प्रेम और शादी विवाद में वर्धा हिंदी विश्वविद्यालय की 5 छात्राओं का निलंबन
निलंबित छात्राओं ने लगाए विश्वविद्यालय और जिला प्रशासन पर एकतरफा कार्रवाई के गंभीर आरोप, वहीं छात्राओं पर है एक ऐसे प्रेमी की पिटाई का मामला जिसने पहले विश्वविद्यालय की एक लड़की से किया 5 साल तक प्रेम और शादी के लिए चुना दूसरी लड़की को
वर्धा, जनज्वार। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा 5 छात्राओं को निलंबित करने का मामला सामने आया है। निलंबित की गई छात्राओं के मुताबिक उनको एक फर्जी मारपीट की घटना और एफआईआर के आधार पर विश्वविद्यालय से निलंबित किया गया है।
एफआईआर में धारा 143, 147, 149, 312 और 323 का हवाला दिया गया है। इनमें पीएच-डी की 4 और एक बी.एड.–एम.एड. एकीकृत की छात्रा शामिल है। छात्राओं का नाम ललिता, आरती कुमारी, विजयालक्ष्मी सिंह, कीर्ति शर्मा और शिल्पा भगत है।
अपनी शिकायत में निलंबित छात्राओं ने कहा है कि इस मामले में विश्वविद्यालय ने अपने स्तर की कोई जांच कमिटी तक नहीं बनाई। बकौल छात्राओं के 'बिना किसी कमेटी के न ही प्रोक्टर, न ही छात्र कल्याण अधिष्ठाता और न ही संबंधित विभाग से कोई पूछताछ की ज़हमत उठायी गयी।
घटनाक्रम के मुताबिक 08 मई को चेतन सिंह की पत्नी सोनिया सिंह ने महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा को लिखित शिकायत पत्र दिया कि उपरोक्त 5 छात्राओं ने उनके और उनके पति चेतन सिंह के साथ मारपीट की, जिससे उसका गर्भपात हो गया। 6 जुलाई की इस एफआईआर को आधार बनाते हुए विश्वविद्यालय द्वारा 5 लड़कियों को बिना किसी प्राथमिक जांच किए निलंबित कर दिया गया।
गौरतलब है कि इससे पहले 3 मई को सोनिया और दूसरे पक्ष ललिता में हुई मारपीट की घटना के बाद चेतन सिंह ने रात 8 बजे अपनी पत्नी के साथ रामनगर पुलिस थाने में जाकर ललिता के खिलाफ एनसीआर दर्ज कराई, जिसमें धारा 504, 506 के तहत आरोप लगाए गए। वहीं ललिता ने भी विश्वविद्यालय के महिला छात्रावास के कर्मचारी, गार्ड, केयरटेकर तथा 3 छात्राओं के साथ रामनगर थाने जाकर चेतन सिंह के खिलाफ धारा 324 के तहत केस दर्ज कराया।
08 मई को चेतन सिंह की पत्नी सोनिया सिंह द्वारा हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा को लिखित शिकायत पत्र दिया गया, जिसमें ललिता के साथ 4 अन्य के नाम शामिल कर आरोप लगाए गए कि उन्होंने चेतन सिंह व उसकी पत्नी के साथ मारपीट की, जिससे उसका गर्भपात हो गया। सवाल यह है कि 3 मई को पुलिस में दर्ज कराई गई रिपोर्ट में चेतन सिंह और सोनिया सिंह ने आखिर यह बात क्यों शामिल नहीं की कि ललिता के साथ अन्य साथी भी शामिल थे, जबकि एफआईआर में यह बात शामिल की गई है।
निलंबित छात्राओं के मुताबिक वह विश्वविद्यालय प्रशासन से अपनी बेगुनाही का सबूत मांगती रहीं, परन्तु प्रभारी रजिस्ट्रार ने 10 दिन घुमाया और बाद में कहा कि कुलपति महोदय ने कोई भी जानकारी देने से मना किया है। छात्राओं का कहना है जब उन्होंने अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने की बात कही तो बोले- ये तो मामला विश्वविद्यालय के बाहर का है।
