गुजरात में एक गरबा ऐसा जो मुस्लिम बिरादरों के बिना नहीं होता शुरू
कट्टरवादी धार्मिक संगठनों के मुंह पर तमाचा मार 45 साल से हिंदू-मुस्लिम एकता के साथ नवरात्रि का किया जा रहा आयोजन, पिछली चार पीढ़ियों से कई मुस्लिम परिवार दे रहे हैं कच्छ जिले के भुज की नवरात्रि में अपनी सेवायें...
गुजरात के कच्छ से दत्तेश दतेश भावसार की रिपोर्ट
जनज्वार। गुजरात के कच्छ जिले में भुज शहर में एक नवरात्रि ऐसी होती है, जिसकी शुरुआत बिना मुस्लिमों के हो ही नहीं सकती। भुज शहर के वोकला फलिया गरबी मित्र मंडल में पिछले 45 साल से लगातार नवरात्रि आयोजित की जाती है। इस नवरात्रि के आयोजन में बहुत से मुस्लिम परिवार तन, मन व धन से अपना भरपूर योगदान देते हैं।
वोकला फलिया की नवरात्रि में खलीफा, बायड़, मेमन, तारवनी, भट्टी, पठान, जमादार, धोबी जैसे कई मुस्लिम परिवारों के सहयोग से नवरात्रि का आयोजन होता आ रहा है। वोकला फलिया गरबी मित्र मंडल के लगभग 175 सदस्यों में से 20-25 मुस्लिम सदस्य हैं।
हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल कायम करती इस नवरात्रि की शुरुआत मां आशापुरा की स्थापना से होती है। मां की स्थापना में माता के गरबे और दीपक कुम्हार परिवारों द्वारा बनाये गये गरबों और दीयों से होती है। मुस्लिम कुम्हारों द्वारा तैयार किए गए गरबों में मां के नाम की ज्योति जलायी जाती है।
नवरात्रि के पंडाल के श्रृंगार की जिम्मेदारी स्वर्गीय हुसैन खलीफा का परिवार निभाता आ रहा है। अब इस नवरात्रि पंडाल में स्वर्गीय हुसैन खलीफा की चौथी पीढ़ी अपनी सेवाएं दे रही है। 2001 के भयानक भूकंप में हुसैन खलीफा, उनके पुत्र लतीफ खलीफा और पौत्र की दुखद मौत हो गयी थी, बावजूद इसके खलीफा परिवार 45 सालों से नवरात्रि में जिम्मेदारियों का निर्वहन बिना शिकवा-शिकायतों के करते आ रहा है।
सिद्धीक बायड परिवार भी पिछले 45 सालों से लगातार नवरात्रि में अपनी जिम्मेदारियां निभा रहा है। यह परिवार ट्रांसपोर्ट उद्योग से जुड़ा है, जिस कारण ट्रांसपोर्टेशन की पूरी जिम्मेदारी बायर्ड परिवार पर होती है। खास बात यह है कि इसी जगह गणपति पूजन का भी आयोजन होता है। जब गणपति विसर्जन भुज से 50 किलोमीटर दूर मांडवी के दरिया में होता है, तब गणपति जी का वाहन सिद्दीक बायर्ड जो कि हाजी हैं, वह चलाते हैं।
प्रतीकात्मक फोटो
पूरी दुनिया में गणपति जी का वाहन मूषक होता है, लेकिन भुज के गणपति विसर्जन में सिद्दीक भाई उनके वाहन बनकर हिंदू भाइयों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपना योगदान देते हैं।
नवरात्रियों में अली भाई धोबी, अब्दुल्ला धोबी और रमजान धोबी और उनका पूरा परिवार 40 साल से अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इनके साथ गनी भाई मेमन, रफीक भाई मेमन, अमन मेमन भी सारे कार्यकर्ताओं के साथ उत्सव में शामिल होते हैं और सारे कार्य करते हैं। नवरात्रि पंडाल में राशिद खान पठान, रजाक भाई जमादार और उनके परिवार जनों की तरफ से चित्र व पेंटिंग बनाकर मां नव दुर्गा के पंडाल को आकर्षित बनाया जाता है।
