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समाज

पुलिस हिरासत में मौत मामले में 8 पुलिसकर्मियों पर हिरासत में थर्डडिग्री टॉर्चर के साथ अप्राकृतिक यौनाचार का आरोप

Prema Negi
25 Dec 2019 3:43 AM GMT
पुलिस हिरासत में मौत मामले में 8 पुलिसकर्मियों पर हिरासत में थर्डडिग्री टॉर्चर के साथ अप्राकृतिक यौनाचार का आरोप
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चोरी के आरोपी वाल्डारिस और अन्य तीन को मुंबई पुलिस ने 3 दिन तक न केवल प्रताड़ित किया, बल्कि एक-दूसरे के साथ ओरल सेक्स करने के लिए मजबूर किया, 18 अप्रैल को वाल्डारिस की मृत्यु हो गई, जबकि अन्य 22 अप्रैल को जमानत पर रिहा हो गए...

जेपी सिंह की रिपोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने वडाला रेलवे पुलिस से 8 पुलिस अधिकारियों को 25 साल के एगनेलो वाल्डारिस की हत्या के मामले में आठ पुलिस अधिकारियों को अन्य सुसंगत धाराओं के साथ आईपीसी की धारा 302 के तहत मुकदमा चलने का निर्देश दिया है। वाल्डारिस की चोरी के आरोपों के बाद पांच साल 2014 में पहले पुलिस हिरासत में मौत हो गई थी।

न्यायमूर्ति बीपी धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति एसएस जाधव की खंडपीठ ने 18 दिसंबर को हुई सुनवाई में वाल्डारिस के पिता लियोनार्ड द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए निचली अदालत को धारा 302 (हत्या), धारा 201 (अपराध के सबूतों को गायब करने, या गलत जानकारी देना) और धारा 295ए यानी जान—बूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्य, जिसका उद्देश्य आईपीसी के अपने धर्म या धार्मिक मान्यताओं का अपमान करके धार्मिक भावनाओं या किसी भी वर्ग को नाराज करना के तहत 8 पुलिसकर्मियों के विरुद्ध मुकदमा चलने का निर्देश दिया। इन पुलिसकर्मियों पर थर्ड डिग्री टॉर्चर के अलावा आरोपियों के साथ अप्राकृतिक यौनाचार के भी आरोप हैं।

गौरतलब है कि इससे पहले आठों आरोपियों पर आईपीसी की धारा 338 यानी दूसरे व्यक्ति के जीवन को नुकसान पहुंचाने या खतरे में डालने) और 377 यानी अप्राकृतिक यौन संबंध के तहत मामला दर्ज किया गया था।

सुनवाई के दौरान मुंबई हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा डीके बसु मामले में दिए गये दिशा निर्देशों का पुलिस ने पालन नहीं किया। यही नहीं जमानत पर रिहा होने के बाद अन्य आरोपियों ने हिरासत में थर्ड डिग्री टॉर्चर और अप्राकृतिक यौन उत्पीडन के संबंध में पुलिस आयुक्त से शिकायत की।

स मामले में चौथे आरोपी जो जुवेनाइल था, ने महिला एवं बाल विकास विभाग के सामने न केवल पुलिस हिरासत में हुई यातना के आरोपों को दोहराया बल्कि हिरासत में रहते हुए यौन शोषण का आरोप भी पुलिसकर्मियों पर लगाया। कस्टोडियल डेथ मामले में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 174 (4) के तहत जिला मजिस्ट्रेट या उपखंड मजिस्ट्रेट या कोई अन्य कार्यकारी मजिस्ट्रेट द्वारा जांच होनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सीबीआई के वकील वेनेगांवकर ने स्वीकार किया कि वर्तमान मामले में मजिस्ट्रेट द्वारा कोई जाँच पड़ताल नहीं की गई थी।

एगनेलो वाल्डारिस की फोटो के साथ उनके पिता

डाला रेलवे पुलिस द्वारा 15 अप्रैल 2014 को चोरी के आरोप में वाल्डारिस और तीन अन्य को किसी आरोप में उठाया गया था। वाल्डारिस के परिवार के अनुसार, तीन दिनों तक वाल्डारिस और अन्य लोगों को पुलिस ने प्रताड़ित किया और यहां तक कि एक-दूसरे के साथ ओरल सेक्स करने के लिए मजबूर किया गया। 18 अप्रैल को वाल्डारिस की मृत्यु हो गई, जबकि अन्य 22 अप्रैल को जमानत पर रिहा हो गए। वाल्डारिस की मौत के बाद वडाला पुलिस ने दावा किया कि वाल्डारिस हिरासत से भागने की कोशिश करते समय ट्रेन की चपेट में आने से मारा गया।

केंद्रीय जांच ब्यूरो ने अदालत को बताया कि वाल्डारिस जो पांच साल पहले अप्रैल 2014 में रेलवे पटरियों पर मृत पाया गया था, उस पर आठ सरकारी रेलवे पुलिस (जीआरपी) के अधिकारियों द्वारा अत्याचार और यौन उत्पीड़न किया गया था, जो मामले में आरोपी हैं लेकिन ऐसा सबूत नहीं है कि वाल्डारिस उनके द्वारा मारा गया था।

सीबीआई वकील हितेन वेनगावकर ने पीठ को बताया कि हिरासत से भागने की कोशिश के दौरान वाल्डारिस की एक रनिंग ट्रेन से गिरकर मौत हो गई। वेनगावकर ने कहा कि एजेंसी ने चार चश्मदीद गवाहों का बयान दर्ज किया है और रेलवे विभाग और रेलवे पुलिस विभाग की लॉग बुक्स से संबंधित जानकारी एकत्र की है। यहां तक कि मौत से पहले और बाद में वाल्डारिस के शरीर पर चोटों के बारे में डॉक्टर के सबूत स्पष्ट रूप से कहते हैं कि केवल 12 घंटे के भीतर लगी चोटें घातक थीं और ट्रेन दुर्घटना के कारण मौत हुई, वेनेगावकर ने प्रस्तुत किया।

याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि सीसीटीवी कैमरा फुटेज से पता चला कि वाल्डारिस ने हिरासत से बचने की कोशिश नहीं की, जैसा कि पुलिस ने दावा किया है। इस बात के भी पर्याप्त सबूत हैं कि आरोपियों के हाथों हुई यातना के कारण पुलिस हिरासत में उसकी मौत हो गई। खंडपीठ ने पाया कि चश्मदीद गवाहों के बयान असंगत थे और उन्होंने नोट किया कि वाल्डारिस के साथ पकड़े गए सह-अभियुक्तों ने कहा था कि वे सभी प्रताड़ित थे और अपने दम पर नहीं चल सकते थे, इसलिए खंडपीठ ने निष्कर्ष निकाला कि रेलवे पटरियों पर मृतक के चलने का सवाल ही नहीं उठता।

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