इतना ही नहीं जब छात्राओं के अभिभावकों ने कुलपति एवं कुलसचिव से बात करनी चाही कि बिना किसी कमेटी गठन के निलंबन कैसे किया? तो माननीय कुलपति ने बहुत ही भद्दे लहजे में कोई बात सुनने से इंकार कर दिया। और पीड़ित छात्राओं को अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया।
असल में यह मामला चेतन सिंह बनाम ललिता का है। दोनों ही दिल्ली के निवासी हैं और हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के छात्र हैं। ललिता बी. एड.–एम. एड. एकीकृत की छात्रा है, जबकि चेतन सिंह हिंदी एवं तुलनात्मक साहित्य विभाग का पीएच-डी. शोधार्थी। पिछले 5 वर्षों से दोनों का प्रेम संबंध रहा। ललिता के मूुताबिक चेतन सिंह द्वारा कई वर्षों से विवाह करने का प्रलोभन देते हुए उसका यौन शोषण किया। अंततः चेतन सिंह ने ऐन मौके पर ललिता से किए विवाह के वादे से मुकरते हुए किसी अन्य लड़की सोनिया से विवाह कर लिया।
29 दिसंबर, 2017 को ललिता पिता हेतराम ने चेतन सिंह पर यौन शोषण का आरोप लगाते हुए आईपीसी की धारा 376, 323, 506, 417 के तहत स्थानीय रामनगर पुलिस स्टेशन, वर्धा में मामला दर्ज कराया। इस केस में विश्वविद्यालय की चार लड़कियां आरती कुमारी, विजयालक्ष्मी सिंह, कीर्ति शर्मा, शिल्पा भगत पीड़िता की गवाह थीं।
हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा ने चेतन सिंह को यौन शोषण के आरोप में विश्वविद्यालय के महिला सेल के सिफारिश पर निलंबित कर दिया। कुछ दिन पुलिस हिरासत में रहने के बाद आरोपी चेतन सिंह को कोर्ट से इस शर्त पर जमानत मिली कि जमानत के बाद पीड़िता व गवाहों को किसी प्रकार से परेशान नहीं करेंगे। इसके बाद आरोपी चेतन सिंह विश्वविद्यालय के महिला छात्रावास के निकट ही पंजाब राव कॉलोनी में अपनी पत्नी सोनिया के साथ किराए पर रहने लगा।
यह कॉलोनी महिला छात्रावास तथा वर्धा शहर के बीच स्थित है। ललिता के मुताबिक इसी दौरान चेतन सिंह उन्हें और उनके गवाहों को उकसाने के लिए विश्वविद्यालय के ही कुछ आपराधिक प्रवृत्ति के छात्रों के साथ-साथ अपनी पत्नी सोनिया सिंह को मोहरा बनाकर पीड़िता के साथ-साथ गवाहों को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करने का प्रयास करने लगा।
विश्वविद्यालस से निलंबित किए जाने के बाद छात्राओं का कहना है कि जहां घटना घटी, वह घटनास्थल विश्वविद्यालय की परिधि में नहीं आता है। न ही शिकायतकर्ता की पत्नी सोनिया सिंह का संबंध इस विश्वविद्यालय से है। इस मामले की जांच सिटी एसपी वर्धा की देखरेख में आईजी नागपुर के अधीन चल रही है। उनके द्वारा फिलहाल आरोपियों के बयान लिए जा रहे हैं और किसी पर दोष सिद्ध नहीं हुआ है। बावजूद इसके आईजी की जांच प्रक्रिया पूरी हुए, हम पाँच छात्राओं को विश्वविद्यालय द्वारा निलंबित किया गया है जो कि असंवैधानिक है, किसी दृष्टि से उचित नहीं है।
