5 हजार लोगों को रोजगार देने वाला उत्तराखंड का डेल्टा कारखाना बंदी के कगार पर
डेल्टा कारखाना हुआ बंद तो लगभग 5 हजार मजदूर हो जाएंगे बेरोजगार, प्रबंधन मजदूरों से स्वैच्छिक रूप से काम छोड़ने के फार्म पर हस्ताक्षर कराकर दे रहा है बकाया भुगतान...
रामनगर से सलीम मलिक की रिपोर्ट
जनज्वार, रामनगर। पहले से ही रोजगार के अभाव में पलायन की मार झेल रहे उत्तराखण्ड के युवाओं के लिये एक बुरी खबर सामने आ रही है। नोटबंदी व जीएसटी सहित कई कारणों से पांच हजार से अधिक लोगों को रोजगार मुहैया कराने वाला डेल्टा कारखाना मंदी की मार झेल रहा है।
यूं तो यह फैक्ट्री बीते एक साल से मंदी की चपेट में है लेकिन प्रबंधन की ओर से जिस प्रकार से श्रमिकों के बकाये का भुगतान किया जा रहा है, उससे इस कारखाने पर स्थाई ताला लगने की चर्चा जोरों पर है। अलबत्ता कारखाना स्वामी ने कारखाना बंद होने की आशंका से इंकार किया है।
यहां बताना जरूरी होगा कि नैनीताल-उधमसिंहनगर जनपद की सीमा हल्दुआ में विद्युत उपकरण ‘सीएफएल’ बनाने वाले कारखाने ‘डेल्टा इलेक्ट्रोनिक्स’ की स्थापना अठारह वर्ष पूर्व वर्ष 2000 में हुई थी। कुछ ही दिन बाद कारखाने का उत्पादन इतना बढ़ा कि देखते ही देखते इस कारखाने में काम करने वाले श्रमिकों की संख्या पांच हजार के पार पहुंच गई।
तीन पालियों में चलने वाले इस कारखाने से रामनगर, काशीपुर, जसपुर, बाजपुर शहरों के हजारों लोगों को रोजगार मिला हुआ था। विद्युत उपकरणों की भारी मांग के चलते कारखाना प्रबंधन ने हल्दुआ में दूसरी यूनिट आरम्भ करने के साथ ही कालाढूंगी के नया गांव व बाजपुर में भी विद्युत उपकरणों का निर्माण शुरू कर क्षेत्र के सैकड़ों और लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया था।
लेकिन बीते नोटबंदी के बाद से कम्पनी की स्थिति कुछ कमजोर बताई जा रही थी, जिसका पहला प्रभाव तब दिखाई दिया जब कारखाने की ओर से श्रमिकों को लाने व ले जाने वाली बसों का किराया कम्पनी ने श्रमिकों से वसूलना शुरू कर दिया। लेकिन इसके बाद भी कम्पनी में उत्पादन बदस्तूर चलता रहा, अलबत्ता श्रमिकों के बोनस व कारखाने में मिलने वाली कुछ सुविधाओं आदि में कटौती कर दी गई।
कुछ दिन पूर्व कम्पनी ने अपने कालाढूंगी व बाजपुुर के प्लांट बंद कर दिये। साथ ही हल्दुआ कारखाने में भी विद्युत उपकरणों का उत्पादन कम हो गया। बताया जा रहा है कि सीएफएल के बाद एलईडी के बदले दौर में कारखाने के पास सीएफएल विद्युत उपकरणों की वह मांग नहीं है, जितने उत्पादन की उसकी क्षमता है।
कारखाने का उत्पादन गिरने के कारण श्रमिकों में कारखाना बंद होने की सुगबुगाहट होने लगी है। श्रमिकों में आम चर्चा है कि कारखाना प्रबंधन हल्दुआ कारखाने में रखे गये स्टाक को निकालकर कारखाने को बंद करने की मन बना चुका है। इन बातों को इसलिये भी बल मिल रहा है कि प्रबंधन ने कारखाने में कार्यरत श्रमिकों के बकाये का पूरा भुगतान करना शुरू कर दिया है।
अधिकांश श्रमिकों के बकाये का भुगतान कम्पनी द्वारा कर दिया गया है, जबकि करीब ढाई सौ लोगों के वेतन आदि का भुगतान बुधवार 1 अगस्त को किया जाना प्रस्तावित है। श्रमिकों का कहना है कि भुगतान से पूर्व उनसे स्वैच्छिक रूप से काम छोड़ने के फार्म पर हस्ताक्षर कराकर उनके बकाया का भुगतान किया जा रहा है।
कुछ श्रमिकों ने दबी जुबान में बताया कि 1 अगस्त से कारखाने को औपचारिक रूप से बंद कर दिया जायेगा। कारखाना बंद होने से चिंतित क्षेत्र के तमाम लोगों ने राज्य सरकार से इस कारखाने को बंद होने से बचाने की अपील करते हुये हस्तक्षेप की मांग की है। अलबत्ता इस मामले में कारखाना स्वामी कपिल गुप्ता ने इस संवाददाता से दूरभाष पर बात करते हुये कारखाने में उत्पादन कम होने की बात स्वीकारते हुये इसे मांग व पूर्ति की समस्या बताया।
उन्होंने कारखाना बंद करने की सम्भावनाओं से इंकार करते हुये कहा कि रुटीन के तौर पर ही श्रमिकों को उनके बकाये का भुगतान किया जा रहा है। बहरहाल कारखाना स्वामी का दावा कितना ठीक है यह तो नहीं पता, लेकिन कारखाने में काम करने वाले क्षेत्र के हजारों लोगों के चेहरे पर उड़ रहीं हवाइयां उनके बेरोजगार होने की चुगली कर रही हैं।
यदि कारखाना बंद हुआ तो निश्चित रुप से पूरे क्षेत्र में हजारों लोग बेरोजगार होेंगे, जिसका असर उनके परिवारों पर भी पड़ेगा। इस बाबत जब स्थानीय विधायक दीवान सिंह बिष्ट से बात की गई तो उन्होंने बताया कि क्षेत्र में कारखाना बंद होने की सूचना की अभी पुष्टि नहीं हो पाई है। कारखाना प्रबंधन के साथ बात कर उनकी समस्या के बारे में जाना जायेगा तथा इसके साथ ही उनकी समस्या का समाधान शासन स्तर पर निकालकर युवाओं के रोजगार के रक्षा की जायेगी। डेल्टा फैक्ट्री से हजारों लोगों का रोजगार जुड़ा हुआ है, इसे बंद नहीं होने दिया जायेगा।
यहां यह जिक्र करना जरूरी है कि क्षेत्र के अल्मोड़ा-नैनीताल जनपद की सीमा पर स्थित आयुर्वेदिक व यूनानी दवाइयां बनाने वाली मिनी भारत रत्न की श्रेणी में शामिल इन्डियन मेडिकल फार्मास्यूटिकल कारपोरेशन लिमिटेड को भी निजी हाथों में दिये जाने की प्रक्रिया चल रही है। आईएमपीसीएल नामक इस कारखाने में भी सैकड़ों लोग रोजगार से लगे हैं, जिन्हें अपने रोजगार छीनने की आशंका सता रही है। ऐसे में आईएमपीसीएल के बाद डेल्टा फैक्ट्री बंद होने का मतलब हजारों परिवारों के चूल्हे बुझने सरीखा होगा।