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यूपी पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह हत्याकांड और बुलंदशहर हिंसा के पूरे मामले में अब तक जिस तरह की कार्रवाई कर रही है उससे एकदम स्पष्ट है कि हत्यारा योगी सरकार के संरक्षण में है...
सुशील मानव की रिपोर्ट
जनज्वार। इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या का मुख्य आरोपी और बजरंग दल का जिला संयोजक योगेश राज पुलिस की गिरफ्त से दूर है। यूपी पुलिस जिस तरह की अब तक पूरे मामले में कार्रवाई कर रही है उससे एकदम स्पष्ट है कि हत्यारा सत्ता के संरक्षण में है।
गौरतलब है कि योगेश राज जोकि पूरे मामले का मुख्य अभियुक्त है उसको पकड़ने के बजाय यूपी पुलिस उसकी गोकशी की एफआईआर पर कार्रवाई करते हुए फर्जी गिरफ्तारियाँ कर करके मुस्लिम संप्रदाय के युवकों को जेल में ठूंस रही है, जबकि तमाम वीडियो फुटेज से स्पष्ट है कि बुलंदशहर उपद्रव का मुख्य आरोपी योगेश राज ने ही हत्या भी की है।
गोकशी के मामले में पुलिस की ओर से की गई गिरफ्तारियों पर न सिर्फ कई गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं, बल्कि किसी नई साजिश की ओर भी इशारा कर रहे हैं। पुलिस ने इस गोकशी मामले में दो ऐसे लोगों को गिरफ्तार किया है, जिनका नाम तक एफआईआर में दर्ज नहीं है! जबकि गोकशी की घटना भी प्रयोजित साजिश का हिस्सा लग रही है।
पुलिस ने एफआईआर में नाम न दर्ज होने के बावजूद जिन दो युवकों को गिरफ्तार किया है, उनमें घड़ियों की मरम्मत करने वाले 24 साल के आसिफ और मजदूरी करने वाले बन्ने ख़ान का नाम भी शामिल है। साजिद के परिवार ने बताया कि शादी करीब चार साल पहले वो मुंबई शिफ्ट हो गया था। उसका गांव घटनास्थल से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
साजिद की सास का कहना है कि 'इज्तिमा में शामिल होने के बाद वह घर आया था, तभी पुलिस वहां पहुंची और उसने साजिद को उठाकर अपने साथ ले गई। पुलिसवाले उसका नाम तक नहीं जानते थे, किसी और ने बताया कि वह आसिफ है।'
पुलिस ने एफआईआर में दर्ज साजिद अली नाम के एक दूसरे युवक को भी गिरफ्तार किया है। साजिद अली गांव में नहीं रहता। चाय बेचनेवाले उसके चाचा शब्बीर ने बताया, 'साजिद 12 साल पहले फरीदाबाद चला गया था।' और फरीदाबाद में ही साजिद कई सालों से सिगरेट बेचकर अपना गुजारा करता है। वह इज्तिमा में आया था, लेकिन गांव नहीं आया।
गाँव वो आखिर करीब तीन महीने पहले गया था, जब उसकी दादी का निधन हुआ था। गौरतलब है कि गोकशी के मामले में बुधवार 5 दिसंबर को पुलिस ने चार लोगों को गिरफ्तार किया। गारमेंट का काम करने वाले सरफुद्दीन का नाम एफआईआर में था, जबकि सरफुद्दीन के परिवार का दावा है कि जिस दिन गांव में गोवंश के अवशेष मिले थे, उस दिन सरफुद्दीन गाँव से 40 किलोमीटर दूर हुए इज्तिमा में शामिल था।
सरफुद्दीन के भाई मोहम्मद हुसैन का कहना है, 'वह उस दिन इज्तिमा में थे और उनकी पार्किंग में ड्यूटी लगी हुई थी। मेरे पास पुख्ता सबूत हैं कि वह उस दिन वहां नहीं था। उस दिन की उसकी जीपीएस लोकेशन ट्रैक की जा सकती है और यह जांचा जा सकता है कि वह उस दिन महाव गाँव में थे या नहीं।'
बन्ने ख़ान घटनास्थल से 65 किलोमीटर दूर रहते हैं, जबकि उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस ने जब उसे उठाया तो वो प्रधान के घर पर काम खत्म करके सो रहा था। बन्ने खान के सात बच्चे हैं और वो परिवार में अकेला कमाने वाला है।
यूपी पुलिस के सीनियर अधिकारियों ने बताया कि सरफुद्दीन और साजिद को इसलिए गिरफ्तार किया गया, क्योंकि उनका नाम एफआईआर में था, लेकिन पुलिस ने बन्ने खान और आसिफ़ ख़ान की गिरफ्तारी क्यों की, जबकि उनका नाम एफआईआर में भी नहीं था? इस सवाल का जवाब पुलिस अधिकारी नहीं दे पाये।
पूरे घटनाक्रम में यूपी पुलिस की भूमिका शुरू से ही बेहद संदिग्ध रही है। पहले अपने इंस्पेक्टर को मौत के मुँह में अकेला छोड़कर सभी पुलिसकर्मियों का भाग जाना और फिर अब मुख्य अभियुक्त को पकड़ने के बजाय केस को दूसरी दिशा में मोड़कर निर्दोष मुस्लिम युवकों को गिरफ्तार करना एक नए हाशिमपुरा कांड की ओर इशारा कर रहा है।
ट्वीटर पर फेक और भड़काऊ कंटेट डालकर बुलंदशहर हिंसा भड़काने वाले सुदर्शन चैनल के मालिक सुरेश चव्हाण के खिलाफ़ भी पुलिस ने अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की है।