणपंथी पार्टी पीछे नहीं रही है। जनता को भावनात्मक होने के बजाए भावनात्मक शोषण करने वाले लोगों के खिलाफ एकजुट होना चाहिए।

उम्मीद की किरण

लोगों ने इस धर्मसभा में भाग न लेकर भावनात्मक शोषण करने वालों के खिलाफ एकजुटता दिखाई है। सभी सांप्रदायिक संगठन और पार्टियां भीड़ इकट्ठा करने में असमर्थ रहे। भाजपा एक यह शो पूरी तरह से फ्लॉप रहा। इस बार वह राम मंदिर के नाम पर 'मास मोबिलाइजेशन' नहीं कर पाई। शिवसेना ने अपने कार्यक्रम में परिवर्तन करके अपने कार्यकर्ताओं को अयोध्या से तुरंत वापिस बुला लिया। जनता ने बहुत ही सूझ बुझ से काम लिया और इस बार गुमराह नहीं हुई। कहते हैं न कि "काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती।"

(अभिषेक आज़ाद दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य हैं।)

Next Story

विविध