इस मसले पर ललिता का कहना है कि 3 मई की शाम को वह अपनी एक दोस्त रिंकी के साथ महिला छात्रावास से वर्धा जा रही थी तो उस पर हमला किया गया, जिसमें उसके साथ मारपीट की गई। ललिता के मुताबिक उसकी सहेल रिंकी साजिशन उसे अपने साथ ले गई थी और खुद मौका-ए-वारदात पर मोबाइल पर बात करते-करते पीछे हो गई। हाथापाई में दोनों पक्षों को चोट आई।
मारपीट में सोनिया सिंह के गर्भपात पर ललिता का कहना है कि उसे फंसाने के लिए एक झूठी मेडिकल रिपोर्ट जो सेवाग्राम से बनाई गई है, जिसके आधार पर 07 जून 2018 को एफआईआर दर्ज की गई।
गौरतलब है कि एनसीआर में पीड़िता के अलावा किसी का भी नाम नहीं है, लेकिन बाद में एफआईआर में 4 अन्य नाम जोड़ दिए गए। ललिता कहती है कि उसके साथ 3 मई को मौका-ए-वारदात पर मौजूद रहने वाली उसकी सहेली रिंकी ने चेतन सिंह के साथ मिलकर उसके खिलाफ झूठी गवाही दी कि उसने पांचों लड़कियों को चेतन सिंह की पत्नी सोनिया को मारते हुए देखा।
ललिता कहती है घटना के समय यानी शाम 7:30 बजे आरती कुमारी विश्वविद्यालय के गेट क्रमांक 01 पर सीसीटीवी कैमरे के सामने थी, विजयलक्ष्मी बाहर दुकान पर थी, कीर्ति शर्मा हॉस्टल के बाहर ही नहीं निकली और शिल्पा भगत सम्राट नगर स्थित अपने घर पर थी। सबके पास इसके सबूत भी मौजूद हैं।
मामले की रिपोर्ट दर्ज होने के बाद रामनगर थाने का पीएसआई सचिन यादव ने ललिता और उसके साथी गवाहों के अभिभावकों को धमकी दी कि पांचों लड़कियों की पीएच-डी.खत्म करवा दूँगा और सब को जेल कराऊँगा।'
पीएसआई का रवैया देखकर पीड़िता (ललिता) ने इसकी शिकायत नागपुर आईजी से भी की। आईजी ने मामले को तुरंत संज्ञान में लेते हुए वर्धा एसपी से जांच प्रक्रिया शुरू करवायी। 6 जुलाई को आरोपियों के बयान दर्ज़ कराया गए।
ललिता और उसकी साथी छात्राएं कहती हैं उसी दिन 6 जुलाई को एफआईआर को आधार बनाते हुए विश्वविद्यालय द्वारा 5 लड़कियों को बिना किसी प्राथमिक जांच किए निलंबित कर दिया गया, जबकि यह मुंबई न्यायालय के आदेश क्रमांक 9889/2017 का खुला उल्लंघन है, जिसमें साफ-साफ लिखा है कि किसी पर भी एफआईआर दर्ज होने के कारण विध्यार्थियों के शिक्षा लेने के संवैधानिक अधिकार का हनन करने का अधिकार किसी संस्था के पास नहीं है।
ललिता और उसकी साथी छात्राओं का कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन की एकतरफ़ा कार्यवाही करना और हमारा पक्ष जाने बिना सीधे कार्यवाही स्वरूप हमें कॉलेज से निकालना आरोपियों को संरक्षण देने का कार्य कर रहा है।
इस घटना की एक कड़ी पूर्व में छेड़खानी के आरोप में शामिल संजीव झा और उसके साथियों से भी जुड़ती है, निलंबित छात्राओं के मुताबिक वह चेतन सिंह की आड़ में अपनी पुरानी रंजिश निकालने में लगा था। उसे विश्वविद्यालय में एक छात्रा के साथ छेड़खानी के आरोप में 2 साल पहले निलंबित किया गया था, जिसमें पीड़ित ललिता ने एनसीआर के माध्यम से थाने में मामला नामजद करवाया था। संजीव झा छेड़छाड़ मामले में ये छात्रायें पीड़ित छात्रा को न्याय दिलाने के लिये हुए आन्दोलन और संघर्ष का हिस्सा थीं। विश्वविद्यालय के छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रोफेसर अनिल अंकित राय की भूमिका इस पूरे मामले में पीड़ित छात्राओं के खिलाफ रही है।
