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शिक्षा

गुरु पूर्णिमा : पाखंड और अज्ञान का उत्सव!

Janjwar Team
10 July 2017 5:44 PM GMT
गुरु पूर्णिमा : पाखंड और अज्ञान का उत्सव!
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यदि आपको विद्वता व ज्ञान ही पूजना होता है तो यह बताओ कि पिछले सत्तर बरसों में कोई वैज्ञानिक व तकनीकवेत्ता को क्यों नहीं पूजा? दुनिया में इसरो व जीआरडीओ या आईसीएआर के वैज्ञानिक तो कभी नहीं पूजे गये...

रमा शंकर सिंह

पिछले पांच—छह सौ साल के आधुनिक विज्ञान टेक्नोलॉजी के ज्ञान, खोज और व्यवहार को ही ले लें जिसके बगैर अब हमारा आपका जीवन संभव नहीं लगता तो यह सब दुनिया के उस हिस्से और समाज से आया है जहॉं कोई शिष्य कभी भी गुरु पूर्णिमा जैसा कोई उत्सव या कर्मकांड नहीं करता। उनके लिये पाँव धोकर चरणामृत लेना अकल्पनीय घृणास्पद व अमानवीय है।

गुरु या शिक्षक की स्थापित मान्यता को अपनी वैज्ञानिक खोज से तोड़ना—खंडित करना ही गुरु व शिष्य दोनों की गुरुतर सफलता माना जाता है। गुरु पूर्णिमा के इस देश में आखिरकार ज्ञान विज्ञान तकनीक की शोध नगण्य सबसे कम क्यों हुई है? गुरु पूर्णिमा और इस स्थिति में कोई संबंध दिखता नज़र आ रहा है?

गुरु पूर्णिमा के दिन कैसे कैसे अज्ञान, अंधविश्वास के प्रतीक निठल्ले, अपराधी भी पूजे जाते हैं। वे भी पूजे जा रहे हैं जिन पर बलात्कार हत्या जैसे घृणित अपराध के केस चल रहे हैं। उत्सव में और ज्ञान की प्रतीकात्मकता में कोई रिश्ता क्यों नहीं है? इसी देश में आजकल गुरुपूर्णिमा दिवस के अतिरिक्त शिक्षक व शिष्य में इतना सम्मान का रिश्ता क्यों नहीं बचा? इसका कारण क्या है?

जब तक यह देश समाज अपनी फ़र्ज़ी सांकेतिकता, प्रतीकात्मकता में फँसा रहेगा तब तक वास्तविक ज्ञानचक्षु खुल पायेंगे, इसमें भारी संदेह है? गुरु अपनी पूजा करवाता ही क्यों है? उसकी आवश्यकता ही क्या है? गुरु को तो ज्ञान—विज्ञान प्रज्ञान क्षेत्र में अपनी योग्यता की असलियत आंतरिक रूप से पता ही होगी, फिर वह पूजा के लिये उद्यत क्यों हो जाता है?

आज जब आप सब पूजा से फ़ुरसत पा गए हों तो निरपेक्ष भाव से सोचना कि वास्तव में गुरुपूर्णिमा के असली गहरे रहस्य और पिछले इतने सौ बरसों के दुनिया के सबसे अज्ञानी, मुढ़, असभ्य, अशिक्षित व ग़ुलाम रहे समाज के बीच संबंध क्या है? शायद चक्षु खुल जायें, पर संभावना कम ही है क्योंकि सैंकड़ों बरसों का संस्कार गहरे पैठ कर गया है और इसीलिये हम मात्र पॉंव पखारेंगे और हमारे हिस्से कुछ नहीं आयेगा यानि सनातन पिछड़ापन।

कर्मकांड स्वयं अकर्मण्यता का बड़ा प्रतीक है! बुरा लगा ना? यही निशानी है उसकी जो मैं कह रहा हूँ! सोचना कम और प्रतिक्रिया ज़्यादा। अब बस थोड़ा सा और जान लीजिये... यदि आपको विद्वता व ज्ञान ही पूजना होता है तो यह बताओ कि पिछले सत्तर बरसों में कोई वैज्ञानिक व तकनीकवेत्ता को क्यों नहीं पूजा? दुनिया में इसरो व जीआरडीओ या आईसीएआर के वैज्ञानिक तो कभी नहीं पूजे गये?

होमी जहांगीर भाभा, सतीश धवन, विक्रम साराभाई, पीसी रे,जेसी बोस, चंद्रशेखर, रामानुजम, हरगोविंद खुराना, सीवी रमन आदि यहॉं तक कि एपीजे अब्दुल कलाम के पाँव किस किस ने गुरुपूर्णिमा पर पखारे और चरणामृत लिया? जबकि सम्मान हम इन सबका अत्यधिक करते हैं। और उनकी उपलब्धियों तक को भुनाने में पीछे नहीं रहते, यहॉं तक कि हिंदुस्तान के तत्कालीन सम्राट औरंगज़ेब के नाम की सड़क भी हम मिटाकर कलाम के नाम पर रख लेते हैं।

जान बचाने वाले किस महान मेडिकल डॉक्टर को उनके मरीज़ों ने गुरुपूर्णिमा पर याद किया है? महात्मा गांधी जैसे सर्वकालीन सर्वदेशीय भारतीय अस्मिता के वंदनीय व्यक्ति तो मार दिये जाते रहे हैं! जीवित भारतीय युवा नोबेल विजेता रामकृष्णन् आपकी विज्ञान कांग्रेस का बहिष्कार कर कभी न आने का ऐलान कर देता है क्योंकि विज्ञान को भी आप कथाओं, आस्थाओं व माइथोलॉजी से जोड़कर समाप्त करने पर तुले हो।

गुरुपूर्णिमा पर पूजे जाने वाले 98 फीसदी गुरुओं की सामाजिक पृष्ठभूमि पर गौर करेंगे तो पोल खुलेगी कि यह दरअसल चीज़ क्या है और क्यों बनाया व सांस्कारिक किया गया है? ये गुरु लोग इन पदों पर जन्मजात अधिकार से बैठे हैं किसी प्रामाणिक योग्यता के कारण नहीं।

सारे प्रतीक, कर्मकांड भारत में जाति व्यवस्था को पुष्ट करने के लिये बनाये गये। बाह्य उद्देश्य कुछ और लक्ष्य संधान कुछ। अब वे लोग जो इस कथित अच्छे संस्कार को बनाये रखना चाहते हैं वे सप्रयास सिर्फ उन्हें ही पूजना शुरू करें जिनसे इस लोक का असली ज्ञान, विज्ञान, जानकारी, सत्यसंधान, सिद्धांत व आदर्श मूल्ययुक्त व्यवहार की सीख लेते हैं। करके देखें तो स्वत: परतें खुलने लगेंगी और जैसे इसके बाद सारा गुरुडम गुरुसंप्रदाय मुझे विधर्मी ठहरायेगा वैसे ही लांछनों के लिये आप भी तैयार रहना।

आख़िरी बात, देखते रहियेगा कि कौन कौन गरियायेगा? फिर बहस संवाद चर्चा नहीं, संस्कार समाज के नाम पर आरोप, लांछन, गाली, गलौज या जो भी, पर चर्चा नहीं।

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