भाजपा शासित राज्यों द्वारा तमाम बड़े दावों के बाद भी बेरोजगारी की समस्या का विकराल होना और किसानों के उठान के लिए जमीनी स्तर पर कुछ नहीं करना भी रहा हार का बड़ा कारण...
बता रहे हैं वरिष्ठ लेखक महेंद्र पाण्डेय
देश के किसी भी राज्य यानी राजस्थान के एकलौते गाय मंत्री और मध्य प्रदेश के खुशी (हैप्पीनेस) मंत्री चुनाव हार गए। राजस्थान एकलौता ऐसा राज्य था जहाँ गाय मंत्री का पद था, और इन चुनावों में गाय मंत्री ओटाराम देवासी हार गए।
देवासी के कार्यकाल में गायें तो पता नहीं कितनी बचीं पर विभिन्न गौशालाओं में कभी बाढ़ के कारण, कभी भूख से तो कभी बिजली के झटके से गायें लगातार मरती रहीं। दूसरी तरफ कई लोगों को गौमांस के शक पर भीड़ ने जान से खुलेआम मार डाला।
इसी तरह मध्य प्रदेश में देश के एकलौते हैप्पीनेस मंत्री लाल सिंह आर्या थे, वो भी चुनाव हार गए। लाल सिंह पर मर्डर का केस भी चल रहा था। मध्य प्रदेश के लोग कितने हैप्पी हुए पता नहीं पर लाल सिंह खूब फलते फूलते रहे।
द गार्डियन में छपी एक दूसरी खबर की शुरुआत में कहा गया है, प्रधानमंत्री मोदी की पार्टी दो राज्यों में बुरी तरह से हार गयी और तीसरे राज्य में कांटे की टक्कर में पिछड़ गयी। ये परिणाम बताते हैं कि यह पार्टी भी हार सकती है, अजेय नहीं है। ये परिणाम इसलिए और भी गंभीर हैं क्योंकि लोकसभा के चुनाव में 6 महीने से भी कम का समय है।
मगर यदि परिणामों की गंभीरता से विवेचना करें तो स्पष्ट है कि इन राज्यों में जीत के बाद भी कांग्रेस का यह अंतिम पड़ाव नहीं है, उसे अभी लम्बा रास्ता तय करना है। उत्तर-पूर्व में कांग्रेस का एकलौता गढ़ मिजोरम, कांग्रेस के हाथ से फिसल चुका है। जल्दी से जल्दी कांग्रेस को विद्रोह के सुर दबाने पड़ेंगे।
जिन राज्यों में चुनाव जीता है, उसमें चुनावी घोषणाओं को जल्दी ही पूरा करना पड़ेगा, काम के परिणाम दिखाने पड़ेंगे और साथ ही पूरे देश में लोगों के बीच भी जाना होगा। पर, परिणाम के दो दिनों बाद भी इनमें से कुछ नजर नहीं आ रहा है।
राजस्थान में बीजेपी के वोट बैंक में 17 प्रतिशत की कमी हो गयी। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में यह कमी 12 प्रतिशत रही। प्रधानमंत्री की जीवनी लिखने वाले नीलोत्पल मुखोपाध्याय के अनुसार वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाओं में मोदी को सही में चुनौती मिलाने वाली है, क्योंकि उनकी पार्टी की हार हिन्दी बेल्ट के ह्रदय में हुई है, जो चुनाओं में हमेशा निर्णायक प्रभाव डालता है।
पिछले लोकसभा के चुनाओं में इस क्षेत्र की कुल 65 सीटों में से 62 पर बीजेपी विजयी हुई थी। इन राज्यों में बीजेपी की हार केवल राज्य सरकारों के निकम्मेपन के कारण नहीं हुए है, बल्कि लोगों का गुस्सा केंद्र सरकार के प्रति भी है।
इंडिपेंडेंट में प्रकाशित एक खबर में बीजेपी की हार के चार प्रमुख कारण बताये गए हैं। पहला कारण है, हिन्दू अतिवादी संगठनों की बढ़ती भूमिका, जो अपनी मर्जी से किसी की हत्या भी सरेआम का सकते हैं और सरकार आँखे बंद कर उन्हें उग्रवादी संगठनों के नक़्शे कदम पर चलने देती है।
सरकार की नीतियों के विरुद्ध आवाज उठाने वाले पत्रकारों और सामाजिक संगठनों को खुलेआम धमकियां देना, सरकार द्वारा देशद्रोही जैसा दंड देना और कई बार सरेआम उन्हें मार डालना भी एक बड़ा कारण है। इसके अतिरिक्त केंद्र और बीजेपी शासित राज्यों द्वारा तमाम बड़े दावों के बाद भी बेरोजगारी की समस्या का विकराल होना और किसानों के उठान के लिए जमीनी स्तर पर कुछ नहीं करना भी हार का बड़ा कारण है।
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में ग्रामीण आबादी अधिक है और जानकारों के अनुसार राज्य और केंद्र सरकारों की किसी भी योजना का लाभ गाँव तक नहीं पहुँच रहा है। इन क्षेत्रों में बेरोजगारी की समस्या विकराल स्वरूप धारण कर चुकी है और किसान बेबस और लाचार हैं।
केंद्र और राज्य सरकारें जनता के बीच जाकर बड़ी घोषणाएं तो करती रही हैं, पर नतीजा कहीं दिख नहीं रहा है। देश की 1.25 अरब आबादी में से 55 प्रतिशत से अधिक कृषि से प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर जुड़ी है। यह आबादी इस समय देश की सबसे प्रताड़ित आबादी है। पिछले दो वर्षों में जितने भी बड़े आन्दोलन किये गए हैं, सभी किसानों ने ही किये हैं।
राज्य सरकारों पर लोगों का गुस्सा, बेरोजगारी और किसानों की समस्या के बाद भी कांग्रेस की जीत बहुत महान नहीं है। ऐसे में निश्चित तौर पर कांग्रेस को बहुत मेह्नत करनी पड़ेगी, पर वह मेहनत जमीनी स्तर पर कोई करतब नहीं दिखा रही है। विपक्ष की एकता भी अभी तक मंत्रणा के दौर से बाहर नहीं निकल पायी है।
राहुल गांधी अकेले अपने बूते पर लोकसभा चुनावों में बहुत अच्छा प्रदर्शन दिखा पायेंगे, यह भले ही आने वाला समय बताये पर आज की हालत निराशाजनक है। दूसरी तरफ बीजेपी कैडर-आधारित पार्टी है, सोशल मीडिया में गलत सूचनाओं का अम्बार लगाने में सिद्धहस्त है, इसीलिए इस पार्टी को चूका हुआ समझना भारी भूल होगी।
हालांकि द गार्डियन, बीबीसी और इंडिपेंडेंट, तीनों ने अपनी खबरों में बताया है कि बीजेपी भले ही हार गयी हो, पर नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आयी है।