यहां हर रोज छोटी बालिकाओं के गरबे होते हैं, इनमें भी कई छोटी बच्चियां मुस्लिम परिवार की होती हैं और वह हिंदू बालिकाओं के साथ गरबों का आनंद लेकर पूरे उत्साह से नवरात्रि मनाती हैं।
हर जगह की तरह यहां भी नवरात्रि में डांडिया रास का बहुत बड़ा आयोजन होता है, जिसमें सारे साजिंदे मुस्लिम परिवारों में से ही आते हैं। गुजरात के इस हिस्से में खास लंगा जाति के लोग संगीत के साथ जुड़े हुए होते हैं तथा अन्य मुस्लिम परिवार भी संगीत के साथ जुड़े होते हैं। उनमें से मुख्य तौर पर कीबोर्ड बजाने वाले अब्दुल गफूर युसूफ भट्टी हैं, जोकि 1979 से नवरात्रियों में कीबोर्ड बजा रहे हैं तथा अन्य आयोजनों में भी अपना योगदान देते हैं। अब्दुल गफूर युसूफ भट्टी जोकि ए वाय भट्टी के नाम से जाने जाते हैं, पॉलिफोनिक ऑर्केस्ट्रा के संस्थापक हैं।
नवरात्र आयोजन में कीबोर्ड पर अब्दुल गफूर युसूफ भट्टी
इस नवरात्रि में पारंपरिक तौर पर नगाड़े यानी की नौबत वादन होता है। नौबत वादन में यहां तलत महमूद उस्मान गनी तारवानी प्रमुख हैं, जो कि पिछले 42 साल से यहां पर नौबत वादन कर रहे हैं। अब उनकी उम्र 56 साल हो चुके हैं, इन्होंने 14 साल की छोटी उम्र से ही नौबत वादन से यहां के लोगों का मन मोहना शुरू कर दिया था।
नवरात्रियों में ढोलक बजाने की जिम्मेदारी आबिद रमजान ईशानी की होती है। पिछले 28 साल से आबिद भाई यहां ढोलक बजाते हैं। इनके अलावा छोटे अंतराल के लिए इरशाद धाफरानी और अल्ताफ धाफरानी ने भी अपनी सेवाएं नवरात्रियों में दीं।
इस नवरात्रि पंडाल के प्रमुख एडवोकेट आरएम ठक्कर से हुई बातचीत में नवरात्रि का पूरा इतिहास जानने का मौका मिला। आरएम ठक्कर कहते हैं, 'पिछले 45 साल से हो रहे इस नवरात्रि मंडल में शुरुआत से आज के दिन तक कई मुस्लिम परिवारों ने अपनी सेवाएं दी हैं। यह कट्टरवादी सोच रखने वाले लोगों के मुंह पर करारा तमाचा है। यहां पर पिछले 50 सालों से हिंदू-मुस्लिम साथ मिलकर सभी उत्सवों का आयोजन करते हैं। होली हो या ईद, नवरात्रि हो या गणपति विसर्जन, दिवाली सभी आयोजनों में कंधे से कंधा मिलाकर हिंदू और मुस्लिम परिवार एक साथ सारे त्यौहार मनाते हैं।
इस बार की नवरात्रि में राशिद खान पठान, रजाक भाई जमादार जैसे कई उम्दा पेंटरों ने नव दुर्गा के पंडाल में पेंटिंग करके अपनी सेवाएं दी हैं।
हिंदू-मुस्लिम की एकता की मिसाल ऐसे आयोजनों के बारे में आरएम ठक्कर कहते हैं, आज ज्यादातर जगह कट्टरवादी सोच के कारण नवरात्रि उत्सव में मुस्लिम परिवारों को आने से रोका जाता है, जिसका मूल कारण कुछ खास संगठनों की कट्टरवादी सोच है, मगर हमारे यहां तो पिछले 50 साल से हिंदू-मुस्लिम साथ मिलकर हर त्यौहार मनाते आ रहे हैं।'
हिंदू-मुस्लिम एकता का यह सौहार्दपूर्ण वातावरण तब भी कायम रहा जबकि गोधरा कांड की आग में पूरा गुजरात जल रहा था। तब भी यहां के हिंदुओं ने मुस्लिम परिवारों को कई-कई दिनों तक अपने घरों में रखा था।