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न्यायालयों में परिवारवाद इतना ज्यादा कि जज को लिखनी पड़ी प्रधानमंत्री को चिट्ठी

Prema Negi
3 July 2019 2:11 PM GMT
न्यायालयों में परिवारवाद इतना ज्यादा कि जज को लिखनी पड़ी प्रधानमंत्री को चिट्ठी
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जजों की नियुक्ति में परिवारवाद का आरोप लगा न्यायपालिका को कटघरे में खड़ा किया जस्टिस रंगनाथ ने, कहा जजों की नियुक्ति का मुख्य आधार जजों की पैरवी और उनका पसंदीदा होना है...

जनज्वार। इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस रंगनाथ पांडेय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर जजों की नियुक्तियों को कटघरे में खड़ा कर दिया है। साथ ही न्यायपालिका की गरिमा पर भी सवालिया निशान लगाये हैं।

न्होंने प्रधानमंत्री मोदी के नाम लिखे पत्र में कहा है कि हमारे देश में जजों की नियुक्ति का कोई निश्चित मापदंड फॉलो नहीं किया जाता है, बल्कि प्रचलित कसौटी सिर्फ परिवारवाद और जातिवाद और भाई—भतीजावाद ही है।

स्टिस रंगनाथ पांडेय ने लिखा है कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों का चयन बंद कमरों में चाय की दावत के साथ किया जाता है, जिसका मुख्य आधार जजों की पैरवी और उनका पसंदीदा होना है। वो लिखते हैं, 'पिछले दिनों माननीय सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीशों का विवाद बंद कमरों से सार्वजनिक होने का प्रकरण हो, हितों के टकराव का विषय हो अथवा सुनने की बजाय चुनने के अधिकार का विषय हो, न्यायपालिका की गुणवत्ता और अक्षुण्णता लगातार संकट में पड़ने की स्थिति रहती है। आपके स्वयं के प्रकरण में री-ट्रायल का आदेश सभी के लिए अचंभित करने जैसा रहा।'

प्रधानमंत्री के नाम लिखे पत्र में जस्टिस रंगनाथ पांडेय कहते हैं, 'महोदय क्योंकि मैं स्वयं बेहद साधारण पृष्ठभूमि से अपने परिश्रम और निष्ठा के आधार पर प्रतियोगी परीक्षा में चयनित होकर न्यायाधीश और अब उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त हुआ हूं, अतः आपसे अनुरोध करता हूं कि उपरोक्त विषय को विचार करते हुए आवश्यकता अनुसार न्याय संगत तथा कठोर निर्णल लेकर न्यायपालिका की गरिमा पुनर्स्थापित करने का प्रयास करेंगे, जिससे किसी दिन हम यह सुनकर संतुष्ट होंगे कि एक साधारण पृष्ठभूमि से आया हुआ व्यक्ति अपनी योग्यता परिश्रम और निष्ठा के कारण भारत का मुख्य न्यायाधीश बन पाया।'

स्टिस पांडेय ने लिखा है, '34 साल के सेवाकाल में उन्हें कई बार हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों को देखने का अवसर मिला। उनका विधिक ज्ञान संतोषजनक नहीं है। जब सरकार द्वारा राष्ट्रीय न्यायिक चयन आयोग की स्थापना का प्रयास किया गया तो सुप्रीम कोर्ट ने इसे अपने अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप मानते हुए असंवैधानिक घोषित कर दिया था।'

स्टिस पांडेय ने पिछले 20 साल में हुए सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के विवाद और अन्य मामलों का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री मोदी से आग्रह किया है कि न्यायपालिका की गरिमा को पुर्नस्थापित करने के लिए न्यायसंगत और कठोर निर्णय लिए जाएं।

न्यायपालिका में फैले भाई-भतीजावाद को जस्टीफाई करते हुए जस्टिस पांडेय लिखते हैं, 'कई न्यायाधीशों के पास सामान्य विधिक ज्ञान तक नहीं है। कई अधिवक्ताओं के पास न्याय प्रक्रिया की संतोषजनक जानकारी तक नहीं। कॉलेजियम के सदस्यों के पसंदीदा होने की योग्यता के आधार पर न्यायाधीश नियुक्त कर दिए जाते हैं। यह स्थिति बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों का चयन बंद कमरों में चाय की दावत पर वरिष्ठ न्यायाधीशों की पैरवी और पसंदीदा होने के आधार पर हो रहा है। इस प्रक्रिया में गोपनीयता का ध्यान रखा जाता है। प्रक्रिया को गुप्त रखने की परंपरा पारदर्शिता के सिद्धांत को झूठा करने जैसी है।'

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