छात्राओं का आरोप यह भी है कि कार्यकारी कुलसचिव प्रो. के.के.सिंह के अधिकार क्षेत्र में सिर्फ वित्तीय विभाग से सम्बंधित कार्य आता है, न कि विद्यार्थियों के विषय से सम्बंधित कोई निर्णय लेना। एक लम्बे समय से कुलसचिव का पद खाली होने की वजह से ये सभी कार्य कुलपति प्रो. गिरीश्वर मिश्र के अंतर्गत आता है, परन्तु यहाँ नियमों के विरूद्ध जाकर निलंबन का कार्य कुलसचिव के द्वारा किया गया।
इस मामले में क्या कहते हैं कुलसचिव के.के. सिंह
क्या बिना किसी जांच कमेटी बिठाए 5 छात्राओं का निष्कासन किया गया है?
एफआईआर के आधार पर निष्कासन नहीं छात्राओं को निलंबित किया गया है।
लेकिन एक एनसीआर भी हुई है दर्ज जिसमें सिर्फ ललिता है आरोपी, जबकि एफआईआर में 5 नाम शामिल हैं?
विश्वविद्यालय प्रशासन ने इसे अनुशासनहीनता माना और इसी आधार पर इनका निलंबन हुआ है निष्कासन नहीं।
क्या इस पर विश्वविद्यालय प्रशासन कोई जांच कमेटी बिठाएगा या बिठाई गई है?
नहीं, क्योंकि ये छात्र आपस में कोर्ट में मामला ले गए हैं। देखिए विश्वविद्यालय में किसी के खिलाफ अगर एफआईआर दर्ज होती है तो विश्वविद्यालय प्रशासन उसे अनुशासनहीनता मानते हुए निलंबित कर देता है। इससे पहले भी जिसका निलंबन हुआ है उस पर भी एफआईआर ही दर्ज हुई थी उसी को आधार माना गया था।
तो चेतन सिंह के खिलाफ भी तो एफआईआर दर्ज हुई थी?
चेतन सिंह पहले ही निलंबित चल रहे हैं विश्वविद्यालय से।
ललिता ने दोबारा भी तो चेतन सिंह के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई है?
ये विश्वविद्यालय प्रशासन को पता नहीं है, हमारे पास जो एफआईआर की कॉपी आई है और उसमें जिन—जिन बच्चों का नाम था उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए यह निलंबन किए गए हैं।
निलंबित लड़कियों का कहना है कि जिसने एफआईआर दर्ज करवाई है वह विश्वविद्यालय से संबंधित नहीं है तो कार्रवाई क्यों की गई?
असल में विश्वविद्यालय प्रशासन इसे देख रहा है। जब किसी के खिलाफ एफआईआर होती है तो एक्शन लिया जाता है। हालांकि छात्र—छात्राओं के आपसी विवादों को सुलझाने और शिकायत के लिए विश्वविद्यालय में एक फोरम बना हुआ है, अगर यहां शिकायत दर्ज की जाती है तो तथ्यपूर्ण जांच करके कार्रवाई की जाती है। इन लोगों का मामला विश्वविद्यालय में आया ही नहीं सीधे एफआईआर की कॉपी कॉलेज आई तो प्रशासन ने अनुशासनात्मक मानते हुए आरोपित छात्राओं को निलंबित किया।
आपके अधिकार क्षेत्र में सिर्फ वित्त विभाग आता है, तो क्या आपने नियमों के विरूद्ध जाकर यह कार्रवाई की?
रजिस्ट्रार ने इस मामले में कार्रवाई नहीं की है, विश्वविद्यालय प्रशासन ने की है।