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झारखंड

नेपाल में फंसे झारखंड के 50 मजदूर दो महीने से कर रहे हैं मिन्नतें, केंद्र व राज्य के बीच उलझा है घर वापसी का मामला

Nirmal kant
28 May 2020 1:04 PM GMT
नेपाल में फंसे झारखंड के 50 मजदूर दो महीने से कर रहे हैं मिन्नतें, केंद्र व राज्य के बीच उलझा है घर वापसी का मामला
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नेपाल में झारखंड के दुमका जिले के 50 मजदूर पिछले सवा दो महीने से जारी लाॅकडाउन में फंसे हुए हैं। वे भारत व अपने प्रदेश में वापसी के लिए लगातार झारखंड सरकार व नेपाल स्थित भारतीय दूतावास से गुहार लगा रहे हैं, लेकिन अबतक कोई ठोस पहल उन्हें होती नहीं दिख रही है...

दुमका से राहुल सिंह की ग्राउंड रिपोर्ट

जनज्वार ब्यूरो। नेपाल में झारखंड के दुमका जिले के 50 मजदूर लॉकडाउन में फंसे हैं। राज्य सरकार के अधिकारियों का कहना है कि एमएचए व एंबेसी की अनुमति का इंतजार है, जबकि मजदूरों का कहना है कि एंबेसी कह रहा है कि झारखंड से रिस्पांस नहीं मिल रहा है। केंद्र व राज्य के बीच उलझे मामले में 400 रुपये की दिहाड़ी करने वाले मजदूर दूसरे देश में फंसे हैं।

नेपाल में झारखंड के दुमका जिले के 50 मजदूर पिछले सवा दो महीने से जारी लाॅकडाउन में फंसे हुए हैं। वे भारत व अपने प्रदेश में वापसी के लिए लगातार झारखंड सरकार व नेपाल स्थित भारतीय दूतावास से गुहार लगा रहे हैं, लेकिन अबतक कोई ठोस पहल उन्हें होती नहीं दिख रही है। इन्होंने एक वीडियो बनाकर भी अपनी बात राज्य सरकार तक पहुंचाने का प्रयास किया है। इनमें से अधिकतर मजदूर दुमका के रामगढ प्रखंड क्षेत्र के हैं जो जामा विधानसभा क्षेत्र में पड़ता है। जामा विधानसभा क्षेत्र राज्य का हाइप्रोफाइल क्षेत्र है, जहां से झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरेन की बड़ी बहू व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन विधायक हैं।

न मजदूरों में श्रवण दास, धनंजय ठाकुर, संतु मंडल, पंकज दास, प्रेमचंद सिहरा, बजरंगी महतो, रसिक मरांडी, सोमलाल मुर्मू, रमेश मुर्मू, शिवलाल मुर्मू, कार्तिक मुर्मू, सुकल मरांडी सहित अन्य नाम शामिल हैं। 50 लोगोें में 18 एक ही गांव सिमरा के हैं। सिमरा रामगढ के कांजो पंचायत में पड़ता है।

ये मजदूर नेपाल के बागमती प्रांत के सिंधुपालचोक जिले के बारहबिसे नगपालिका क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले शोहले गांव में हैं। यह पहाड़ी और जंगल-झाड़ नुमा जगह है। मजदूरों ने बताया कि यहां बारिश काफी होती है और हमलोग कंस्ट्रक्शन साइट के पास ही तंबुओं में काम के दौरान रहा करते हैं। मजदूरों का कहना है कि नेपाल में भी लाॅकडाउन चल रहा है और काम बंद है। जब बारिश होती है तो तंबुओं में रहना मुश्किल होता है। गीली जमीन पर सोना पड़ता है।

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कंस्ट्रक्शन साइट के आसपास पहाड़ी गांव हैं। उन गांवों के अधिकतर लोग हिंदी नहीं जानते हैं, कुछ लोग हिंदी बोलते व समझते हैं, जिनसे वे मदद लेते हैं। इन लोगों की मदद नेपाल के नागरिक शंभु पौगिल नामक एक व्यक्ति कर रहे हैं। उन्होंने इन्हें इस मुश्किल हालात व बारिश में अपने घर में रहने की भी अनुमति दी है। मजदूरों ने जनज्वार संवाददाता से शंभु पौगिल की बात करवायी। उन्होंने बातचीत के क्रम में बताया कि ये लोग बहुत तकलीफ में हैं और अपना घर जाना चाहते हैं, अधिक संख्या होने के कारण इन बेचारों को बारिश में जमीन पर सोना पड़ रहा है। यह पूछने पर क्या आप इनसे किराया ले रहे हैं, शंभु पौगिल कहते हैं कि ये बेचारे परेशान हैं और हम इनसे किराया कैसे ले सकते हैं, हमलोग जितना हो पाता है मदद करते हैं।

क्या कहते हैं फंसे मजदूर?

नेपाल में फंसे इन मजदूरों ने बताया कि वे लोग यहां बिजली ट्रांसमिशन साइट में काम करते हैं, जिसके तहत टाॅवर लगाना होता है। मजदूरों के अनुसार, यह हाइड्रोपाॅवर परियोजना है जिसका काम एल एंड टी कंपनी के तहत हो रहा है। ऐसे टाॅवर खाली इलाके से, जंगल-पहाड़ से गुजरते हैं, इसलिए उन्हें काम के दौरान वैसी जगहों पर रहना पड़ता है। पिछले साल 22 अक्तूबर को ये वहां काम करने गए थे।

न श्रमिकों में से एक नारायण दास ने बताया कि वे लोग लगातार नेपाल स्थित भारतीय दूतावास के संपर्क में हैं। नारायण ने कहा कि बुधवार की रात में भी दूतावास से बात हुई तो बताया गया कि दो देशों का मामला है झारखंड सरकार से रिप्लाई नहीं मिला है, इसलिए अभी आपलोगों को इंतजार करना है। मजदूरों ने अपने वीडियो में भी यह बात कही है।

नका कहना है कि दूतावास के लोगों के पास अपना नाम, आधार नंबर आदि का ब्यौरा देकर हमलोगों ने एक सप्ताह पहले ही रजिस्ट्रेशन करवाया था। यह पूछने पर कि क्या उसकी कोई पावती मिली है, नारायण का कहना है कि सारा डिटेल हमलोगों ने फोन पर दिया था इसलिए हमारे पर उसकी कोई पावती नहीं है। उनके अनुसार, वे लोग जिस जगह फंसे हैं वहां से दूतावास 80 किमी की दूरी पर है और भारत की सीमा करीब 300-350 किमी की दूरी पर है।

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श्रमिकों का कहना है कि उत्तरप्रदेश व बिहार के श्रमिक बसों से जा रहे हैं। उनकी राज्य सरकारें इसके लिए प्रबंध कर रही हैं, हमलोग फंसे हुए हैं और बिहार सरकार भी हमें स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है, क्योंकि उनके खुद के प्रदेश के बहुत लोग हैं।

किसी के पिता की हो गयी मौत तो किसी की दादी चल बसीं

न 50 श्रमिकों में दो लोगों के परिजनों की मौत भी इस लाॅकडाउन के दौरान हो गयी। दुमका जिले के जरमुंडी प्रखंड के धावाटांड़ गांव के दामोदर राम के पिता की 15 दिन पहले मौत हो गयी। वहीं, रामगढ प्रखंड के सिमरा गांव के श्रवण दास की दादी की बुधवार रात्रि मौत हो गयी। घर नहीं पहुंच पाने के कारण ये दोनों अपने पिता व दादी का अंतिम दर्शन नहीं कर सके। दामोदर के पिता का तो श्राद्ध कर्म भी पूरा हो चुका है।

दुमका की डीसी व विधायक सीता सोरेन का क्या है कहना?

दुमका की डीसी राजेश्वरी बी ने इस मामले में जनज्वार से कहा कि हमने एंबेसी से परमिशन मांगा है और उनकी अनुमति का इंतजार कर रहे हैं, जैसे ही स्वीकृति मिलेगी हम बसों व अन्य माध्यमों से उन्हें लाएंगे। राजेश्वरी बी ने बताया कि हमने इस मामले में केंद्रीय गृह सचिव को भी पत्र लिखा है।

डीसी राजेश्वरी बी ने कहा कि मजदूरों में से किसी एक ने उन्हें हाल में फोन किया था और अपनी परेशानी बतायी तो हमने उन्हें कहा कि अगर मेरे लेटर से आपलोगों को आने की अनुमति मिल जाती है तो लिख कर दे देती हूं, लेकिन यह दो देशों के बीच का मामला है इसलिए यह गृह मंत्रालय व विदेश मंत्रालय के माध्यम से ही हो सकेगा।

हीं जामा विधानसभा क्षेत्र की विधायक सीता सोरेन ने इस मामले में जनज्वार से कहा कि हम उन मजदूरों को लाने का प्रयास कर रहे हैं और इस मामले में मेरी मुख्यमंत्री से भी बात हुई है, दो देशों का मामला होने के कारण थोड़ी दिक्कत आ रही है। प्रयास जारी है जैसे अनुमति मिलेगी वे यहां आ जाएंगे।

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